
उदयपुर में एक बार फिर वही पुरानी कहानी दोहराई गई—त्योहार आते ही प्रशासन अचानक से जाग जाता है और मिलावटखोरों पर ‘कृपा दृष्टि’ डालने निकल पड़ता है। इस बार बड़गांव स्थित अंबे मिल्क प्रोडक्ट्स की दुकान पर छापा मारा गया, जहां से 58 किलो मिलावटी पनीर बरामद हुआ। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या यह ‘मिलावट के साम्राज्य’ का समापन है, या फिर त्योहार बीतते ही सबकुछ पुराने ढर्रे पर लौट आएगा?
कानून की किताबें और धरातल की सच्चाई
बात कानून की करें तो मामला बड़ा सख्त नजर आता है—मिलावटी पनीर का दोष सिद्ध हुआ तो जुर्माना लाखों में, और अनसेफ पाया गया तो सजा आजीवन कारावास तक जा सकती है! लेकिन सच तो यह है कि ये कड़े नियम सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहते हैं। हर साल मिलावटखोरी पर इसी तरह ‘धमाकेदार’ छापे पड़ते हैं, सैंपल जांच के लिए भेजे जाते हैं, और फिर महीनों तक कोई खबर नहीं आती। आखिर में मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है, और मिलावटखोर फिर से अपना ‘स्वादिष्ट’ धंधा शुरू कर देते हैं।
क्या त्योहार के बाद प्रशासन सो जाता है?
होली हो, दिवाली हो या फिर कोई और पर्व—हर बार मिलावट की जांच करने के नाम पर प्रशासन सड़कों पर उतरता है। लेकिन क्या मिलावट सिर्फ त्योहारों पर ही होती है? क्या आम दिनों में बिकने वाला दूध, मावा, घी और पनीर दूध की नदियों से निकलता है? असल में प्रशासन का यह ‘फेस्टिवल स्पेशल’ अभियान सिर्फ दिखावा होता है। त्योहारों के बाद सबकुछ पहले जैसा हो जाता है और मिलावटखोर फिर से जनता को जहरीला खाना खिलाने लगते हैं।
मिलावटखोरों की ‘रंगीन’ दुनिया
देखिए, मिलावटखोरों की अपनी एक खासियत होती है—वे बड़े जुगाड़ू होते हैं! जब भी प्रशासन का डंडा घूमता है, वे कुछ दिन अंडरग्राउंड हो जाते हैं, और फिर किसी नए नाम से दोबारा ‘शुद्धता’ की दुकान खोल लेते हैं। आम जनता यह सोचकर खुश होती है कि कार्रवाई हो गई, लेकिन असल में सिर्फ नाम बदल जाता है, धंधा वहीं का वहीं रहता है।
व्यंग्य का तड़का : मिलावटखोरी का सालाना महोत्सव
त्योहार आते ही बाजार में नकली मिठाइयां, मिलावटी दूध, सिंथेटिक मावा और पनीर की बहार आ जाती है। इस पर प्रशासन का रिएक्शन भी देखने लायक होता है—”त्योहार है, चलो मिलावट खोजते हैं!” कुछ दिनों की मशक्कत के बाद अचानक सब शांत हो जाता है, जैसे कि अब सारा सामान गंगाजल से धुलकर शुद्ध हो गया हो!
समाधान : दिखावे से हटकर असली कार्रवाई हो
त्योहारों तक सीमित दिखावटी छापों की बजाय पूरे साल कड़ी निगरानी रखी जाए।
दोषियों पर तुरंत कार्रवाई हो, जुर्माने और सजा का डर वास्तविक बने।
जनता को जागरूक किया जाए ताकि वे खुद ही ऐसे उत्पादों का बहिष्कार करें।
जब तक प्रशासन मिलावटखोरों को सिर्फ ‘त्योहार स्पेशल मेहमान’ मानकर कार्रवाई करेगा, तब तक हर साल यह तमाशा यूं ही चलता रहेगा। सवाल यह नहीं है कि 58 किलो मिलावटी पनीर मिला, बल्कि यह है कि 58 किलो के बाद क्या?
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