
नई दिल्ली/उदयपुर। राजस्थान के उदयपुर ज़िले के बाघदड़ा नेचर पार्क में सुबह की धूप जैसे ही हरियाली पर उतरती है, तालाब की शांत सतह पर हलचल शुरू होती है। यह कोई आम दिन नहीं, एक नई शुरुआत का प्रतीक है — उस बदलाव की जो वर्षों से इन जल स्रोतों, झाड़ियों और चुपचाप बहते जीवन में इंतज़ार कर रहा था। और इस बदलाव की नींव रखी है एक अनोखी साझेदारी ने — हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड और उदयपुर वन विभाग की एक ऐतिहासिक पहल ने।
वल्र्ड बायोडायवर्सिटी डे पर इस पार्क में मगरमच्छ संरक्षण रिजर्व को विकसित करने के लिए 5 करोड़ रुपये की साझेदारी का ऐलान हुआ — एक ऐसा निवेश, जो केवल मगरमच्छों की सुरक्षा नहीं बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
संरक्षण और कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी : एक प्रभावशाली एमओयू
हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, भारत की एकमात्र और दुनिया की सबसे बड़ी एकीकृत जिंक उत्पादक कंपनी है। इस कंपनी ने उदयपुर वन विभाग के साथ मिलकर एक महत्वपूर्ण एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत बाघदड़ा नेचर पार्क को मगरमच्छों के लिए संरक्षित और उन्नत क्षेत्र में बदलने की योजना है।
इस समझौते में जो पहल की गई हैं, उनमें प्रमुख हैं:
मगरमच्छों के प्राकृतिक आवास को बहाल करना
जल संरक्षण के लिए चेक डैम और तालाबों का निर्माण
विज़िटर फ्रेंडली सुविधाएं, जैसे पैदल पथ, पर्यावरण के अनुकूल शेल्टर और इंटरैक्टिव शैक्षिक केंद्र
स्थायी इको-टूरिज्म को बढ़ावा देना
स्थानीय समुदायों को रोजगार और संरक्षण से जोड़ना
हिंदुस्तान जिंक की चेयरपर्सन का दृष्टिकोण
इस साझेदारी की घोषणा करते हुए प्रिया अग्रवाल हेब्बर, चेयरपर्सन, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने कहा : “बायोडायवर्सिटी हमारे ग्रह का दिल है। हर जीव, चाहे वह तितली हो या बाघ, इस धड़कन का हिस्सा है। हम संरक्षण को अपनी जिम्मेदारी मानते हैं और ऐसा भविष्य चाहते हैं जहां इंसान और प्रकृति साथ-साथ तरक्की करें।”
यह बयान सिर्फ CSR का प्रचार नहीं, बल्कि एक पर्यावरणीय नैतिकता का ऐलान है।
मगरमच्छ : misunderstood sentinel of wetlands
मगरमच्छों को लेकर आम जनमानस में एक डर या घबराहट होती है, लेकिन पारिस्थितिकीय दृष्टि से ये जल स्रोतों के प्राकृतिक संतुलनकर्ता हैं। वे मछलियों की आबादी को नियंत्रित करते हैं, जलाशयों को साफ रखते हैं और कई पक्षियों के लिए खाद्य श्रृंखला का हिस्सा होते हैं।
लेकिन बढ़ता शहरीकरण, अवैध अतिक्रमण और जल स्रोतों का ह्रास इनके अस्तित्व को संकट में डाल चुका है। ऐसे में यह परियोजना न केवल इन्हें बचाने की, बल्कि सह-अस्तित्व की भावना को मजबूत करने की दिशा में एक जरूरी प्रयास है।
वन विभाग की भूमिका और उम्मीदें
उप वन संरक्षक (DCF) सुनील कुमार सिंह का कहना है :-
“हमारे लिए यह साझेदारी एक मौका है — न केवल मगरमच्छों को बचाने का, बल्कि बाघदड़ा को एक जीवंत ज्ञान-केंद्र में बदलने का। निजी और सार्वजनिक भागीदारी से ही हम पारिस्थितिकी की स्थिरता सुनिश्चित कर सकते हैं।”
वन विभाग का फोकस केवल वन्यजीवों पर नहीं, बल्कि क्षेत्रीय जल प्रबंधन, स्थानीय समुदाय और पर्यावरणीय शिक्षा पर भी होगा।
एक हरित भविष्य की रूपरेखा
हिंदुस्तान जिंक इस परियोजना के साथ-साथ कई अन्य पर्यावरणीय योजनाओं में भी अग्रणी भूमिका निभा रही है :
राजस्थान और उत्तराखंड में 20 लाख से अधिक पौधों का रोपण
टेरी (TERI) के साथ मिलकर चंदेरिया में बंजर ज़मीन को हरित क्षेत्र में बदलना
माइकोराइज़ा तकनीक द्वारा जारोफिक्स जैसी विषैली मिट्टी में हरियाली लाना
भारत की पहली कंपनी बनी जिसने TNFD रिपोर्ट (प्रकृति से संबंधित वित्तीय प्रकटीकरण) जारी की
IUCN (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) के साथ तीन साल की साझेदारी
वॉटर पॉज़िटिव बनने, वेस्ट रिसाइक्लिंग और ग्रीनहाउस गैसों को कम करने की दिशा में निरंतर प्रयास
टेक्नोलॉजी और प्रकृति का संतुलन
आज के युग में संरक्षण तकनीक के बिना अधूरा है। बाघदड़ा में भी आधुनिक तरीके अपनाए जाएंगे :
जल स्तर मापने के सेंसर
पर्यटकों के लिए AR/VR आधारित शैक्षिक केंद्र
कैमरा ट्रैप और GPS टैगिंग से मगरमच्छों की निगरानी
डेटा एनालिटिक्स के जरिए पर्यावरणीय रिपोर्टिंग
एक कहानी जो जंगल कहेगा
कल्पना कीजिए — एक बच्चा अपने परिवार के साथ इस पार्क में आया है। वह एक मगरमच्छ को पानी में तैरते हुए देखता है, साथ ही पास ही एक डिजिटल स्क्रीन से उसकी जीवनशैली, आवास और पर्यावरणीय महत्व की जानकारी पाता है। यह सिर्फ भ्रमण नहीं, एक सीख है — जहाँ ज्ञान, प्रकृति और तकनीक का संगम होता है।
संरक्षण के नाम एक साझेदारी
बाघदड़ा नेचर पार्क अब केवल एक प्राकृतिक स्थान नहीं, बल्कि संरक्षण की प्रयोगशाला बनने जा रहा है। और इसके केंद्र में है एक ऐसा एमओयू, जिसने उद्योग और पर्यावरण के बीच विश्वास की एक नई नींव रखी है।
मगरमच्छ की आंखों में अब डर नहीं, भरोसा है। तालाब की लहरों में अब अकेलापन नहीं, लय है। और बाघदड़ा के जंगलों में अब फिर से प्रकृति की सांसें तेज़ हो रही हैं।
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