विदेश में फंसे पिता के लिए बेचैन बेटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस : हत्या या बंधक बनाए जाने का शक, विदेश मंत्रालय से लगाई गुहार

उदयपुर। एक बेटे की आंखों में चिंता, चेहरे पर थकान, और दिल में उम्मीद की जलती बुझती लौ थी। उसका बाप, जिसे उसने बचपन से हर मुश्किल से लड़ते देखा था, आज कहीं दूर, विदेश की अंजान सरज़मीन पर लापता है। बेटे बिष्णु मेनारिया ने मीडिया के सामने अपनी टूटती उम्मीदों और बेबसी को पेश किया। वह बार-बार एक ही सवाल कर रहा था: “क्या मेरे पिता की हत्या हो चुकी है, या फिर उन्हें किसी अंधेरे कमरे में बंधक बना लिया गया है?”

यह कहानी उदयपुर के एक साधारण परिवार की है, जिसके लिए अब हर गुजरता पल एक अनंत दर्द में तब्दील हो रहा है। बिष्णु ने बताया कि उनके पिता, शेफ मुकेश मेनारिया, आठ साल पहले दिल्ली के एक व्यापारी, पंकज ओसवाल के साथ स्विट्जरलैंड गए थे। उनका वहां एक अच्छा-खासा कारोबार था, और हर साल वे भारत लौटकर अपने परिवार से मिलते रहे। पर अब, दो साल से वे घर नहीं लौटे और पिछले दो महीने से उनका फोन भी बंद है। यह खामोशी अब परिवार के दिलों में डर और आशंका भर रही है।

चिंता में डूबी परिवार की दुनिया
घर के हर कोने में उनके पिता की यादें बिखरी हुई हैं। मां की आंखों में चिंता, बेटे के हाथों में थरथराते हुए फोन, और हर घड़ी पर टकटकी लगाए इंतजार करते परिवार का दर्द महसूस करना मुश्किल नहीं है। बेटे ने बताया कि उन्हें एक दिन पंकज ओसवाल के वकील से फोन आया, जिसने कहा, “अगर अपने पिता की सलामती चाहते हो तो कोई कदम मत उठाना।” उस फोन के साथ ही बिष्णु की सांसें और तेज़ हो गईं। वकील ने उन्हें दो खाली चेक मांगे—75 लाख के, उनकी और उनकी मां के नाम से। बिष्णु ने वो चेक भेज दिए, शायद पिता को वापस लाने की उम्मीद में। लेकिन उसके बाद सिर्फ खामोशी मिली।

सिस्टम की नाकामी और दर्द
बिष्णु की शिकायतें पुलिस तक पहुंची, फिर एम्बेसी तक, लेकिन डेढ़ महीने बाद भी कुछ नहीं बदला। उनकी उम्मीदें विदेश मंत्रालय और प्रशासन से जुड़ी हैं, पर हर बीतते दिन के साथ उम्मीदों का दामन छोटा होता जा रहा है। पिता की सलामती की कोई खबर नहीं है, और बेटे का दिल हर बीते पल के साथ धड़कना भूलता जा रहा है।

हर एक पल बोझ बनता जा रहा है
घर में अब बस एक खालीपन है—वो खालीपन जो मुकेश मेनारिया की मौजूदगी के बिना परिवार पर भारी पड़ रहा है। बेटे के दिल में सवाल, मां की आंखों में आंसू, और घर के कोनों में सिसकियां… शायद ही कोई इस पीड़ा को शब्दों में बयां कर सके। बिष्णु की प्रार्थना अब सिर्फ यही है कि कहीं से एक अच्छी खबर आए, एक इशारा मिले कि उनके पिता ज़िंदा और सुरक्षित हैं।

क्या देश का प्रशासन और विदेश मंत्रालय इस परिवार के आंसू पोंछने के लिए आगे आएंगे, या फिर ये चीखें सिर्फ धुंधलाते अतीत का हिस्सा बनकर रह जाएंगी?

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