उदयपुर। हिरोशिमा स्मृति दिवस की 179 वीं वार्षिकी के अवसर पर शांति पीठ संस्थान के तत्वावधान में सूचना केन्द्र सभागार में ‘शान्ति संस्कृति में युवा पहल’’ विषयक संवाद एवं शान्ति सभा का आयोजन हुआ।
युवा सम्मेलन को संबोधित करते हुए साहित्यकार प्रो. श्रीनिवास अय्यर ने कहा कि एक ओर सर्वशक्तिमान बनने की होड़ मानावता की दुश्मन है, दूसरी ओर ग्लोबेलाईजेशन आज के परिवेश में वाणिज्यिक लाभ पहुंचाने का द्योतक बन गया है। बाजार हावी है, ब्राण्ड जो विदेशी है उन्हें युवाओं के मध्य लाकर एक सतरंगी अंधेरा बरसाया जा रहा है। उन्होंने कहा हर आयोजन छात्रों की क्लास है केवल चित्र बनाना रचनात्मकता नही, मानवता को गढ़ना रचनात्मकता है।
शान्तिपीठ प्रमुख अनन्त गणेश त्रिवेदी ने कहा कि हिरोशिमा की विभीषिका से सबक न लेकर विनाश के हालात ने भस्मासुर पैदा किये है और सन्निकट सामूहिक आत्मघात को आमंत्रित किया है। जरूरत है आदमी में समायी वैष्णवी शक्ति जागरण की। उन्होंने हिरोशिमा से पैदा हुए जापान के अकल्पनीय क्षति का हवाला देते हुए वर्तमान हालात की गंभीरता की ओर इशारा करते हुए कहा कि सेटेलाईट की नई होड़ के चलते शान्तिपूर्ण अंतरिक्ष कार्यक्रम पर भी ग्रहण लग चुका है। आर्टिफिशियल इन्टेलीजेंस, स्पेस और थर्मो न्यूक्लियर त्रिकोण अत्यन्त चिंता का विषय है। उन्होंने कहा दो राह पर खडे़ आदमी को एक रास्ता चुनना है; मानवीय आदर्शों का आध्यात्मिक रास्ता अथवा सर्वनाश का। जरूरत है संवादों की सच्चाई और वसुधैव कुटुम्बकम के निहितार्थ खोजने की।
डॉ. अशोक जैतावत ने कहा कि विज्ञान के आधुनिक विस्तार से सजग रहते हुए शान्ति की ओर अग्रसर होना है। एनसीसी अधिकारी राजेश कुमार ने भी विचार रखे। सेंट एंथनी की योगिता ने कविता व सिद्धार्थ एवं अंजली ने नाटिका प्रस्तुत की। राजस्थान महिला परिसर की लक्ष्मी राठौड़, एनसीटी मुस्कान सोलंकी, जयदीप विद्यालय के नरेश सुथार ने भी विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में रिटायर्ड डीएफओ सोहेल मजबूर सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन मौजूद रहे।
प्रारम्भ में विद्यालयों के छात्र-छात्राएँ हाथों में तख्ती, बैनर, चार्ट आदि लेकर आयोजन स्थल पर पहुँचे। कार्यक्रम के अंत में सभी ने खड़े होकर पर्यावरण-प्रकृति संरक्षण, आणविक निःशस्त्रीकरण, न्याय और मानवीय आदर्शो के लिए प्रतिबद्धता की शपथ ली। हिरोशिमा नागासाकी नरसंवार में दिवंगत आत्माओं तथा केरल में प्राकृतिक आपदा में मृत लोगों की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया।
राष्ट्रगान के साथ समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉ. भूपेन्द्र शर्मा ने किया। प्रो. डी.एस.राठौड़ ने आभार व्यक्त किया।
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