कार्यकारिणी में जातीय समीकरण से ज्यादा गुटों और नेतृत्व से निकटता को दिया गया
उदयपुर। उदयपुर शहर भाजपा की नई कार्यकारिणी के ऐलान ने संगठन से ज़्यादा राजनीति को चर्चा में ला दिया है। 41 पदाधिकारियों वाली इस सूची में छह महिलाएं, आठ उपाध्यक्ष, तीन महामंत्री और आठ मंत्री शामिल किए गए हैं। पहली नज़र में यह संतुलित और युवाओं को प्राथमिकता देने वाली टीम नज़र आती है, लेकिन गहराई में देखें तो मामला कटारिया गुट की अनदेखी और नए समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमता है।
चर्चा का सबसे बड़ा बिंदु यही है कि पंजाब के राज्यपाल और उदयपुर की राजनीति में लंबे समय तक प्रभावशाली रहे गुलाबचंद कटारिया के करीबी नेताओं को कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली। यह संयोग नहीं बल्कि एक सोची-समझी रणनीति प्रतीत होती है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि कटारिया गुट के कुछ नेताओं ने खुद शामिल होने से इनकार कर दिया क्योंकि वे उन लोगों के अधीन काम नहीं करना चाहते थे जो पहले हाशिये पर माने जाते थे।
महामंत्री के तौर पर पारस सिंघवी की ताजपोशी कटारिया और विधायक ताराचंद जैन के खिलाफ मज़बूती का संकेत देती है। वहीं, सुखाड़िया विवि के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष पंकज बोराणा की नियुक्ति प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ से करीबी संबंधों का नतीजा बताई जा रही है। दूसरी ओर, रवींद्र श्रीमाली के समर्थकों को भी अपेक्षित महत्व नहीं मिला। यही नहीं सक्रिय ब्राह्मण युवाओं को भी किनारे कर दिया गया। यह दिखाता है कि जातीय और सामाजिक संतुलन से ज़्यादा महत्व गुटीय समीकरण और नेतृत्व से निकटता को दिया गया है।
हालांकि कोषाध्यक्ष पद पर रवि नाहर को रिपीट किया गया है, जो कटारिया के करीबी माने जाते हैं। लेकिन समग्र तस्वीर यही बताती है कि कार्यकारिणी बनाने का असली दांव प्रमोद सामर ने खेला। कार्यकारिणी घोषित होने के बाद जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह के साथ केवल वही वरिष्ठ नेता नज़र आए, जिससे यह संदेश गया कि स्थानीय भाजपा का नया शक्ति-केंद्र अब वही हैं।
मीडिया और प्रचार के मोर्चे पर भी बदलाव साफ़ दिखता है। लंबे समय से मीडिया प्रबंधन संभाल रहे चंचल अग्रवाल को इस बार कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। नए चेहरों को आगे लाकर पार्टी ने प्रचार-रणनीति को नए सिरे से गढ़ने का प्रयास किया है, हालांकि अग्रवाल अब भी गैर-औपचारिक रूप से यह काम कर रहे हैं।
महिलाओं की मौजूदगी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। भले ही छह महिलाएं कार्यकारिणी में शामिल की गई हों, लेकिन राजनीतिक हलकों का मानना है कि उन्हें महज़ मोहरे की तरह रखा गया है। उनकी असल भूमिका सीमित रहेगी और शक्ति-संतुलन पर उनका कोई बड़ा असर नहीं होगा।
कटारिया गुट की नाराज़गी सबसे गंभीर चुनौती बन सकती है। राजकुमार चित्तौड़ा, अतुल चंडालिया, दीपक बोल्या, गजेंद्र भंडारी और डॉ. किरण जैन जैसे नेताओं को की उपेक्षा की गई है। यही वजह है कि अनुमान लगाया जा रहा है कि कटारिया समर्थक समानांतर संगठन खड़ा कर सकते हैं। हाल के कुछ कार्यक्रमों में इसकी झलक भी मिल चुकी है।
कुल मिलाकर उदयपुर शहर भाजपा की नई कार्यकारिणी दिखने में भले संतुलित और युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने वाली लगे, लेकिन असल संदेश यह है कि कटारिया गुट को हाशिये पर डालकर विरोधी खेमे को मज़बूत किया गया है। यह प्रयोग पार्टी के भीतर एकजुटता की बजाय गुटबाज़ी को बढ़ावा दे सकता है। आने वाले दिनों में यही तय होगा कि यह कार्यकारिणी भाजपा को संगठित करेगी या फिर स्थानीय राजनीति में विभाजन की नई रेखा खींच देगी।
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