तेल अवीव। इज़राइल के सबसे बड़े शहर तेल अवीव में एक असाधारण और प्रतीकात्मक प्रदर्शन देखने को मिला, जब सैकड़ों इज़राइली नागरिकों ने गाज़ा पट्टी में खाद्यान्न की भयावह कमी के विरोध में आटे की बोरियाँ कंधे पर लादकर रक्षा मंत्रालय की ओर मौन मार्च किया।
इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन ने दुनिया का ध्यान खींचा है और यह सवाल खड़ा कर दिया है: क्या युद्ध की राजनीति इतनी अमानवीय हो सकती है कि वह रोटी तक छीन ले?
गाज़ा: जहां भूख बमों से भी ज़्यादा जानलेवा हो गई है
गाज़ा पट्टी पिछले कई वर्षों से इज़राइली घेराबंदी, सैन्य कार्रवाई और राजनीतिक अलगाव का सामना कर रही है। 2025 में हालात और बिगड़ चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवीय संगठनों के मुताबिक, गाज़ा की 80% आबादी अब नियमित भोजन से वंचित है। वहाँ के बच्चों में कुपोषण की दर तेजी से बढ़ रही है, और चिकित्सा व खाद्य आपूर्ति लगभग ठप है।
प्रदर्शन की तस्वीर: आटे की बोरी बनाम बारूद की बोली
21 जुलाई को तेल अवीव की सड़कों पर सैकड़ों लोग निकले। उनके कंधों पर किसी बंदूक या झंडे की जगह थी — आटे की बोरियाँ। यह दृश्य केवल विरोध नहीं था, बल्कि इंसानियत का घोष था। प्रदर्शनकारी गाज़ा के आम नागरिकों के लिए राहत और सहायता की मांग कर रहे थे।
एक महिला प्रदर्शनकारी ने कहा:
“अगर हम यहूदियों की तरह अपने इतिहास की पीड़ा याद रखते हैं, तो हमें दूसरों के भूखों मरने पर चुप नहीं रहना चाहिए।”
सरकार की चुप्पी, जनता की बेचैनी
अब तक इज़राइली रक्षा मंत्रालय या प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रदर्शन सरकार के लिए एक नैतिक चुनौती है — क्या वह सुरक्षा के नाम पर मानवीय सिद्धांतों को कुर्बान करती रहेगी?
वहीं, वामपंथी राजनीतिक दलों और मानवाधिकार संगठनों ने प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है, जबकि कुछ दक्षिणपंथी नेताओं ने इसे “राष्ट्रविरोधी” करार दिया है।
गाज़ा में हालात भयावह
विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार:
65% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं
रोज़ाना औसतन एक परिवार को केवल 700 कैलोरी भोजन मिल रहा है
भुखमरी के चलते बीते तीन महीनों में लूट और हिंसा की घटनाएं 500% बढ़ चुकी हैं
वैश्विक प्रतिक्रिया और सोशल मीडिया की गूंज
प्रदर्शन की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए हैं। “#BreadNotBombs” और “#FlourForGaza” जैसे हैशटैग दुनियाभर में ट्रेंड कर रहे हैं। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़ज़ई, पोप फ्रांसिस और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस जैसे अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने इस आंदोलन की सराहना की है।
क्या रोटी की आवाज़ बमों से तेज़ हो सकती है?
तेल अवीव में उठी यह “रोटी की पुकार” इज़राइली समाज में बढ़ती मानवीय चेतना की मिसाल है। यह प्रदर्शन न केवल गाज़ा के लिए सहानुभूति दर्शाता है, बल्कि इज़राइल के भीतर एक नई सोच की दस्तक भी है — ऐसी सोच जो कहती है कि सुरक्षा केवल दीवारों और हथियारों से नहीं, बल्कि न्याय और करुणा से आती है।
टिप्पणी : इस प्रदर्शन ने यह साबित किया है कि जब भूख, दर्द और मौत इंसान की आत्मा को झकझोरते हैं, तो रोटी की बोरी हथियार से भी अधिक प्रभावशाली बन सकती है। यह संघर्ष केवल इज़राइल और गाज़ा के बीच का नहीं, बल्कि उस पूरी दुनिया का है जो युद्ध के नाम पर मानवता से समझौता करती है।
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