71 की उम्र में नई उड़ान : ताराचंद अग्रवाल की प्रेरक कहानी

जयपुर।

सूरज ढलने से पहले उसने फिर से उठना सीख लिया…
जिस उम्र में लोग जीवन के थक चुके पन्नों को समेटने लगते हैं, उस उम्र में एक व्यक्ति ने किताबों की नयी जिल्द खोली और सपनों के उन पन्नों को फिर से लिखना शुरू कर दिया जिनपर कभी वक्त ने विराम लगा दिया था। ये कहानी है ताराचंद अग्रवाल की — एक ऐसे इंसान की, जिन्होंने 71 साल की उम्र में चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) बनकर साबित कर दिया कि उम्र सिर्फ एक संख्या है, हौसला अगर जवान हो तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं।

वो मोहब्बत जो विदाई के बाद भी ज़िंदगी को दिशा दे गई…

साल 2020, कोविड का भयावह दौर और उसी दौरान ताराचंद जी की जीवन संगिनी दर्शना जी का साथ छूट गया। वो सिर्फ जीवनसाथी नहीं थीं, आत्मा की सहयात्री थीं। उनके बिना घर का हर कोना सूना हो गया। परिवार पास था, पोते-पोती मुस्कुराते थे, लेकिन दिल के भीतर की वो खामोशी किसी को सुनाई नहीं देती थी।

इसी खालीपन को भरने के लिए उन्होंने किताबें उठाईं। शुरुआत हुई श्रीमद्भगवद गीता से – जिसने जीवन का अर्थ समझाया और उन्हें याद दिलाया कि अभी भी कुछ अधूरा है, कुछ बाकी है, जो उन्हें खुद के लिए करना है।

जब पोती ने कहा – “आप क्यों नहीं?”

एक दिन उनकी पोती ने मासूमियत से कहा “दादाजी, जब आप मुझे पढ़ाते हैं, तो आप खुद क्यों नहीं पढ़ सकते?” उस सवाल में चुनौती नहीं, विश्वास था। उसी विश्वास ने एक चिंगारी जलाई और फिर पीछे मुड़कर देखने का सवाल ही नहीं उठा।

बेटों ने सुझाव दिया – “CA करिए पापा, ये कठिन जरूर है, लेकिन आपकी मेहनत की पहचान बन जाएगी।” ताराचंद जी ने इसे दिल पर ले लिया। जुलाई 2021 में रजिस्ट्रेशन कराया और सफर शुरू हुआ — बिना कोचिंग, बिना गाइडेंस, सिर्फ YouTube और किताबों के सहारे।

असफलता ने नहीं रोका, बल्कि निखारा

2022 में फाउंडेशन क्लियर, 2023 में इंटरमीडिएट, और 2024 में फाइनल परीक्षा… मगर पहली बार असफल हो गए। लोग यहां हार मान लेते हैं। मगर ताराचंद जी ने अपने ‘ताऊजी’ की बात याद की —”काम जो करो, पक्का करो।”
उन्होंने खुद को टटोला — “कहाँ चूके थे?”

पता चला, शोरूम के काउंटर पर बैठकर पढ़ना जितना ज़रूरी था, उतना ही एकांत और समर्पण भी ज़रूरी है।

और फिर शुरू हुआ असली संघर्ष — 10 घंटे रोज़ पढ़ाई, 2 से 4 घंटे लिखने का अभ्यास। शरीर ने साथ नहीं दिया, कंधों में दर्द था, हाथ जवाब देने लगे थे, मगर मन ठान चुका था — इस बार हार नहीं माननी।

शोरूम से परीक्षा हॉल तक का सफर

जिस जगह लोग सामान खरीदने आते थे, वहीं ताराचंद जी सपनों की कीमत आंकते थे।
अपने छोटे बेटे के जनरल स्टोर पर बैठकर, ग्राहक आने-जाने के बीच किताबों में डूबे रहते।
जब परीक्षा देने पहुंचे तो कई युवा छात्र समझे कि शायद पेपर लेने आए हैं।
पर जब देखा कि ये बुज़ुर्ग भी उनके साथ ही लिखने बैठे हैं, तो कह उठे —
“अंकल, आप हमारे साथ एग्ज़ाम दे रहे हो? वाकई बहुत प्रेरणादायक है!”

वो जिन्होंने कभी किताबें नहीं छोड़ीं

ताराचंद जी सिर्फ अब नहीं, हमेशा सीखते रहे। बैंक में नौकरी के दौरान भी C.A.I.I.B. किया, लगातार ट्रेनिंग लीं, और खुद को हर दिन बेहतर बनाने की कोशिश की।

22 साल की उम्र में बैंक में क्लर्क बने, और 2014 में AGM के पद से रिटायर हुए। 8 भाई-बहनों के बीच एक साधारण किसान-पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकलकर, उन्होंने अनूपगढ़ से जयपुर तक का सफर मेहनत से तय किया।

परिवार – वो दीवार, जो हर तूफ़ान में साथ खड़ी रही

ताराचंद जी की कहानी में एक और खूबसूरत पहलू है — उनका परिवार।
उनके दोनों बेटे — ललित और अमित, बहुएं और पोतियां — सभी ने एकजुट होकर उन्हें प्रोत्साहन दिया।

बेटों ने कहा — “पापा, आप की सफलता हमारे लिए प्रेरणा बनेगी।”
और वाकई आज जब लोग उन्हें ‘शोरूम वाले अंकल’ नहीं, बल्कि ‘CA अंकल’ कहते हैं, तो उनके बेटों की आंखों में गर्व चमकता है।

एक संदेश जो पीढ़ियों तक गूंजेगा

ताराचंद अग्रवाल का मानना है — “जो खुद संघर्ष करता है, वही दूसरों को दिशा दे सकता है।”

आज वे कई युवाओं को मार्गदर्शन दे रहे हैं, उन्हें विश्वास दे रहे हैं कि अगर 71 की उम्र में भी CA बना जा सकता है, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं।

उनका संदेश है — “डरो मत, हार मानो मत, उम्र का इंतज़ार मत करो।
मेहनत से बड़ी कोई औषधि नहीं, और हौसले से बड़ा कोई साधन नहीं।”

अंत में…
ताराचंद जी की कहानी कोई चमत्कार नहीं, ये एक साधारण इंसान की असाधारण जिद है। यह कहानी उस मोड़ की है जहां जीवन से एक बहुत प्यारा रिश्ता छूट गया, लेकिन उस शून्य को ज्ञान और उद्देश्य से भर दिया गया।

आज वो न केवल CA हैं, बल्कि “उम्र की बंदिशों को तोड़कर चलने वाले साहसी प्रेरक” हैं। उनकी कहानी एक दर्पण है — जिसमें हम सब देख सकते हैं कि अगर चाह हो, तो हर अंत एक नई शुरुआत हो सकता है।

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