धरती से जितना लिया, उससे ज्यादा लौटाया–आजादी के बाद हिंदुस्तान जिंक की कहानी

उदयपुर। 1947 की आज़ादी की सुबह ने पूरे हिंदुस्तान को नई उम्मीद दी थी। लेकिन राजस्थान की बंजर धरती पर, जहां रेत और चट्टानों के बीच धूप मानो जलती हुई तलवार की तरह उतरती थी, वहाँ एक और कहानी जन्म लेने वाली थी — ज़िंक की कहानी।

उस समय, उदयपुर के पास, कुछ पुरानी खदानें थीं, जिनके बारे में लोग कहते थे — “यहाँ सोना नहीं, पर उससे भी कीमती धातु छुपी है, जो देश की हड्डियों को मजबूत करेगी।”
यह धातु थी — ज़िंक।

पहला अध्याय – खदान से कारख़ाने तक

1966 में, हिंदुस्तान जिंक का जन्म हुआ। यह कंपनी सिर्फ़ धातु निकालने नहीं आई थी, बल्कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के मिशन के साथ उतरी थी।
राजस्थान के Rampura Agucha, Sindesar Khurd और Dariba जैसी खदानें उनके कार्यक्षेत्र बनीं। बड़े-बड़े ड्रील, कन्वेयर बेल्ट, और मशीनों की गड़गड़ाहट से पहले शांत पड़ी धरती अब जागने लगी थी।

पर खदान के आसपास के गांवों में लोग चिंतित थे — “इतनी खुदाई से क्या हमारी जमीन, पानी, और हवा बच पाएगी?” ये सवाल कंपनी के कानों तक पहुँचे, और शायद इसी वजह से हिंदुस्तान जिंक की कहानी, बाकी खनन कंपनियों से अलग हो गई।

दूसरा अध्याय – धरती को लौटाने का वादा

2000 के दशक की शुरुआत में, जब पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की आवाज़ तेज़ हुई, हिंदुस्तान जिंक ने एक अनोखा फैसला लिया — “हम जितना लेंगे, उससे ज़्यादा लौटाएँगे।”

उदयपुर में Sewage Treatment Plant बना, जो रोज़ 60 MLD गंदा पानी साफ़ करके खदान और कारख़ानों में उपयोग करता। बारिश के पानी को जमा करने के लिए Rampura Agucha में विशाल तालाब और harvesting संरचनाएँ बनीं।

धीरे-धीरे कंपनी जल-पॉजिटिव बन गई — यानी जितना पानी इस्तेमाल करती, उससे ज़्यादा प्रकृति को लौटाती।

तीसरा अध्याय – बंजर ज़मीन पर जंगल

उदयपुर-चित्तौड़गढ़ के पास एक जगह थी जहां खनन के बाद सिर्फ़ मलबा और राख बचा था — “Jarofix वेस्टयार्ड”। लोग सोचते थे कि वहाँ अब कभी हरियाली नहीं लौटेगी।

तभी हिंदुस्तान जिंक ने TERI के साथ मिलकर एक प्रयोग शुरू किया। Mycorrhiza नाम की तकनीक से मिट्टी को दोबारा ज़िंदा किया गया। पहले 11,000 पौधे लगाए गए, फिर ये संख्या लाखों में पहुँची। राजपुरा-दरिबा में Biodiversity Park बना, जिसमें 50,000 से अधिक पेड़-पौधे और सैकड़ों पक्षियों का बसेरा हुआ।

चौथा अध्याय – कोयले से सूरज तक

खनन का मतलब सिर्फ़ ज़मीन का उपयोग नहीं, बल्कि ऊर्जा की खपत भी होता है। पहले बिजली का ज्यादातर हिस्सा कोयले से आता था, जिससे प्रदूषण बढ़ता था।
कंपनी ने घोषणा की — “आने वाले 5–7 साल में हम पूरी तरह से renewable energy पर काम करेंगे।”
पवन चक्कियाँ, सोलर पैनल और ग्रीन बिजली ने कार्बन उत्सर्जन लाखों टन घटा दिया। EcoZen नाम का लो-कार्बन जिंक ब्रांड दुनिया के सामने आया, जो वैश्विक औसत से 75% कम कार्बन छोड़ता था।

पांचवां अध्याय – धरती का संरक्षक

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, हिंदुस्तान जिंक को “दुनिया की सबसे सतत खनन कंपनी” का खिताब मिला। IUCN के साथ साझेदारी ने इसे जैव-विविधता संरक्षण में एक मिसाल बनाया। पेस्ट-फिल तकनीक, EV ट्रक, ग्रीन बिल्डिंग — ये सब मिलकर इस कंपनी को न सिर्फ़ खनन की, बल्कि पर्यावरण के संरक्षक की पहचान देने लगे।

छठा अध्याय – आज और कल
आज, हिंदुस्तान जिंक के खदान क्षेत्रों में आपको सिर्फ़ मशीनों की आवाज़ नहीं, बल्कि हवा में पत्तों की सरसराहट, पक्षियों की चहचहाहट, और साफ़ पानी की धार भी सुनाई देगी।
कंपनी अब सिर्फ़ ज़िंक की आपूर्ति करने वाली नहीं, बल्कि धरती को वापस हरियाली देने वाली शक्ति बन चुकी है।

और शायद यही वजह है कि राजस्थान के बुजुर्ग अब कहते हैं — पहले ये लोग खजाना निकालने आए थे, अब ये यहाँ बग़ीचे छोड़कर जा रहे हैं।

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