
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विश्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवेनमः।।
गुरू बिन ज्ञान ना उपजै, गुरू बिन मिले न मौक्ष
गुरू ज्ञान ही नहीं, जिने का तरीका सीखाते है
विद्यापीठ – गुरुओं का किया सम्मान
उदयपुर। गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर गुरुवार को राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक लोकमान्य तिलक प्रशिक्षण महाविद्यालय के सभागार में आयोजित गुरु सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि मूल्यों व संस्कारों के वाहन है गुरु इसलिए गुरु के प्रति नतमस्तक होकर कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है गुरु पूर्णिमा। गुरु ज्ञान ही नहीं , जीने का तरीका सिखाते है। हम कितना भी तकनीक का उपयोग कर ले, भावात्मक ज्ञान, संस्कार, अनुभव गुरु से ही आते है। गुरू के लिए पूर्णिमा से बढकर और कोई तिथि नहीं हो सकती। जो स्वयं में पूर्ण है वही तो पूर्णत्व की प्राप्ति दूसरो को करा सकता है।
पूर्णिमा के चन्द्रमा की भांति जिसमे जीवन में केवल प्रकाश है, वही तो अपने शिष्यों के अंतकरण मेें ज्ञान रूपी चंद्र की किरणें बिखेर सकता है। उन्होने कहा कि भारतीय परम्परा में गुरु को साक्षात् भगवान की उपमा दी गई है। गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है, गुरु किसी भी उम्र का हो सकता है जिस व्यक्ति से कोई ज्ञान या अच्छी चीज प्राप्त होती है वही हमारा गुरु हे।

अन्धकार से प्रकाश की और ले जाने वाले गुरु ही होते है। गुरु के मार्गदर्शन के बिना हम समाज में रहना नहीं सीख पाते है। गुरु के बिना हम यह भी नहीं सीख पाते है कि समाज की बुराईयों को दूर करने में हम कैसे अपना योगदान दे सकते है।
संस्कृत के प्रख्यात पण्डित वेदव्यास ने गुरु पूर्णिमा के दिन ही चारों वेदों की रचना की। हमारे जीवन में माँ हमारी सबसे पहली गुरु होती है। गुरु अपने शिष्यों में चेतना जागृत करने का कार्य करता है।
भारतीय ज्ञान परम्परा पूरे विश्व में अद्भुत – कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर
मुख्य अतिथि कुलाधिपति एवं कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि हमारी भारतीय ज्ञान परम्परा पूरे विश्व में अद्भुत है पूरे देश में हर रोज कोई न कोई पर्व त्यौहार अवश्य ही मनाया जाता है। आज की युवा पीढ़ी हमारे से संस्कारों से दूर होती जा रही है जो चिंताजनक है उन्हें पुनः रास्ते पर लाने का काम शिक्षकों अर्थात गुरूओं का है।

प्रारंभ में प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि गुरु अपने शिष्यों में चेतना जागृत करने का कार्य करता है। समारोह में डॉ. तिलकेश आमेटा, महेन्द्र वर्मा ने संगीतमय गुरु वंदना प्रस्तुत कर सभी भावविभोर कर दिया।
संचालन डॉ. हरीश चौबीसा ने किया जबकि आभार डॉ. रचना राठौड़ ने दिया।
इस अवसर पर डॉ. रचना राठौड, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. अमी राठौड, डॉ. भुरालाल शर्मा, डॉ. अमित बाहेती, डॉ. हरीश मेनारिया, डॉ. अमित दवे, डॉ. रोहित कुमावत, डॉ. सुभाष पुरोहित, डॉ. हरीश चौबीसा, डॉ. शीतल चुग सहित कार्यकर्ता उपस्थित थे।
दिन भर चला गुरु सम्मान का दौर : कुलपति
सचिवालय में देर शाम तक विद्यापीठ के सभी संघटक विभागों के कार्यकर्ता, शहर के गणमान्य व्यक्तियों ने कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत का उपरणा, माला, श्रीफल देकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर रजिस्ट्रार डॉ. तरूण श्रीमाली, पीठ स्थविर डॉ. कौशल नागदा, परीक्षा नियंत्रक डॉ. पारस जैन, डॉ. मंजु मांडोत, डॉ. विजय दलाल, डॉ. चन्द्रेश छतलानी, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ. सुनिता मुर्डिया, डॉ. ललित श्रीमाली, डॉ. कुल शेखर व्यास, डॉ. धमेन्द्र राजौरा, डॉ. युवराज सिंह राठौड़, डॉ. नीरू राठौड, डॉ. मनीष श्रीमाली, डॉ.़ भारत सिंह देवडा, डॉ. दिनेश श्रीमाली, डॉ. प्रदीप सिंह शक्तावत, डॉ. दिलिप चौधरी, जितेन्द्र सिंह चौहान, सहित कार्यकर्ताओं ने प्रो. सारंगदेवोत का उपरणा, माला पहना कर सम्मान किया।
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