
उदयपुर। गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, उदयपुर ने चिकित्सा क्षेत्र में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए एक अत्यंत दुर्लभ बीमारी का बिना सर्जरी इलाज कर एक 39 वर्षीय महिला को नया जीवन प्रदान किया है। यह महिला पिछले तीन वर्षों से लगातार खांसी की गंभीर समस्या से जूझ रही थी, जिसे शुरू में सामान्य टीबी समझा गया, लेकिन जब खांसी लगातार बनी रही, तो जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ।
प्रारंभिक इलाज के दौरान महिला को फेफड़ों की टीबी (Pulmonary Tuberculosis) का उपचार दिया गया था। हालांकि छह महीने के इलाज के बाद भी खांसी नहीं रुकी, जिससे मरीज का जीवन अत्यंत कष्टदायक होता चला गया। इसके बाद गीतांजली हॉस्पिटल के टीबी एवं चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव छाबड़ा ने गहन जांच की सिफारिश की और मरीज को गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ. पंकज गुप्ता के पास रेफर किया।
एंडोस्कोपी जांच में सामने आया कि मरीज की श्वास नली (Trachea) और भोजन नली (Esophagus) के बीच एक छेद बन गया है, जिसे मेडिकल भाषा में Tracheo-esophageal Fistula (TEF) कहा जाता है। यह बीमारी सामान्यतः जन्मजात होती है या फिर कैंसर जैसी गंभीर स्थिति में देखी जाती है, लेकिन इस मामले में यह जटिलता पूर्व में हुई टीबी के कारण बनी — जो चिकित्सकीय दृष्टि से अत्यंत दुर्लभ है।
बिना सर्जरी की राह चुनी, आधुनिक तकनीक से हुआ इलाज
इस स्थिति में पारंपरिक विकल्प ओपन सर्जरी होता है, लेकिन मरीज और परिजनों को जब एंडोस्कोपी द्वारा बिना चीरे-फाड़ के इलाज का विकल्प बताया गया, तो उन्होंने उसे प्राथमिकता दी। डॉ. पंकज गुप्ता और उनकी टीम ने महज़ 10 मिनट की एंडोस्कोपिक प्रक्रिया में एक विशेष क्लिपिंग तकनीक के माध्यम से फिस्टुला को पूरी तरह बंद कर दिया।
इलाज के बाद मरीज को सिर्फ 48 घंटे के लिए अस्पताल में निगरानी में रखा गया और फिर उन्हें स्वस्थ अवस्था में डिस्चार्ज कर दिया गया। फिलहाल मरीज पूरी तरह स्वस्थ हैं और नियमित फॉलोअप पर हैं।
स्थानीय इलाज, वैश्विक मानकों पर खरा
गीतांजली हॉस्पिटल की इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि जटिल और दुर्लभ बीमारियों का विश्वस्तरीय इलाज अब केवल दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों तक ही सीमित नहीं है। उदयपुर जैसे शहरों में भी अब उच्च तकनीक, अनुभवी विशेषज्ञ और उन्नत स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं।
डॉ. पंकज गुप्ता ने इस मामले पर जानकारी देते हुए बताया, “इस तरह की स्थिति में ओपन सर्जरी एक बड़ा जोखिम हो सकता था। लेकिन एंडोस्कोपी द्वारा क्लिपिंग एक सुरक्षित और प्रभावशाली विकल्प साबित हुआ है। मरीज की तेजी से रिकवरी से हम बेहद संतुष्ट हैं।”
क्षेत्रीय मरीजों के लिए क्या मायने रखती है यह सफलता?
इस केस की सफलता से न सिर्फ उदयपुर बल्कि आसपास के इलाकों — जैसे चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा व मेवाड़ क्षेत्र — के मरीजों को लाभ मिल सकता है। अब जटिल मामलों के लिए उन्हें बड़े शहरों की ओर रुख करने की ज़रूरत नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर पर ही विशेषज्ञ इलाज उपलब्ध है।
टेक्नोलॉजी और विशेषज्ञता का समन्वय
गीतांजली हॉस्पिटल में इस तरह की सफलता आधुनिक चिकित्सा तकनीक और अनुभवी डॉक्टरों की टीम की वजह से ही संभव हो सकी है। फिस्टुला क्लोजर के लिए इस्तेमाल की गई एंडोस्कोपिक क्लिपिंग तकनीक आज भी देश के गिने-चुने अस्पतालों में ही उपलब्ध है।
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