उदयपुर : गर्लफ्रेंड से आखिरी मुलाक़ात : होटल कासा गोल्ड के कमरा नं. 207 में मोहब्बत की लाश

 

1. इश्क़ की शुरुआत इंस्टाग्राम पर…

उदयपुर की रंगीन गलियों के बीच, मोबाइल की स्क्रीन पर जब पहली बार विजय ने निकिता की मुस्कुराती तस्वीर देखी थी, उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि यही चेहरा एक दिन उसकी दुनिया को हमेशा के लिए बदल देगा।

विजय भोई — एक जूनूनी कोरियोग्राफर, जो अपनी हर परफॉर्मेंस में जान झोंक देता था। निकिता त्रिवेदी — नर्सिंग की छात्रा, जिसकी मुस्कान में किसी आधी रात की रोशनी जैसा सुकून था। दोनों की मुलाक़ात इंस्टाग्राम पर हुई, लेकिन उनके दिल एकदम रियल दुनिया में धड़कने लगे थे।

प्यार परवान चढ़ रहा था, और विजय को लगने लगा था कि निकिता उसकी ज़िंदगी की ‘फाइनल स्टेप’ है।

2. मोहब्बत पर लगाम, घरवालों ने सगाई कर दी…

वक़्त गुज़रता गया। मोहब्बत अब लुका-छुपी से आगे बढ़ चुकी थी। परिवारों तक भी इसकी खबर पहुंची। निकिता के घरवालों को यह रिश्ता मंज़ूर नहीं था — और उन्होंने उसे गांव बुला लिया। एक ऐसा निर्णय लिया गया, जिसने विजय की ज़िंदगी की ज़मीन खिसका दी — निकिता की सगाई किसी और से कर दी गई।

सगाई के बाद, निकिता ने विजय से सारे रिश्ते तोड़ लिए। चैट बंद, कॉल बंद, मुलाक़ातें बंद।

पर विजय के दिल में मोहब्बत नहीं मरी थी — उसने खुद को समझाया, “एक बार और मिल लो… शायद सब कुछ ठीक हो जाए।”

3. “एक आख़िरी मुलाक़ात…” — होटल कासा गोल्ड में

सोमवार का दिन था। जगह थी — होटल कासा गोल्ड, परशुराम चौराहा।
निकिता, शायद नर्म दिल के चलते, विजय की ‘आखिरी मुलाक़ात’ की गुजारिश ठुकरा नहीं सकी।

कमरा नंबर 207 में जब दोनों आमने-सामने हुए, तो हवा में एक अजीब सी बेचैनी तैर रही थी। विजय के चेहरे पर एक उम्मीद थी… और निकिता की आंखों में एक झिझक।

“क्यों किया तुमने ऐसा निकिता?”
“क्यों नहीं समझते तुम, सब खत्म हो गया है, विजय!”

झगड़ा बढ़ता गया। आवाज़ें ऊंची हुईं। विजय का जुनून अब मोहब्बत की हदों को लांघ चुका था।
उसने एक झटके में निकिता का सिर दीवार से दे मारा।

4. एक लम्हे में टूट गई सांसें…

निकिता वहीं, कमरे के बीचों-बीच गिरी। एक दम शांति। न रोने की आवाज़, न चीख — सिर्फ सन्नाटा।
विजय को समझ ही नहीं आया कि क्या हो गया। उसकी आंखें थरथराने लगीं।

पलट कर देखा — निकिता की नज़रों में अब कोई बात बाकी नहीं थी। वह जा चुकी थी।

5. मौत के बाद मोहब्बत का एक और इम्तिहान

विजय ने अपने पर्स से ब्लेड निकाला। एक बार नहीं, कई बार — हाथ की नसें काटीं।
पर मौत इतनी आसानी से गले नहीं लगाती। दर्द ने उसे झकझोर दिया।
वह रोता रहा, चिल्लाता रहा… फिर होटल से निकल भागा।

6. अकेला कमरा, चुपचाप लाश और बंद दरवाज़ा

कमरा नंबर 207 — सुबह तक बंद रहा। होटल स्टाफ को शक हुआ।
दरवाज़ा खोलते ही कमरे में हवा तक सहम गई — बिस्तर के पास निकिता की लाश थी।
ब्लडस्टेन्ड दीवार और फर्श पर टूटे रिश्ते की आखिरी निशानी पड़ी थी।

7. पुलिस, CCTV और मोहब्बत का हत्यारा

होटल की आईडी और सीसीटीवी फुटेज से पुलिस को ज्यादा वक्त नहीं लगा विजय तक पहुंचने में।
वह एमबी अस्पताल में भर्ती मिला — कलाई पर पट्टियां थीं, आंखों में अफसोस और दिल में शायद अब भी अधूरी मोहब्बत।

पुलिस पूछ रही थी — “क्यों किया ऐसा?”

पर विजय के पास कोई जवाब नहीं था। सिर्फ एक टूटा हुआ दिल था, जो आज भी उसी ‘आखिरी मुलाक़ात’ में अटका हुआ था।

8. छोटी-सी चूक… और बिखर गया एक पूरा भविष्य

कभी-कभी ज़िंदगी कोई बहुत बड़ी साज़िश नहीं रचती।
वह बस एक छोटी सी चूक को इतना बड़ा बना देती है कि सब कुछ बिखर जाता है।

अगर निकिता ने एक बार खुलकर बात की होती, तो शायद विजय उसे समझ पाता।

अगर विजय ने ग़ुस्से की जगह धैर्य चुना होता, तो शायद निकिता अब भी जिंदा होती।

अगर परिवार ने ज़िद से पहले बच्चों के मन को पढ़ा होता, तो शायद एक प्यार भरा रिश्ता मंज़िल तक पहुंचता।

हर किसी ने सोचा — “हम जो कर रहे हैं, वही सही है।”
लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि शायद “सही होने से ज़्यादा ज़रूरी है — समझना और सुना जाना।”

9. रिश्ते तोड़ना आसान है, समझाना मुश्किल… पर ज़रूरी

कितनी बार होता है कि हम सिर्फ इसलिए रिश्ता तोड़ देते हैं क्योंकि परिवार के डर से, समाज के डर से, या अपनी ‘नया शुरू करने की ज़िद’ में हम पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहते।

मगर रिश्तों की मरम्मत का हुनर अगर हमने सिखा होता,
तो शायद ‘कमरा नंबर 207’ कभी किसी की कब्र न बनता।

10. एक सवाल, जो रह गया…

आज विजय जेल में है, निकिता ज़मीन के नीचे।
दोनों के माता-पिता एक अजीब शून्य में जी रहे हैं — कोई बेटी को रो रहा है, कोई बेटे को।

और कमरे की दीवार पर वो खून का धब्बा जैसे चीख-चीख कर पूछता है —

“क्या सिर्फ प्यार करना काफ़ी था?
या प्यार को समझना, संजोना और सहना भी आना चाहिए था?”

सीख जो इस कहानी से मिलती है…

प्यार कोई फिल्मी डायलॉग नहीं — वह ज़िम्मेदारी है।

परिवार को चाहिए कि बच्चों से संवाद करें, सज़ा न दें।

बच्चों को चाहिए कि भावनाओं से परे, फैसलों की परिपक्वता सीखें।

और सबसे ज़रूरी — गुस्से के एक पल में की गई हिंसा, पूरी ज़िंदगी को लील सकती है।

एंड नोट : मोहब्बत और समझ — दोनों ज़रूरी हैं
एक लम्हे की चूक ने दो परिवार उजाड़ दिए।
काश… किसी एक ने थोड़ा रुककर, थोड़ा सुनकर, थोड़ा समझकर फैसला लिया होता।

क्योंकि मोहब्बत को अगर समझदारी का साथ न मिले,
तो वह खून बन जाती है — जैसे उस होटल के फर्श पर फैली थी।

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