संस्कारों की खुशबू से महकेगा फतहसागर किनारा – सास शिरोमणि सम्मान की सांझ में दिखेगा रिश्तों का उजास

उदयपुर। जहां आधुनिकता की तेज़ रफ्तार में रिश्तों की परिभाषा बदलती जा रही है, वहीं इनरव्हील क्लब, उदयपुर एक ऐसा अनूठा प्रयास कर रहा है जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है — सास-बहू के रिश्ते को सिर्फ़ निजी नहीं, सामाजिक आदर्श बनाने का प्रयास।
आज, शुक्रवार की संध्या को फतहसागर की सौम्य लहरों के किनारे, रोटरी बजाज भवन में आयोजित होगा “राजमति आदर्श सास शिरोमणि सम्मान समारोह”। यह केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सहेजे गए स्नेह, त्याग, समझदारी और आदर का उत्सव है।


95 वर्षीय धापू देवी पगारिया और उनकी बहू 67 वर्षीय सुनीता पगारिया – मिसाल बनी एक स्नेहिल जोड़ी
इस वर्ष इस गरिमामयी मंच पर धापू देवी पगारिया और उनकी बहू सुनीता पगारिया को “राजमति आदर्श सास शिरोमणि 2024–25” के सम्मान से अलंकृत किया जाएगा। यह केवल सम्मान नहीं, एक जीवंत उदाहरण है कि जब रिश्ते संवाद और समर्पण से सींचे जाएं तो उम्र कोई मायने नहीं रखती — एक 95 वर्षीया सास और उनकी 67 वर्षीया बहू आज समाज के लिए प्रेरणा बन गई हैं।


रिश्तों की सुगंध फैलाते चार और सम्मानित परिवार
इसके साथ ही चार और माताओं को “आदर्श सास सम्मान” से नवाज़ा जाएगा, जिनकी बहुएं न केवल बहुएं रहीं, बल्कि बेटियों की तरह घर की हर जिम्मेदारी में उनकी साझेदार बनीं —
• लक्ष्मी देवी नाहर और बहुएं ज्योति व चेतना नाहर
• उर्मिला बोहरा और बहू सीमा बोहरा
• रतन पालीवाल और बहू पूजा पालीवाल
• शांता देवी बाफना और बहू अनुपमा बाफना
जब पूरा समाज बनता है परिवार
इस आयोजन में न केवल भावनाएं जुड़ी हैं, बल्कि पूरा समाज भी भागीदार बनता नजर आ रहा है। अनेक व्यवसायियों ने सहयोग के लिए बिना किसी आग्रह के अपने संसाधन और प्रेम से योगदान दिया —
• सोने का पेंडेंट, डिनर कूपन, नि:शुल्क डेंटल चेकअप, उपहार हैम्पर — हर योगदान एक प्रतीक है कि रिश्तों को सम्मान देने की परंपरा समाज को जोड़ती है, बांटती नहीं।
एक मंच, जहाँ सास बनी माँ और बहू बनी बेटी
संस्था की अध्यक्ष चंद्रकला कोठारी के शब्दों में —
“जब सास माँ बनती है और बहू बेटी, तब घर मंदिर बन जाता है। यही तो है हमारी संस्कृति की आत्मा — पीढ़ियों के बीच संवाद, स्नेह और सह-अस्तित्व का अद्भुत संगम।”


रिश्तों की नई परिभाषा गढ़ता यह आयोजन
यह आयोजन उन माताओं के लिए एक सम्मान नहीं, श्रद्धांजलि है — जिन्होंने बहू को सिर्फ़ घर की सदस्य नहीं, अपने हृदय का हिस्सा बनाया। जिन्होंने अपने अनुभव से नई पीढ़ी का मार्गदर्शन किया, और जिनके स्नेह से परिवारों में सच्चा अपनापन पनपा।
संस्कारों की ये मिसालें हमें बताती हैं — सास और बहू के बीच का रिश्ता भी गहराई, दोस्ती और ममता से भरा हो सकता है, बस ज़रूरत है समझ और सम्मान की।

About Author

Leave a Reply