बर्थ-डे पॉलिटिक्स : उदयपुर में गुलाबचंद कटारिया का जन्मदिन और बीजेपी की बदलती सियासत

उदयपुर। पंजाब के राज्यपाल और मेवाड़ की राजनीति के अनुभवी चेहरे गुलाबचंद कटारिया का जन्मदिन एक बार फिर उदयपुर में सियासी चर्चाओं का केंद्र बन गया है। तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन इस बार के जश्न में एक नया सियासी ट्विस्ट भी है।
कार्यक्रम वही हैं — पूजा, सत्संग, सम्मान समारोह और सामाजिक मिलन — जो बीते दो दशकों से उनकी पहचान बन चुके हैं। मगर फर्क इतना है कि इस बार भी संगठन के चेहरे जश्न से दूर हैं।

यह दूसरी बार है जब कटारिया के जन्मदिन के अवसर पर उनके नज़दीकी और पार्टी संगठन के कुछ अहम लोगों को कार्यक्रमों से दूरी बना लेनी पड़ी है। इससे पहले साल 2008 में भी ऐसा ही कुछ हुआ था — जब कटारिया के अपने किलेदार उनसे खफा हुए और बाद में उनके चारों ओर नए ‘पहरेदारों’ का घेरा बन गया था।

संगठन से दूरी या रणनीति का हिस्सा?

इस बार भी उदयपुर बीजेपी के जिला पदाधिकारी समारोह में नज़र नहीं आएंगे। कटारिया के कुछ पुराने समर्थक, मंडल और जिले के चुनिंदा पदाधिकारी ही शामिल किए गए हैं। हालांकि फर्क बस इतना है कि उस समय कटारिया सक्रिय राजनीति में थे — मंत्री भी थे और प्रदेश संगठन में उनकी पकड़ बेहद मजबूत थी। अब वे संवैधानिक पद पर हैं, मगर उदयपुर शहर बीजेपी में उनका प्रभाव अब भी कायम है।

 

जिले की नई कार्यकारिणी में उनके करीबी चेहरों को या तो जगह नहीं मिली, या उन्होंने खुद किनारा कर लिया। हाल ही में हुए सत्ता और संगठन से जुड़े कार्यक्रमों में शहर बीजेपी के भीतर गुटबाज़ी साफ दिखाई दी — एक धड़ा कटारिया के पुराने समर्थकों का, तो दूसरा वर्तमान नेतृत्व के इर्द-गिर्द। जनता भी इस विभाजन को महसूस करने लगी है।

वापसी की पटकथा : किलेदारों की फिर एंट्री

दिलचस्प यह है कि इस बार के जन्मदिन कार्यक्रमों में वो किलेदार भी शामिल हो रहे हैं, जिन्होंने अब तक दूरी बना रखी थी। जन्मदिन की पूरी प्लानिंग विधायक ताराचंद जैन के जिम्मे है — वही जैन जो कभी किलेदारों के मुखिया माने जाते थे। अब यही जैन कार्यक्रम की कमान संभाले हुए हैं, जबकि यह भी जगजाहिर है कि पार्टी के पदाधिकारियों और जैन के बीच रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे।

राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह जन्मदिन सिर्फ एक औपचारिकता है या कटारिया कैंप की सियासी पुनर्स्थापना की शुरुआत?
उदयपुर में इसे “बर्थ-डे पॉलिटिक्स” कहा जा रहा है — जहां हर केक काटने से पहले सियासी गणित जोड़ा जा रहा है।

आने वाले निकाय चुनाव : सियासत का असली टेस्ट

उदयपुर की सियासत में असली खेल तो आने वाले निकाय चुनावों में देखने को मिलेगा। लगभग तीन दशक से नगर निकायों में एकतरफा जीत दर्ज कर रही बीजेपी को इस बार कांग्रेस पूरी ताकत से चुनौती देने के मूड में है। कांग्रेस के स्थानीय नेता कटारिया समर्थक खेमे में सेंध लगाने की कोशिशों में हैं।

उधर, बीजेपी की अंदरूनी राजनीति भी पार्टी के लिए कम सिरदर्द नहीं। जिलाध्यक्ष पद की रेस में कई पुराने कटारिया समर्थक भी अब नई लाइन पकड़ रहे हैं — ऐसे में यह जन्मदिन महज़ उत्सव नहीं, बल्कि कटारिया और उनके समर्थकों के भविष्य की सियासी दिशा तय करने वाला आयोजन साबित हो सकता है।

कटारिया की छवि और मौजूदा समीकरण

गुलाबचंद कटारिया भले ही अब राज्यपाल हैं, लेकिन उनका सियासी रसूख मेवाड़ की गलियों से मिटा नहीं है। उनकी कार्यशैली, अनुशासन और संगठन पर पकड़ ने उन्हें दशकों तक बीजेपी के स्तंभों में शुमार किया।

मगर अब तस्वीर बदल चुकी है — नई पीढ़ी के नेताओं और संगठन के बदलते समीकरणों के बीच कटारिया का असर सीमित किया जा रहा है, यह कई जानकारों की राय है। हालांकि, उनके समर्थकों का कहना है कि “कटारिया चाहे पद पर हों या बाहर, उदयपुर की राजनीति उनके बिना पूरी नहीं हो सकती।”

जन्मदिन या शक्ति प्रदर्शन?

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह जन्मदिन सिर्फ एक समारोह नहीं, बल्कि एक सॉफ्ट पावर शो है। जहां देखा जाएगा कि आज भी कितने लोग कटारिया की पुकार पर जुटते हैं।
क्योंकि मेवाड़ की राजनीति में एक पुराना सिद्धांत आज भी चलता है — “कटारिया के कार्यक्रम में भीड़ देखो, उसी से तय होता है कि सियासत किस ओर बह रही है।”

कटारिया का यह जन्मदिन उदयपुर में सियासत का एक और ‘टेम्परेचर मीटर’ साबित होने जा रहा है। कौन पास आता है, कौन दूर रहता है —कौन नमक खाता है, और कौन नया पका रहा है — यह सब तय करेगा कि आने वाले महीनों में उदयपुर की बीजेपी किस दिशा में जाएगी।

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