जन जागरूकता और सहभागिता से ही संभव है उदयपुर की विरासत का संरक्षण

— विशेषज्ञों ने विश्व विरासत दिवस पर वेबिनार में रखे विचार

उदयपुर। उदयपुर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए केवल सरकारी योजनाएं और बजट ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि इसके लिए जन सहभागिता और जागरूकता अनिवार्य है। यह विचार मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग द्वारा आयोजित “उदयपुर की विरासत” विषयक वेबिनार में उभर कर सामने आए।

वेबिनार के संयोजक डॉ. पीयूष भादविया ने बताया कि विश्व विरासत दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस कार्यक्रम में विभिन्न विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया।


मुख्य वक्ता प्रो. महेश शर्मा ने कहा कि स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत आयड़ नदी के 5 किलोमीटर क्षेत्र में 75 करोड़ रुपए खर्च किए गए, लेकिन आज भी नदी में पहले से अधिक गंदा पानी बह रहा है। इसी प्रकार नवलखा महल और जगदीश मंदिर पर लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए हैं। उन्होंने कहा कि जब तक आमजन की भागीदारी सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक इन धरोहरों का संरक्षण अधूरा रहेगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री सतीश कुमार श्रीमाली, पूर्व अतिरिक्त प्रमुख, शहरी योजना, राजस्थान सरकार ने कहा कि पुराना उदयपुर सुव्यवस्थित था, लेकिन वर्तमान समय में अव्यवस्थित शहरीकरण और गैर-विशेषज्ञों की योजना ने शहर को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने गुलाब बाग के पारंपरिक वृक्षों और स्थानीय फलों की विशेषताओं पर भी प्रकाश डाला।

मुख्य अतिथि प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक श्री अनुराग सक्सेना ने बताया कि संस्थान ने उदयपुर की लगभग 500 विरासत स्थलों की पहचान की है। उन्होंने कहा कि शहर की विरासत ही यहां के लोगों और पर्यटकों के मन में प्रेम का कारण है।

पूर्व संयोजक, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, श्री विलास जानवे ने कहा कि उदयपुर की अमूर्त विरासत को यहां के कलाकारों और शिल्पियों ने सहेजा है। उन्होंने शिल्पग्राम के योगदान को रेखांकित करते हुए आम नागरिकों से विरासत के प्रति संवेदनशील बनने की अपील की।

इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने कहा कि उदयपुर की स्थापत्य कला, गली-मोहल्लों की विशिष्ट बनावट, छोटे-बड़े मंदिर और जल-संरचनाएं इसकी अनूठी पहचान हैं। उन्होंने चेताया कि यदि इसी प्रकार विकास के नाम पर विरासत से समझौता होता रहा, तो आने वाली पीढ़ियों को यह धरोहर नहीं मिल पाएगी।

प्रताप गौरव केन्द्र के शोध निदेशक डॉ. विवेक भटनागर ने नागदा के मंदिरों, जावर की खदानों और पारंपरिक निर्माण तकनीकों को संरक्षित करने की आवश्यकता बताई। उन्होंने युवाओं से इसमें योगदान देने की अपील की।

वेबिनार की शुरुआत में विभागाध्यक्ष प्रो. प्रतिभा ने इतिहास विभाग द्वारा किए गए शोध कार्यों की जानकारी दी। कार्यक्रम में प्रो. दिग्विजय भटनागर, डॉ. मनीष श्रीमाली, अमेरिका से अल्केश जावेरी, मोहित शंकर सिसोदिया, श्वेता पारीक, श्रुति जैन सहित कई विद्वान एवं नागरिक उपस्थित रहे।

विशेषज्ञों ने एक स्वर में कहा कि सरकार की योजनाओं के साथ-साथ जनसमर्थन और स्थानीय सहभागिता से ही उदयपुर की विरासत को सुरक्षित रखा जा सकता है।

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