
मुंबई। जब मैं छोटा था, तो फिल्मी पत्रिकाओं के कवर और अख़बारों के पिन-अप पोस्टर्स पर एक चेहरा बार-बार नजर आता था—कबीर बेदी। गहरी कंजी आंखें, सुतवां नाक, चौड़े जबड़े और उस पर सजी एक ख़ास दाढ़ी। एक ऐसा व्यक्तित्व जो ठहर जाता था मन के किसी कोने में। वक्त के साथ जब उनकी फिल्मों, विज्ञापनों और अंतरराष्ट्रीय शोहरत से सामना हुआ, तब समझ आया कि यह सिर्फ एक चेहरा नहीं, एक पूरी कहानी है। कहानी ज़िंदगी की।
कबीर बेदी का बचपन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
कबीर बेदी का जन्म 16 जनवरी 1946 को लाहौर में हुआ था, जो उस समय ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा था। उनके पिता बाबा प्यारे लाल बेदी एक प्रखर ट्रेड यूनियन लीडर, दार्शनिक और लेखक थे। वे सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय थे और मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित रहे। वहीं उनकी मां, फ्रेडा बेदी, ब्रिटिश मूल की महिला थीं जो बाद में बौद्ध नन बनीं और भारत में रिफ्यूजी बच्चों की शिक्षा और जीवन स्तर सुधारने के लिए अद्वितीय कार्य किए।
इस बहुसांस्कृतिक और बौद्धिक परिवेश ने कबीर बेदी को एक खास दृष्टिकोण दिया—न केवल भारत की विविधता को समझने का, बल्कि विश्व को अपनाने का भी। फ्रेडा बेदी की आध्यात्मिकता और उनके पिता के क्रांतिकारी विचार, दोनों ही कबीर की सोच और जीवनशैली में गहराई से बसे हैं।
थिएटर से शुरुआत और बॉलीवुड में पहचान
कबीर बेदी का करियर 1970 के दशक में थिएटर के ज़रिए शुरू हुआ। उन्होंने दिल्ली में थियेटर ग्रुप्स के साथ काम किया और फिर मुंबई का रुख किया। उनकी गहरी आवाज़, गंभीर व्यक्तित्व और आकर्षक बॉडी लैंग्वेज ने उन्हें जल्दी ही फिल्म इंडस्ट्री में एक अलग पहचान दिला दी।
1971 में बनी फिल्म हलचल से उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा। इसके बाद उन्होंने कुर्बानी, खून भरी मांग, शान, लहू के दो रंग, नागिन जैसी कई फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं। उनका खलनायक से लेकर पिता या राजसी किरदार तक का सफर, एक कलाकार के रूप में उनकी विविधता का प्रमाण है।
इटली और ‘सैंडोकन’ की ऐतिहासिक सफलता
1976 में कबीर बेदी को इटली की एक टेलीविज़न सीरीज़ Sandokan में लीड रोल मिला। यह सीरीज़ एक समुद्री डाकू की कहानी थी, जिसमें कबीर बेदी ने टाइटल रोल निभाया। यह सीरीज़ जबरदस्त हिट साबित हुई और यूरोप, खासकर इटली में उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता दिलाई। वहां के बच्चों के लिए वे हीरो बन गए और युवाओं के लिए एक आइकन।
Sandokan की लोकप्रियता ने कबीर बेदी को यूरोप का सुपरस्टार बना दिया। यह एक ऐसा पड़ाव था, जहां एक भारतीय अभिनेता को विदेशी ज़मीन पर इतना प्यार और सम्मान मिला, जो उस दौर में कल्पना से परे था।
हॉलीवुड में कबीर बेदी और ‘ऑक्टोपसी’ का जलवा
1983 में कबीर बेदी ने हॉलीवुड की जेम्स बॉन्ड फिल्म Octopussy में खलनायक ‘गॉबिंदा’ का रोल निभाया। उस समय भारतीय अभिनेताओं के लिए हॉलीवुड तक पहुंचना बहुत मुश्किल था, लेकिन कबीर बेदी ने इसे न केवल संभव किया, बल्कि यादगार भी बना दिया।
‘गॉबिंदा’ का किरदार भले ही खलनायक था, लेकिन उसकी चाल, सादगी और दमदार मौजूदगी दर्शकों के मन में बस गई। उन्होंने दिखा दिया कि एक भारतीय कलाकार भी बिना लाउड एक्टिंग या मसाले के, ग्लोबल स्क्रीन पर अपनी छाप छोड़ सकता है।
रिलेशनशिप्स और निजी ज़िंदगी
कबीर बेदी का निजी जीवन भी उनके फिल्मी करियर जितना ही चर्चित और रंगीन रहा है। उन्होंने चार बार विवाह किया—प्रथम पत्नी प्रोतिमा बेदी, एक जानी-मानी ओडिसी डांसर थीं। इस रिश्ते से उन्हें दो संतानें हुईं: पूजा बेदी और सिद्धार्थ। सिद्धार्थ की आत्महत्या ने कबीर की निजी ज़िंदगी को हिला कर रख दिया।
दूसरी शादी उन्होंने ब्रिटिश फैशन डिज़ाइनर सुसैन हम्फ्रीज़ से की, जो कई वर्षों तक चली। तीसरी पत्नी निकी बेदी एक टीवी और रेडियो प्रेज़ेंटर थीं। वर्तमान में वह परवीन दोसांज के साथ विवाहित हैं, जिनके साथ वे लगभग दो दशकों से हैं।
अपने एक इंटरव्यू में कबीर ने कहा, “मेरे किसी रिश्ते में कोई बनावटीपन नहीं था। मैंने जो भी किया, ईमानदारी से किया। मेरे जितने भी रिश्ते रहे, वह सब किसी मुकाम तक पहुंचे और फिर भी हम अच्छे दोस्त बने रहे।”
लेखन और आत्मकथा ‘Stories I Must Tell’
2021 में कबीर बेदी ने अपनी आत्मकथा Stories I Must Tell: The Emotional Journey of an Actor प्रकाशित की। इस किताब में उन्होंने अपने जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव, रिश्तों, अंतरराष्ट्रीय करियर, बेटे की आत्महत्या और खुद के मानसिक संघर्षों के बारे में खुलकर लिखा है।
इस किताब को पढ़ते हुए लगता है कि यह किसी लेखक की कल्पना नहीं, बल्कि एक ऐसा यात्रा-वृत्तांत है जिसमें दर्द भी है, ईमानदारी भी, और हिम्मत भी।
कला के अन्य आयाम : वॉइस ओवर, स्टेज और कविता
कबीर बेदी सिर्फ एक अभिनेता नहीं, एक सम्पूर्ण कलाकार हैं। उन्होंने रेडियो से अपने करियर की शुरुआत की थी और आज भी उनकी आवाज़ का जादू कायम है। हाल ही में उन्होंने रूमी की कविताओं की मंचीय प्रस्तुति दी, जिसमें दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।
उनकी गूंजती आवाज़, ठहराव और भावनात्मक गहराई—ये सब उन्हें एक कलाकार से आगे ले जाकर एक ‘रूहानी प्रस्तोता’ बनाते हैं।
वर्तमान और आने वाले समय की योजनाएं
कबीर बेदी अब भी सक्रिय हैं—चाहे वह भारतीय टीवी शो हों, इंटरनेशनल वेब सीरीज़, या ऑडियोबुक नैरेशन। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भी उनकी रुचि बनी हुई है। वह नई पीढ़ी के साथ काम करने को तत्पर रहते हैं और खुद को समय के साथ अपडेट करते रहते हैं।
उनकी ज़िंदगी का मंत्र स्पष्ट है—“सीखते रहो, चलते रहो।”
एक प्रेरणादायक यात्रा
कबीर बेदी की ज़िंदगी सिर्फ एक अभिनेता की नहीं, बल्कि एक जिज्ञासु इंसान की यात्रा है। उन्होंने रिश्तों को जिया, करियर को अपनी शर्तों पर बनाया और दुनिया को अपनी सादगी और गरिमा से जीता।
उनका जीवन बताता है कि शोहरत सिर्फ ग्लैमर नहीं, बल्कि मेहनत, धैर्य और आत्म-मंथन की परिणति होती है।
कहानी जो दिल से निकलती है
‘कहानी ज़िंदगी की’ जैसे कार्यक्रमों में कबीर बेदी जैसे लोगों की कहानी सामने आना ज़रूरी है। क्योंकि ये वो कहानियां हैं जो हमें याद दिलाती हैं कि संघर्ष कोई रुकावट नहीं, बल्कि रास्ता है। प्यार कोई बोझ नहीं, बल्कि अनुभव है। और ज़िंदगी… वो एक किताब है, जिसमें हर अध्याय हमें कुछ सिखाता है।
कबीर बेदी की कहानी यही कहती है—“रहो सच्चे, रहो जिज्ञासु, और रहो ज़िंदगी के साथ… हर रूप में, हर रंग में।”
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