प्रकृति के प्रहरी : प्रो. पी.आर. व्यास और IPCU 2025 का ऐतिहासिक प्रकृति सम्मेलन

 

उदयपुर—पर्वतों की गोद में बसी इस ऐतिहासिक नगरी की हवाओं में इन दिनों एक अलग ही ऊर्जा तैर रही है। यह ऊर्जा है प्रकृति के लिए जागरूकता, संरक्षण और संवेदनशीलता की। इसी ध्येय को लेकर प्रकृति शोध संस्था, उदयपुर के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय प्रकृति सम्मेलन, उदयपुर 2025 (IPCU 2025) का आयोजन 11-12 अक्टूबर को HCM RIPA, उदयपुर में किया जा रहा है। लेकिन इस आयोजन की आत्मा और प्रेरक शक्ति, जिनके सतत प्रयासों ने इसे एक वैश्विक आयाम प्रदान किया—वे हैं प्रोफेसर पी.आर. व्यास।

सम्मेलन की व्यापकता : भारत से विदेशों तक

11–12 अक्टूबर, 2025 को HCM RIPA, उदयपुर में आयोजित होने वाले इस भव्य सम्मेलन में भारत के 22 राज्यों, पड़ोसी देशों और विदेशों से लगभग 225 प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। इसमें 50 से अधिक यूनिवर्सिटीज, 15 से अधिक कुलपति, देश के जाने-माने पर्यावरणवेत्ता, अर्बन प्लानर, आईएएस, आरएएस और प्रशासनिक अधिकारी शिरकत करेंगे।

यह अपने आप में एक असाधारण संगम होगा – नीतिकारों, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों और नीति कार्यान्वयन कर्ताओं का – जो एक ही मंच पर आकर प्रकृति संरक्षण की साझा रणनीति पर विमर्श करेंगे।

प्रो. पी.आर. व्यास : एक प्रेरक व्यक्तित्व, एक हरित अभियान

इस पूरे आयोजन की आत्मा यदि किसी में समाई है, तो वह हैं – प्रोफेसर पी.आर. व्यास। वे केवल इस सम्मेलन के आयोजक नहीं हैं, बल्कि वे उस विचारधारा के संवाहक हैं जिसने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर इच्छाशक्ति हो तो समाज, सरकार और विज्ञान को एक साथ लाया जा सकता है।

प्रो. व्यास न केवल प्रकृति शोध संस्था (PRS), उदयपुर के संस्थापक, संरक्षक और अध्यक्ष हैं, बल्कि वे एक दूरदर्शी विचारक, शोधकर्ता, और प्रेरक शिक्षक भी हैं। उदयपुर के सी-18-19, आशिक विहार, यूनिवर्सिटी रोड स्थित संस्था का मुख्यालय, इस विचार का जीवंत केंद्र बन चुका है जहाँ प्रकृति संरक्षण को विज्ञान, नीति और जनभागीदारी से जोड़ने का काम होता है।

प्रो. व्यास का समर्पण : एक मिशन, एक जुनून

जहाँ अनेक आयोजन सिर्फ तिथियों पर टिके रहते हैं, वहीं IPCU 2025 एक आंदोलन है — और इसकी नींव प्रो. पी.आर. व्यास के रात-दिन के अथक परिश्रम पर टिकी है। उन्होंने देश-विदेश के विद्वानों, शोधकर्ताओं, विश्वविद्यालयों और नीतिकारों को न केवल आमंत्रित किया बल्कि एक उद्देश्य से भी जोड़ा:

“प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को फिर से समझा जाए, और आने वाली पीढ़ियों को एक हरित और संतुलित धरती सौंपी जाए।”

उदयपुर : जहाँ प्रकृति स्वयं आमंत्रण देती है

IPCU 2025 की मेज़बानी उदयपुर में होना अपने आप में प्रतीकात्मक है। यह वह भूभाग है जहाँ प्रकृति की आत्मा जीवित है – अरावली की पहाड़ियाँ, गिर्वा और कोठारी जैसी नदियाँ, पिछोला और फतेहसागर जैसी झीलें, और घने जंगल – सब एक ऐसी सांस्कृतिक विरासत के वाहक हैं, जहाँ मनुष्य और प्रकृति सह-अस्तित्व में जीते आए हैं।

सम्मेलन के मूल विचार : विमर्श से समाधान तक

प्रकृति सम्मेलन के मुख्य बिंदु होंगे :

जलवायु परिवर्तन और स्थानीय रणनीतियाँ

जैव विविधता संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका

शहरी नियोजन में हरित दृष्टिकोण

पर्यावरण शिक्षा और युवा चेतना

पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय

यह सम्मेलन न केवल विचारों का आदान-प्रदान होगा, बल्कि इससे नीतिगत अनुशंसाएँ, शोधपरक संकल्पनाएँ, और स्थानीय स्तर पर कार्यान्वयन योग्य मॉडल भी निकलेंगे।

क्यों जरूरी है यह सम्मेलन आज के भारत में

भारत जैसे विविधतापूर्ण और पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील देश में प्रकृति से संवाद अब केवल संवेदनशीलता का विषय नहीं रहा, वह अस्तित्व का प्रश्न बन गया है।
जलवायु परिवर्तन, बाढ़-सूखा चक्र, तापमान में असंतुलन, और प्राकृतिक संसाधनों की निरंतर दोहन ने इस प्रश्न को और भी गंभीर बना दिया है।

ऐसे में IPCU 2025 एक उत्तर है — जो बताता है कि विकास और संरक्षण दो विरोधाभासी नहीं, पूरक शक्तियाँ हो सकती हैं – अगर नीति में संवेदना हो और विज्ञान में दृष्टि।

सुझाव : IPCU 2025 को आंदोलन में कैसे बदला जाए?

स्थायी प्रकृति फोरम की स्थापना : सम्मेलन के बाद एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म बने जो नियमित रूप से संवाद और फील्ड प्रोजेक्ट्स को गति दे।

यूथ फेलोशिप प्रोग्राम : पर्यावरण शिक्षा में रुचि रखने वाले युवाओं को रिसर्च वर्क, इंटर्नशिप व फील्ड वर्क से जोड़ा जाए।

लोकल टू ग्लोबल दस्तावेज़ीकरण: मेवाड़ व भारत की पारंपरिक प्रकृति-समझ को अंतरराष्ट्रीय नीति निर्माताओं तक पहुँचाने की पहल हो।

प्रोफेसर व्यास मॉडल : उनके नेतृत्व और कार्यशैली को “प्रो. पी.आर. व्यास मॉडल” के रूप में परिभाषित कर अन्य राज्यों में दोहराने का प्रयास हो।

समापन विचार : प्रकृति का सम्मेलन नहीं, चेतना का संकल्प

IPCU 2025 एक आयोजन मात्र नहीं है — यह संवेदना और समाधान का संगम है। यह उन हाथों की एकजुटता है जो पेड़ लगाते हैं, और उन दिमागों की साझेदारी है जो धरती को बचाने के लिए सोचते हैं। इसके पीछे जो हृदय धड़क रहा है — वह है प्रोफेसर पी.आर. व्यास का।

उन्हें सलाम, क्योंकि उन्होंने यह दिखा दिया कि एक व्यक्ति की सोच, संकल्प और समर्पण कैसे पूरे समाज में हरियाली की आशा बो सकता है।

 

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