उदयपुर। बेटी फिर कटघरे में है। बेटी के लवमैरिज करने पर एक परिवार ने जिंदा बेटी को मरा हुआ मान लिया और उसका मृत्युभोज तक करवा दिया। यही नहीं बिरादरी में इसके लिए शोक पत्रिका भी भेजी गई। दरअसल यह घटना उदयपुर जिले के सायरा थाना क्षेत्र के एक गांव की है। इस घटना पर एक सवाल जरूर उठ रहा है कि आखिर बेटी ही क्यों कटघरे में है? बेटा क्यों नहीं? कभी बेटे के लवमैरिज करने पर किसी ने क्यों मृत्युभोज नहीं किया। यह समाज की हकीकत है जिसको स्वीकारना मुश्किल भी है।
21वीं सदी में इस तरह की घटनाएं हिलाकर नहीं रख देती है। हालांकि देश में लवमैरिज के नाम पर ऑनर कीलिंग की कई घटनाएं हो चुकी है, जिनका विरोध तो सभी जगह हुआ, लेकिन बेटियों को आजादी अब भी नहीं मिल सकी। कहते हैं कि यह सबकुछ एजुकेशन पर निर्भर करता है, लेकिन बेटी को तो वे लोग भी कटघरे में खड़ा करते हैं जो पढ़े लिखे हैं। दिल्ली में स्वाति मालीवाल का केस हो या पहलवान बेटियों का सभी जगह बेटियों को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।
पॉलिटिक्स भी इन्हीं बेटियों पर की जा रही है। सच यह है कि न आप के लोग अरविंद केजरीवाल के पीए के विरोध में खड़े हुए और ना ही बीजेपी के लोगों ने बृजभूषण सिंह की मुखालफत की। लोकसभा चुनावों में हर जगह बेटी ही केंद्र में दिखाई दे रही है। चाहे वो संदेशखाली का मामला हो या हाथरस का।
इन सबको लेकर चर्चाएं और बहस होती है, लेकिन बोल्ड निर्णय नहीं लिए जाते हैं। यह तो सिर्फ अंतरजातीय विवाद का मामला था। सोचिए यदि यही मामला किसी कस्बे या शहर में होता तो लव जिहाद बन जाता। सच यह है कि आज हमारे ही समाज में ब्याही गई बेटियां अपने ही ससुराल में प्रताड़ित की जा रही हैं। इन परेशानियों के झेलने के बावजूद बेटी और मां-बाप समाज के दबाव में चुप हैं। मां-बाप बेटी के साथ खड़े होने की बजाय बेटी को समझाते हैं। मैंने और आपने भी अपने आसपास किसी ने किसी बेटी और बहू काे प्रताड़ित होते हुए देखा होगा, लेकिन आवाज उठाने वाले कम ही लोग होते हैं।
दरअसल इन सब के पीछे लोगों का नजरिया और मानसिकता वजह है। जब तक समाज में लोगों की मानसिकता या नजरिया नहीं बदलेगा बेटियां हमेशा कटघरे में ही रहेंगी।
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