उदयपुर। प्रकृति में वेटलैंड किडनी व जंगल, बाग -बगीचे फेफड़ों की तरह कार्य करते हैं। यदि ये नही बचे तो इंसान भी नही बचेगा। उदयपुर की झीलों रूपी वेटलैंड संकट के कगार पर है। आशा की जानी चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा रामसर वेटलैंड सिटी घोषित होने के पश्चात झीलों के शहर उदयपुर के पहाड़, पेड़, प्राकृतिक नदी नालों , झील पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखने, संवर्धित करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
यह विचार विश्व वेटलैंड दिवस 2 फरवरी की पूर्व संध्या पर विद्या भवन पॉलिटेक्निक सभागार में आयोजित ” वेटलैंड व मानव कल्याण” विषयक कार्यशाला में व्यक्त किये गए।
आयोजन भारत डेनमार्क संयुक्त शोध डानिडा आई डब्लू आर एम योजना के तहत विद्या भवन, डी ए, डी एच आई, कोपेनहेगेन विश्वविद्यालय, पर्यावरण संरक्षण गतिविधि, इंस्टिट्यूशन ऑफ टाउन प्लानर्स, झील संरक्षण समिति व सक्षम संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
प्रारम्भ में पॉलिटेक्निक प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने कहा कि आयड़ बेसिन की झीलों, तालाब, नदी, नालों के समग्र प्रबंधन, सुरक्षा व संवर्द्धन के लिए नागरिकों, वैज्ञानिकों, राजनेताओं, प्रशासकों को मिल कर प्रयत्न करने होंगे।
आर्किटेक्ट सुनील लड्ढा ने कहा कि झीलों के आसपास निर्माणो पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए ताकि देशी प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक आवास बने रह सके।
जीव विज्ञानी डॉ सुषमा जैन ने वेटलैंड पर्यवारण की समृद्धि में ही मानव समृद्धि निहित है। सूक्ष्म जीवों, पौधों, जलचरों के बिना झील वेटलैंड अस्वस्थ हो जाती है। झील जलीय तंत्र की सुरक्षा के लिए झीलों को मानवीय प्रदूषण से बचा कर रखना मानव समाज के सुख, स्वास्थ्य व कल्याण के लिए बहुत जरूरी है।
राज्य के पूर्व अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक सतीश श्रीमाली ने कहा कि उदयपुर के समय समय पर बने मास्टर प्लान में झीलों की सुरक्षा के प्रावधान रखे गए। लेकिन झील क्षेत्र में आपसी मिलीभगत से हो रहे व्यावसायिक निर्माणो के कारण मास्टर प्लान की सोच साकार नही हो पा रही है व झीलों पर आघात बढ़ रहा है।
कार्यक्रम में सीटीएई के पूर्व डीन डॉ. आरसी पुरोहित, झील प्रेमी कुशल रावल, वाटरशेड विशेषज्ञ हँसमुख गहलोत, आई आई टी मुंबई के जल स्रोत शोधकर्ता डॉ कुलदीप सहित मोहम्मद सिकंदर , रघुवीर देवड़ा ने कहा कि वेटलैंड संरक्षण पर व्यापक जनजागृति अभियान की जरूरत है। धन्यवाद सिविल इंजीनियरिंग विभागाध्यक्ष जेपी श्रीमाली ने दिया।
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