उदयपुर। उदयपुर में सेप्टिक टैंक की सफाई करते वक्त दम घूटने से हुई मौत के मामले में नगर निगम ही जिम्मेदार हैं। क्योंकि, नगर निगम ने अब तक इस तरह के टैंक व चैम्बरों की सफाई व घटना होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की कोई गाइड लाइन नहीं बनाई है। यदि बनाई है तो फिर उसकी पालना नहीं हो रही है। यह घटना इसी नाकामी का नतीजा है।
सुप्रीम कोर्ट ने गैस चैम्बरों या सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान होने वाली मौतों के मामले में की गई टिप्पणी में इस तरह की घटनाओं को नाजी जर्मनी द्वारा कुख्यात गैस चैंबर की घटना बताया है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा था। केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से सवाल किया कि हाथ से मैला ढोने और सीवेज या मैनहोल की सफाई में लगे लोगों को मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर जैसे उचित सुरक्षात्मक गियर क्यों नहीं उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
जहां तक हमारे नगर निगम का सवाल है-उनके पार्षद, मेयर, डिप्टी मेयर गुलाबबाग में बच्चों की ट्रेन में घूम-घूम कर श्रेय ले रहे थे। जब शहर में कच्चा मकान ढहने की घटना हो या सेप्टिक टैंक में मौतों का मामला हो… क्या निगम के इन जिम्मेदारों ने मीडिया वालों के साथ बैठकर इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई मंथन क्या है? निश्चित रूप से नहीं? अब शहर में कई जर्जर मकान है, लेकिन निगम को कोई परवाह नहीं है।
बहरहाल निगम को अब भी इस तरह की घटनाओं को राेकने के लिए नए नियम बनाने होंगे और उनका सख्ती से पालन करवाना होगा। इस तरह का काम करवाने के लिए प्राइवेट लोगों की भी जवाबदेही तय करनी है, लेकिन उससे पहले निगम को खुद अपनी जिम्मेदारी तय करनी होगी। कलेक्ट्री पर प्रदर्शन कर रहे समाज के लोगों का गुस्सा वाजिब है क्योंकि उनके घर के चिराग बुझे हैं।
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