उदयपुर। उदयपुर शहर अपनी झीलों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, लेकिन इन दिनों यहां की जीवनरेखा कही जाने वाली आयड़ नदी सुर्खियों में है। वजह यह है कि पिछले दो दिनों से यह नदी उफान पर है और शहर के कई हिस्सों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई है। सवाल यह उठता है कि जिस नदी पर करोड़ों रुपए खर्च कर उसे संवारने और आधुनिक स्वरूप देने की कोशिशें की गईं, वही आज आपदा का रूप क्यों ले रही है? क्या यह केवल कुदरत की मार है या कहीं न कहीं हमारी अपनी गलतियों का नतीजा?
पर्यावरण और प्रकृति पर गहरी पकड़ रखने वाले भूगोलवेत्ता प्रोफेसर पी.आर. व्यास बताते हैं कि आयड़ नदी सिर्फ एक जलधारा नहीं है, बल्कि यह उदयपुर की असली जीवनरेखा है। यह नदी गोगुंदा के पास भोरट के पठार से निकलकर पहाड़ियों और घाटियों से होती हुई शहर में प्रवेश करती है। इसके प्राकृतिक ढाल की तीव्रता हमेशा से इसे एक तेज़ और स्वच्छ धारा बनाती रही है। लेकिन आज स्थिति अलग है। हर बरसात में आयड़ अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही है और शहर बाढ़ जैसी मुसीबत झेल रहा है।
आमतौर पर माना जाता है कि बाढ़ केवल अतिवृष्टि की वजह से आती है। जब अधिक मात्रा में बारिश होती है तो नदियां अपनी सीमा लांघकर शहर और गांवों में पानी फैला देती हैं। मगर उदयपुर का मामला इससे अलग है। यहां बारिश पहले भी खूब हुई है, कभी-कभी असामान्य मात्रा में भी, लेकिन तब शहर डूबा नहीं। प्रोफेसर व्यास का कहना है कि असली कारण बारिश नहीं बल्कि नदी के स्वरूप में किया गया मानवजनित हस्तक्षेप है।
पिछले कुछ वर्षों में आयड़ का चेहरा पूरी तरह बदल गया। नदी तल में जगह-जगह निर्माण कर दिए गए। बड़े प्रोजेक्ट्स के दौरान मलबा सीधे नदी में डाल दिया गया। छोटे नाले और धाराएं जो बारिश का पानी लाकर आयड़ से मिलती थीं, उन्हें नई कॉलोनियों और आवासीय योजनाओं ने रोक दिया। नदी की नियमित सफाई पर ध्यान नहीं दिया गया और धीरे-धीरे इसका प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो गया। नतीजा यह हुआ कि पानी की निकासी की क्षमता घट गई। अब जब भी बारिश होती है तो नदी का पानी पहले जैसी तेज़ी से बह नहीं पाता और शहर में जलभराव हो जाता है।
अगर इस तस्वीर को ध्यान से देखें तो साफ़ हो जाता है कि बाढ़ के लिए केवल अतिवृष्टि को दोषी ठहराना सही नहीं है। असली जिम्मेदार तो हम खुद हैं। हमने नदी किनारे अतिक्रमण किए, शहर के विस्तार के नाम पर नालों और जलधाराओं को पाट दिया, समय पर सफाई नहीं की और सबसे बड़ी भूल यह की कि आयड़ को धरोहर मानने के बजाय महज़ एक नाली या ड्रेनेज सिस्टम समझ लिया।
प्रोफेसर व्यास मानते हैं कि समाधान असंभव नहीं है। इसके लिए ज़रूरी है कि नदी किनारों को एक तय दायरे तक रेड ज़ोन घोषित कर दिया जाए, जहां कोई निर्माण न हो। छोटे नालों और जलधाराओं को फिर से जोड़ा जाए ताकि वर्षा जल सीधे नदी तक पहुंच सके। नदी में कचरा और मलबा डालने वालों पर सख्त कार्रवाई हो और सफाई की व्यवस्था नियमित और पुख्ता हो। वृक्षारोपण केवल औपचारिकता न रहकर स्थायी संरक्षण कार्यक्रम बने। और सबसे अहम, आयड़ को केवल जल निकासी मार्ग मानने की बजाय उदयपुर की सांस्कृतिक और पारिस्थितिक धरोहर समझा जाए।
अगर अभी भी शहर ने सबक नहीं लिया तो आने वाले वर्षों में आयड़ बार-बार बाढ़ और जलभराव का संकट लेकर आएगी। यह सिर्फ पर्यावरणीय नहीं होगा, बल्कि सामाजिक और आर्थिक जीवन पर भी गहरा असर डालेगा। शहर का इंफ्रास्ट्रक्चर चरमराएगा, लोगों का जीवन कठिन होगा और प्रशासनिक लापरवाहियों का खामियाजा हर नागरिक को भुगतना पड़ेगा।
दरअसल, आयड़ नदी उदयपुर के लिए प्रकृति का दिया हुआ अनमोल तोहफ़ा है। इसे बचाना केवल सरकार या प्रशासन का दायित्व नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है। बाढ़ को कुदरत की मार मान लेना आसान है, लेकिन सच्चाई यही है कि इस आपदा के पीछे हमारी ही लापरवाहियां और गलत शहरी नीतियां हैं। ज़रूरत इस बात की है कि हम सब मिलकर आयड़ को उसके प्राकृतिक स्वरूप में लौटाएं। तभी यह नदी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवनदायिनी बनी रह सकेगी।
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