
उदयपुर। उदयपुर की पहचान बन चुकी फतहसागर की पाल इन दिनों कुछ अलग ही कहानी कह रही है। रंग-बिरंगे फूलों से सजी पाल लोगों को अपनी ओर खींच रही है। सुबह से शाम तक यहां लोगों की भीड़ उमड़ रही है। बच्चे मुस्कान के साथ दौड़ते नजर आते हैं, युवा मोबाइल कैमरों में पल कैद कर रहे हैं और बुजुर्ग भी इस खूबसूरती को निहारते हुए ठहर जाते हैं। फ्लावर शो ने मानो फतहसागर को एक नई ज़िंदगी दे दी है।
इस शो की वजह से पूरी पाल जीवंत हो उठी है। हर तरफ रंग, खुशबू और उत्साह दिखाई देता है। लोगों के चेहरों पर खुशी साफ झलकती है। ऐसा लगता है जैसे शहर ने कुछ पलों के लिए अपनी थकान उतार दी हो। लेकिन इसी खूबसूरती के बीच कुछ सवाल भी मन को कचोटते हैं।
फ्लावर शो में सजे गार्डन कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा तैयार किए गए हैं, लेकिन जिन हाथों से असल में मिट्टी में जान आती है — वे कहीं नजर नहीं आते। न किसी नर्सरी का नाम, न किसी बागवान की पहचान। यह सवाल उठना लाजिमी है कि जिस उदयपुर में राष्ट्रीय कृषि विश्वविद्यालय जैसा प्रतिष्ठित संस्थान है, जहां उद्यानिकी की पढ़ाई और शोध होता है, वहां उनकी भागीदारी क्यों नहीं दिखी। नगर निगम की उद्यान शाखा भी इस आयोजन से दूर नजर आई।
हालांकि इस पूरे आयोजन पर जिला कलेक्टर नमित मेहता ने सकारात्मक रुख दिखाया है। उन्होंने कहा है कि आने वाले समय में इस तरह के आयोजनों को और बेहतर बनाया जाएगा और संबंधित विभागों को भी जोड़ा जाएगा, ताकि यह आयोजन और व्यापक, समावेशी और सार्थक बन सके।
फिलहाल फतहसागर की पाल पर सजी यह फूलों की दुनिया लोगों को सुकून दे रही है, तस्वीरों में मुस्कान भर रही है और शहर को एक नई पहचान दे रही है। लेकिन दिल के किसी कोने में यह सवाल भी है कि क्या आने वाले समय में इस सुंदरता के साथ उन हाथों को भी सम्मान मिलेगा, जो सच में इस हरियाली के पीछे होते हैं?
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