खेलभावना पर राजनीति भारी : भुवाणा की जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता में गड़बड़ी से लौटे निराश खिलाड़ी

उदयपुर। 8 से 11 अक्टूबर तक शहीद लेफ्टिनेंट अभिनव नागौरी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, भुवाणा (उदयपुर) में आयोजित 69वीं जिला स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता ने अंत में खिलाड़ियों को वह नहीं दिया जिसकी उन्हें उम्मीद थी — सम्मान, पारदर्शिता और निष्पक्षता। चार दिन तक मैदान में पसीना बहाने वाले छात्र-छात्राओं को अंत में सिर्फ निराशा और अपमान मिला।

पारितोषिक वितरण समारोह 11 अक्टूबर की दोपहर आयोजित किया गया था। खिलाड़ियों और उनके परिवारजनों के लिए यह पल गौरव का होना चाहिए था, लेकिन वहां जो हुआ उसने पूरे आयोजन की गरिमा पर सवाल खड़े कर दिए।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, विद्यालय के कर्मचारी और आयोजक आपस में ही एक-दूसरे को स्मृति चिन्ह देकर मंच की औपचारिकता निभाते रहे। जब विजेता खिलाड़ियों के नाम पुकारे जाने की बारी आई, तो आयोजकों ने कथित तौर पर अपनी पसंद के स्कूलों के छात्रों को ही मेडल और प्रमाणपत्र दिए।

जिन खिलाड़ियों ने विभिन्न खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था, परंतु उन्हें मंच पर नहीं बुलाया गया — उनके अभिभावकों ने जब इस पर आपत्ति जताई तो हालात बिगड़ गए।
आयोजकों और कुछ स्टाफ सदस्यों ने परिवारों से बदतमीज़ी की, जिसके बाद माहौल तनावपूर्ण बन गया। काफी बहस और विरोध के बाद आयोजक यह कहकर पीछे हट गए कि “मेडल बाद में संबंधित स्कूलों में भेज दिए जाएंगे।”

चार घंटे तक चले इस कार्यक्रम के अंत में न तो खिलाड़ियों को सम्मान मिला, न परिवारों को संतोष।

“हमने जीता था, लेकिन सम्मान नहीं मिला

एक छात्रा ने कहा, “मैंने खो-खो में पहला स्थान हासिल किया था, कोच ने नाम भी भेजा था, पर जब मंच पर बुलाया गया तो किसी और स्कूल के बच्चों को मेडल दे दिया गया। हमें कहा गया कि बाद में दे देंगे, लेकिन ये ‘बाद में’ कब आएगा — कोई नहीं जानता।”

एक अन्य छात्र के पिता ने बताया कि उन्होंने अपने खर्चे पर दूर गाँव से आकर बेटे का प्रदर्शन देखा था, “बच्चे को उम्मीद थी कि आज सम्मान मिलेगा, लेकिन उसे सिर्फ अपमान झेलना पड़ा।”

सवालों के घेरे में आयोजन समिति

स्थानीय खेल अधिकारी और विद्यालय प्रशासन के बीच समन्वय की कमी साफ़ दिखाई दी। ऐसे आयोजन, जो युवाओं में खेलभावना और अनुशासन का संदेश देने के लिए होते हैं, अब “पसंद-नापसंद और अंदरूनी राजनीति” के मंच बनते जा रहे हैं।

जब बच्चों को उनकी मेहनत का न्याय नहीं मिलता, तो सवाल उठता है —
क्या जिला स्तर की प्रतियोगिताएं भी ‘प्रबंधन के प्रभाव’ में संचालित हो रही हैं?

खेल शिक्षक रमेश चौधरी बताते हैं, “इस तरह की घटनाएं न केवल खिलाड़ियों का मनोबल तोड़ती हैं, बल्कि भविष्य में उनकी खेलों के प्रति रुचि भी खत्म कर देती हैं। आयोजकों को पारदर्शिता और निष्पक्षता की जिम्मेदारी निभानी चाहिए।”

खेलकूद का उद्देश्य बच्चों में प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ सहयोग, सहिष्णुता और टीम भावना विकसित करना होता है। परंतु जब पुरस्कार वितरण ही पक्षपात और अपमान का केंद्र बन जाए, तो छात्र किस आदर्श की ओर देखें?

दूर-दराज़ के इलाकों से आए खिलाड़ियों को उम्मीद थी कि वे अपने प्रदर्शन से जिले का नाम रोशन करेंगे। लेकिन कार्यक्रम की अव्यवस्था और मनमानी ने उनकी मेहनत पर पानी फेर दिया।

अब कई अभिभावक जिला शिक्षा अधिकारी और खेल विभाग से जांच और कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि ऐसे आयोजनों में पारदर्शिता नहीं होगी, तो बच्चों का विश्वास टूटेगा और भविष्य में खेलों में भागीदारी भी घटेगी।

भुवाणा की यह प्रतियोगिता केवल एक आयोजन नहीं थी — यह उस व्यवस्था का आईना बन गई, जहां
“सम्मान” की जगह “संबंध”,
“मेहनत” की जगह “पहचान”
और “खेलभावना” की जगह “राजनीति” ने ले ली है।

अब देखना यह है कि क्या इस घटना से कोई सबक लिया जाएगा, या फिर अगली प्रतियोगिता में भी वही पुराना “गड़बड़झाला” दोहराया जाएगा।

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