उदयपुर। न्यू आरटीओ के पास रघुनाथपुरा में हर दिन पैंथर का आतंक बना हुआ है। हाल ही में शिवरात्रि की रात 10:45 पर एक पैंथर को पानी पीते हुए देखा गया, और इससे पहले दूध वितरक ने भी शाम के समय पैंथर को देखा था। यह कोई इक्का-दुक्का घटना नहीं है, बल्कि रोज़मर्रा का डरावना सच बन चुका है।
प्रशासन का हाल यह है कि कॉलोनियों के चारों तरफ झाड़ियां ही झाड़ियां हैं, जो न केवल पैंथर के लिए छिपने की जगह बनाती हैं बल्कि अपराधियों के लिए भी सुरक्षित ठिकाना हैं। सड़कें टूटी हुई हैं, गड्ढों से भरी हैं और ऊपर से अंधेरा ऐसा कि रात के बाद कोई बाहर निकलने की हिम्मत तक नहीं करता।
रहवासियों की जिंदगी दांव पर, लेकिन प्रशासन बेखबर!
विकास के नाम पर सिर्फ बिल्डर और अधिकारियों की जेबें भरी जा रही हैं, लेकिन आम जनता का जीवन भय, असुविधा और असुरक्षा के बीच झूल रहा है। सरकार के जिम्मेदार लोग मौके पर आकर हालात का जायजा लेना तो दूर, शिकायतों को भी नजरअंदाज कर रहे हैं। सवाल यह है कि कब तक जनता को इस अराजकता का सामना करना पड़ेगा? कब तक विकास सिर्फ कागज़ों पर ही सीमित रहेगा और कब तक सुरक्षा और सुविधाओं के लिए लोगों को संघर्ष करना पड़ेगा?
समाधान कब मिलेगा?
रघुनाथ हिल्स और महावीर हाईट्स के निवासी सुरक्षा, सड़क और रोशनी की बुनियादी जरूरतों के लिए प्रशासन की तरफ उम्मीद लगाए बैठे हैं। लेकिन प्रशासन की उदासीनता यह बताती है कि जब तक कोई बड़ा हादसा नहीं होगा, तब तक शायद सरकारी मशीनरी जागेगी ही नहीं!
अब समय आ गया है कि जनता अपनी आवाज बुलंद करे, शिकायत दर्ज कराए और प्रशासन को जवाबदेही के लिए मजबूर करे। वरना, ये कॉलोनियां सिर्फ कंक्रीट के जंगल बनकर रह जाएंगी और आम आदमी की सुरक्षा और सुविधा की बातें सिर्फ चुनावी भाषणों तक सीमित रह जाएंगी!
विकास या अव्यवस्था? रघुनाथपुरा की हकीकत!
उदयपुर के रघुनाथपुरा गांव में विकसित हो रही रघुनाथ हिल्स और महावीर हाईट्स कॉलोनियों की स्थिति विकास के वादों की पोल खोल रही है। सरकार और प्रशासन नए प्रोजेक्ट्स का ढोल पीटने में व्यस्त है, लेकिन यहां बुनियादी सुविधाओं का टोटा है। न तो सड़कें सही हैं, न ही स्ट्रीट लाइट की उचित व्यवस्था, जिससे स्थानीय निवासी हर दिन जान जोखिम में डालकर जीने को मजबूर हैं।
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