उदयपुर की पहचान सिर्फ उसके महलों, हवेलियों और इतिहास से नहीं है। इस शहर की आत्मा उसकी झीलों में बसती है। और इन झीलों में भी, फतहसागर का अपना एक रूमानी अंदाज़ है। जब भी यह झील छलकती है, मानो पूरा उदयपुर इश्क़ की खुमारी में डूब जाता है। गेट खुलने के साथ ही पानी की धारा का बहना, बूंदों का उड़ना और हवाओं का झोंका – सब मिलकर ऐसा दृश्य रचते हैं, जैसे कोई कवि अपनी सबसे गहरी प्रेम कविता सुना रहा हो।
इस बार भी नज़ारा वैसा ही था। आसमान में बादलों का डेरा, झील के पानी का भर जाना और ओवरफ्लो का ऐलान। जैसे ही गेट खोले गए, शहर में खुशी की लहर दौड़ गई। लेकिन यह खुशी सिर्फ पानी की नहीं थी, यह उन दिलों की भी थी, जो फतहसागर के किनारे बैठकर प्रेम का स्वाद चखते हैं।
जब पानी गेट से छलककर गिरता है, तो उसकी आवाज़ किसी संगीत जैसी लगती है। दूर-दूर से आए पर्यटक कैमरों में उस दृश्य को कैद कर रहे थे, लेकिन कुछ जोड़े ऐसे भी थे जो तस्वीरों से ज्यादा उस अहसास को जी रहे थे। एक प्रेमी अपनी प्रेमिका का हाथ थामे खड़ा था और गेट से गिरते पानी की बूंदें उन दोनों के चेहरे पर पड़ रही थीं। उस पल में शब्दों की ज़रूरत ही नहीं थी। पानी की हर बूँद मानो उनके लिए एक नया इकरार लिख रही थी।
स्थानीय कवियों ने भी कभी लिखा था—
“फतहसागर की लहरों में, दिलों का संगम होता है,
जहाँ बूंदें चूमती हैं गालों को, वही पहला आलिंगन होता है।”
यह पंक्तियाँ आज फिर ज़िंदा हो उठी थीं।
पर्यटकों की आंखों में इश्क़
उदयपुर आने वाला हर सैलानी फतहसागर को देखे बिना नहीं लौटता। लेकिन जब झील ओवरफ्लो करती है, तब पर्यटक इसे सिर्फ झील नहीं, बल्कि एक रोमांटिक अनुभव के रूप में महसूस करते हैं।
एक दिल्ली से आई युवती कह रही थी—”मुझे लगा जैसे मैं किसी फिल्म के सीन में हूँ। गेट से गिरते पानी की बूंदें, ठंडी हवा और सामने खड़ा मेरा साथी… इस पल को मैं जिंदगी भर याद रखूंगी।”
वहीं, मुंबई से आए एक जोड़े ने कहा—”हमने तो सुना था कि उदयपुर झीलों का शहर है, लेकिन यह नज़ारा तो हमें जैसे किसी परीकथा में ले गया।”
मौसम और मोहब्बत
उदयपुर का मौसम जब भी फतहसागर के साथ तालमेल बैठाता है, शहर रूमानी हो जाता है। हल्की बूंदाबांदी, ठंडी हवाएं और झील की नमी एक ऐसा माहौल रचती हैं, जिसमें हर दिल इश्क़ करने को बेताब हो उठता है। प्रेमी-प्रेमिका झील किनारे बैठकर खामोश भी रहें, तो वह खामोशी किसी लंबी बातचीत जैसी लगती है।
फतहसागर इस शहर के लिए सिर्फ एक जलाशय नहीं है, बल्कि एक रूमानी प्रतीक है। यहां की हर लहर, हर बूंद, हर फुहार मानो मोहब्बत का पैग़ाम लेकर आती है।
फतहसागर की प्रेम कथा
कहते हैं कि फतहसागर झील खुद भी एक प्रेम कथा है। 17वीं सदी में इसे उदयपुर के राजा महाराणा फतह सिंह ने बनवाया था। कहते हैं कि महाराणा जब भी झील किनारे आते, तो यहां की ठंडी हवाएँ और पानी का शोर उन्हें अपनी महारानी की याद दिलाता। धीरे-धीरे यह झील सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक बन गई।
स्थानीय लोकगीतों में भी फतहसागर का ज़िक्र अक्सर इश्क़ और सौंदर्य के प्रतीक के तौर पर किया जाता है—
“फतहसागर री रेणु, प्रेम री कहाणी,
पाणी बगड़तां गूंजे, दिल री रवानी।”
यह गीत बताता है कि जब झील का पानी छलकता है, तो वह प्रेम की धड़कनों की तरह पूरे शहर में गूंजता है।
खुशियों का सागर
गेट खुलने के बाद उदयपुरवासियों ने इसे एक उत्सव की तरह मनाया। लोग झील किनारे पहुंचे, बच्चों ने खुशी से पानी की बूंदों को छुआ, बुजुर्गों ने इसे ईश्वर का वरदान माना और युवाओं ने इसे अपने इश्क़ का मौसम।
बीसलपुर तक पानी पहुंचने की खबर प्रशासनिक तौर पर बड़ी थी, लेकिन शहर के दिलों में यह दिन हमेशा रोमांटिक यादों के लिए दर्ज हो गया।
फतहसागर का ओवरफ्लो हर साल आता है, लेकिन हर बार यह शहर को एक नया प्रेमगीत सुनाता है। यह सिर्फ पानी का बहना नहीं है, बल्कि उन दिलों का मिलना है जो झील के किनारे खड़े होकर खुद को एक-दूसरे में ढूंढ लेते हैं। उदयपुर का यह नज़ारा बताता है कि प्यार और पानी – दोनों जब बहते हैं, तो उन्हें रोका नहीं जा सकता।
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