उदयपुर। राजस्थान की राजनीति एक बार फिर करवट लेती हुई दिखाई दे रही है। इसमें भील प्रदेश बनाने का मुद्दा बनकर उभर रहा है। बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम में बाप समेत अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं के नेतृत्व में गुरुवार को महारैली का आयोजन किया गया और भील प्रदेश की मांग को दोहराया गया। रैली में राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के जिलों को शामिल करने के प्रस्ताव पर चर्चा हुई। वहीं दूसरी ओर उदयपुर में गुरुवार को जनजाति के संत समाज की धर्म संसद का आयोजन हुआ।
पहले बात करते हैं महारैली की। महारैली में राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ धाम पहुंचे। इस रैली में कई सांसद-विधायक भी शामिल हुए। मानगढ़ धाम आदिवासियों का तीर्थ स्थल है।
बांसवाड़ा से भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के सांसद राजकुमार रोत ने कहा- भील प्रदेश की मांग नई नहीं है। बीएपी पुरजोर तरीके से यह मांग उठा रही है। महारैली के बाद एक डेलीगेशन राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से प्रस्ताव के साथ मुलाकात करेगा।
राजस्थान सरकार भील प्रदेश की मांग पहले ही खारिज कर चुकी है। बीजेपी ने भी भील प्रदेश की मांग को नकार दिया है। जनजाति मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने कहा कि जाति के आधार पर स्टेट नहीं बन सकता। ऐसा हुआ तो अन्य लोग भी मांग करेंगे। हम केंद्र को प्रस्ताव नहीं भेजेंगे। खराड़ी ने यह भी कहा कि जिसने धर्म बदला उनको आदिवासी आरक्षण का लाभ न मिले। खराड़ी ने डूंगरपुर दौरे के दौरान यह बयान दिया।
इधर, उदयपुर में गुरुवार को ’श्री संत समाज’ की धर्म संसद स्थानीय किसान भवन में आयोजित हुई। लसाड़िया गादीपति विक्रमदास महाराज के संरक्षण व संत गुलाबगिरी महाराज के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुई। इसमें गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान के आदिवासी समाज में कार्यरत पूज्य संत, धाम-धूणी गादीपति और भक्तजनों ने भाग लिया।
सांसद डॉ. मन्ना लाल रावत ने सभी धर्म गुरुओं का उपरणा ओढ़ा कर स्वागत, अभिनंदन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। धर्म गुरुओं ने इस विषय पर गहरी चिंता व्यक्त की कि कतिपय तत्वों द्वारा वर्तमान में जनजाति समाज की मूल संस्कृति को हानि पंहुचाई जा रही है। साथ ही उन्होंने युवाओं में फैलते वैचारिक प्रदूषण और धर्मान्तरण पर भी चिंता व्यक्त की। धर्म संसद में जनजाति समाज के दीर्घकालिक विकास, संस्कृति-रक्षा व समाज सुधार के लिए प्रस्ताव भी पारित किए गए। इन प्रस्तावों में जो दृढ़ राखे धर्म को… जो कि हमारे पुरखों का विचार है।
इस विचार का अभिप्राय धर्म अर्थात सनातन धर्म जिसे आत्मसात करेंगे। आदिदेव महादेव व आदिशक्ति हमारे मूलाधार है। इसी से हम आदिवासी है। गवरी जैसी साधना पद्धतियों को जन-जन तक पहुंचाएंगे। कुल ऋषि वालमा व भीली रामायण पर नियमित शोध व चर्चा करेंगे। जनजातियों के सभी गोत्रों की कुलदेवी व कुलदेवता का पूर्ण सम्मान करेंगे। जय सीताराम बोलने वाले रामा दल के राष्ट्रीय संत सुरमाल दास जी महाराज पर फिल्म बनाई जाएगी। त्रिवेणी बेणेश्वर में संतों का प्रतिवर्ष माघपूर्णिमा को शाही स्नान का आयोजन करेंगे। जनजातीय आस्था स्थलों का संरक्षण व विकास करेंगे। सरकार का सहयोग लेंगे। परम्परागत संबोधन राम-राम, जै गुरू, जै रामजी की, जै सीताराम को जोर-जोर से बोलने और प्रचार-प्रसार करने का निर्णय लिया।
मनसा वाचा व्रत कथा के चार माहों के आयोजन में क्षेत्र में तीर्थ यात्राओं व पैदल यात्राओं का आयोजन करने, संत सुरमालदास महाराज के कृतत्व-व्यक्तित्व को शिक्षा पाठ्यक्रम में सम्मिलित कराने, पुरखो की स्मृति में अधिकाधिक वृक्षारोपण-बरगद, पीपल, बिल्व वृक्षों का रोपण करने का भी प्रस्ताव लिया। प्रवक्ता बंसीलाल कटारा ने बताया कि इस धर्म संसद में 70 से अधिक संतों की उपस्थिति रही। समाजसेवी चन्द्रगुप्त सिंह चौहान, बी.एस.राव, डॉ. लक्ष्मण राठौड़, सी.बी. मीणा, दीपक शर्मा, विभोर पटवा, बंसीलाल कटारा, परमेश्वर मईड़ा भी उपस्थित रहे।
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