एक सिलसिलेवार राजनीतिक-आपराधिक विश्लेषण
राजस्थान की राजनीति में जब भी आदिवासी नेतृत्व की चर्चा होती है, बागीदौरा जैसे सीमावर्ती क्षेत्र से उभरे जयकृष्ण पटेल का नाम अक्सर श्रद्धा और उम्मीद के साथ लिया जाता रहा है। लेकिन मई 2025 में घटी एक घटना ने इन सारी भावनाओं को चूर-चूर कर दिया। एक जनप्रतिनिधि, जो जल-जंगल-जमीन के हक की लड़ाई का चेहरा बन रहा था, अब भ्रष्टाचार की एक शर्मनाक कथा का मुख्य पात्र बन गया।
यह केस स्टडी सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ़्तारी की कहानी नहीं है—यह राजनीतिक अनुभव की कमी, सत्ता में साजिशों, और एक पूरे सिस्टम की परत-दर-परत खुलती पोल है।
बागीदौरा से विधानसभा तक
जयकृष्ण पटेल ने 2023 के विधानसभा चुनाव में भारत आदिवासी पार्टी (BAP) से टिकट पाकर जीत हासिल की थी। अपने सरल स्वभाव और जनसंवाद की वजह से वे आदिवासी युवाओं के रोल मॉडल बनते जा रहे थे। लेकिन सियासत में जो दिखाई देता है, वो हमेशा सच नहीं होता।
यह बात सच है कि वागड़ क्षेत्र में बाप ने जब से बीजेपी और कांग्रेस की नींद उड़ाई है, दोनों राजनीतिक दलों के लिए यह पार्टी आंखों की किरकिरी बनी हुई है। इस पूरी कहानी में बीजेपी और कांग्रेस से जुड़े लोगों की भी अहम भूमिका रही है।
रिश्वत की रकम, गड्डे में गड़ा विश्वास
4 मई 2025—ACB की टीम जयपुर के विधायक क्वार्टर में अचानक दाखिल होती है। सूचना थी कि जयकृष्ण पटेल ने एक ठेकेदार से 20 लाख रुपए की रिश्वत ली है। कहानी में एमएलए ने डिमांड दस करोड़ की डिमांड की थी। सौदा ढाई करोड़ में तय हुआ था। करौली में माइनिंग कंपनी मालिक से यह सौदेबाजी हुई थी जो बीजेपी से जुड़े हैं। शिकायतकर्ता ने कांग्रेस के टोडाभीम के विधायक पर भी मामले से जुड़े होने के आरोप लगाए हैं।
जैसे ही टीम पहुंचती है, उनका भांजा रोहित पटेल 20 लाख रुपये लेकर वहां से फरार हो जाता है। जांच शुरू होती है और मोबाइल सर्विलांस से ACB को दो नाम मिलते हैं—जसवंत और जगराम।
पूछताछ में पता चलता है कि रोहित ने रकम जसवंत को दी थी, जिसने उसे जगराम के पास पहुँचाया। जगराम के प्रतापनगर स्थित घर में यह रकम ज़मीन के नीचे दबा दी गई थी। ACB टीम मौके पर पहुंचती है, खुदाई होती है, और नोटों की थैली बरामद की जाती है।
सत्ता की नंगाई—नंगे पांव कोर्ट में पेशी
जयकृष्ण पटेल को उसी दिन कोर्ट में पेश किया गया। कैमरे में एक असहाय विधायक की तस्वीर कैद हुई—नंगे पैर, सिर झुकाए, और चेहरे पर पश्चाताप या डर की जगह गुस्से की झलक।
पुलिस ने सफाई दी कि वकीलों की हड़ताल के कारण उन्हें पैदल लाया गया और रास्ते में चप्पल टूट गई, इसलिए नंगे पैर लाया गया। पर राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे ‘सत्ता के अभिमान के चूर होने’ के रूप में देखा।
अनुभव की कमी’ या ‘साजिश का शिकार
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे चौंकाने वाला मोड़ तब आया जब एक पूर्व मंत्री ने ऑफ रिकॉर्ड बयान में कहा:
“विधायक अनुभवहीन था, इसलिए पकड़ा गया। ये काम और भी लोग करते हैं, लेकिन वो होशियार हैं। उसे नहीं पता था कि किससे बात करनी है और किससे नहीं।”
इस बयान ने साफ कर दिया कि भ्रष्टाचार केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रणालीगत बीमारी है। यह केस तो केवल उस व्यक्ति का उदाहरण है, जो चालाक नहीं था।
BAP और आदिवासी राजनीति पर असर
BAP जैसी नवोदित पार्टी, जो आदिवासी अधिकारों की बात कर रही थी, इस कांड से हिल गई। जयकृष्ण पटेल पार्टी का उभरता चेहरा थे, और उनकी गिरफ्तारी ने पार्टी की साख पर सवाल खड़े कर दिए।
अब पार्टी के सामने दोहरी चुनौती थी—एक तरफ नैतिकता के आधार पर कार्रवाई करना, दूसरी तरफ अपने ही विधायक के पक्ष में खड़े रहना, जो खुद को ‘राजनीतिक शिकार’ बता रहा था।
सबूत, सीसीटीवी और सर्वर रूम की जांच
ACB ने विधायक क्वार्टर के CCTV फुटेज जब्त कर लिए। सर्वर रूम की FSL जांच शुरू की गई है। इस बात की भी जांच हो रही है कि क्या इस पूरे पैसे के आदान-प्रदान की पहले से प्लानिंग थी, या मौके की कारगुज़ारी थी।
कई तकनीकी पहलुओं पर रिपोर्ट आनी बाकी है, लेकिन ACB सूत्रों का कहना है कि रोहित, जसवंत और जगराम के बयानों से केस लगभग मजबूत हो गया है।
क्या यह एक योजनाबद्ध साजिश थी?
जयकृष्ण पटेल का दावा है कि उन्हें फंसाया गया। BAP के कुछ नेताओं ने भी कहा कि यह कार्रवाई राजनीतिक बदले की भावना से की गई हो सकती है। यह भी बताया गया है कि पटेल हाल ही में कुछ बड़े नेताओं की योजनाओं के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बोले थे, और सरकार के कुछ निर्णयों पर सवाल खड़े किए थे। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह गिरफ्तारी ‘संदेश भेजने’ का जरिया हो सकती है।
जनता की राय—दोषी या बलि का बकरा?
बागीदौरा में लोगों की राय बंटी हुई है। कुछ लोग मानते हैं कि विधायक ने गलती की, लेकिन उतनी बड़ी नहीं कि उसे राष्ट्रीय अपमान बनाया जाए। वहीं कुछ का कहना है कि यदि वह दोषी है, तो सज़ा जरूरी है।
गांवों में एक आम संवाद सुनाई देता है : “सब करते हैं, लेकिन पकड़ वो ही जाता है जो चालाक नहीं होता।”
क्या आगे और नाम जुड़ेंगे इस चक्रव्यूह में?
ACB ने संकेत दिए हैं कि यह केवल शुरुआत है। कुछ और विधायकों के नाम जांच के दायरे में हैं, विशेषकर वे जो हाल ही में सरकारी योजनाओं और टेंडरों में सक्रिय रहे हैं।अब निगाहें इस बात पर हैं कि क्या पटेल अकेले इस चक्रव्यूह का शिकार होंगे, या और भी नाम सामने आएंगे।
चक्रव्यूह से निकलना कठिन है, जब रथ ही कीचड़ में हो
जयकृष्ण पटेल की कहानी यह दिखाती है कि जब राजनीति नैतिकता से भटकती है, तो जनप्रतिनिधि भी सामान्य अपराधियों की तरह ही कानून की गिरफ्त में आ सकते हैं।
यह केस स्टडी उन सभी के लिए सबक है जो सत्ता को हथियार समझते हैं, सेवा नहीं। यह घटना सिर्फ एक विधायक की नहीं, एक पूरे सिस्टम के गिरने का आईना है।
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