
स्थान : विद्या भवन पॉलिटेक्निक सभागार, उदयपुर
विषय : “Public Health, Well-being और Artificial Intelligence”
मुख्य वक्ता : प्रो. सुभाष हीरा, जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ
संचालक : डॉ. अनिल मेहता
सहयोगी वक्ता : चंद्रेश अरोड़ा, प्रकाश
उद्घाटन
(एंकर/संचालक डॉ. अनिल मेहता):
नमस्कार, आप सभी का स्वागत है विद्या भवन पॉलिटेक्निक सभागार में आयोजित आज की विशेष लाइव परिचर्चा में —
“स्वास्थ्य, वेलनेस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस” पर।
हमारे साथ मौजूद हैं विश्व-प्रसिद्ध जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ, वॉशिंगटन विश्वविद्यालय से जुड़े, जिन्होंने 140 देशों में एड्स, टीबी, मलेरिया, मंकीपॉक्स और कोविड जैसी महामारियों के खिलाफ काम किया है — प्रोफेसर सुभाष हीरा।
डॉ. हीरा, स्वागत है आपका उदयपुर में!
बातचीत की शुरुआत
(प्रो. सुभाष हीरा):
धन्यवाद, डॉ. मेहता। उदयपुर आकर मुझे बहुत खुशी हुई।
आज हम एक ऐसे दौर में हैं जहाँ स्वास्थ्य का अर्थ केवल बीमारी से बचाव नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और तकनीकी संतुलन बनाना भी है।
देखिए, जैसे महिलाओं में मेनोपॉज के दौरान शारीरिक और भावनात्मक बदलाव आते हैं, उसी तरह पुरुषों में भी लगभग पचास वर्ष की आयु के बाद एंड्रोपॉज (Male Menopause) की स्थिति आती है।
यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि पुरुषों में भी उस समय गुस्सा, चिड़चिड़ापन, थकान, और शारीरिक क्षमताओं में कमी जैसी समस्याएँ देखने को मिलती हैं।
लेकिन समस्या यह है कि समाज में इन परिवर्तनों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
मानसिक और व्यवहारगत स्वास्थ्य पर फोकस
(एंकर):
तो क्या आप कहना चाह रहे हैं कि जिस तरह महिलाओं के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं, वैसे पुरुषों के लिए भी स्वास्थ्य जागरूकता जरूरी है?
(प्रो. हीरा):
बिलकुल। पुरुषों में यह बदलाव “कमज़ोरी” नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है।
हमें इसे समझने की ज़रूरत है।
इस दौर में पुरुषों को परिवार और समाज से भावनात्मक समर्थन चाहिए होता है, न कि आलोचना।
अक्सर देखा गया है कि इस अवस्था में गुस्सा, बेचैनी और अनिद्रा जैसी स्थितियाँ संबंधों पर नकारात्मक असर डालती हैं।
इसलिए स्वास्थ्य संस्थानों को “मेन्टल हेल्थ” पर ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है।
महामारी और वैश्विक स्वास्थ्य की दिशा
(एंकर):
डॉ. हीरा, आपने महामारी विज्ञान में लंबे समय तक काम किया है। कोविड के बाद क्या अब दुनिया फिर किसी बड़ी महामारी के खतरे की ओर बढ़ रही है?
(प्रो. हीरा):
देखिए, अगर इतिहास देखें तो 21वीं सदी महामारियों की सदी बन चुकी है।
पिछले सौ साल में हमने प्लेग, स्पैनिश फ्लू, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू और हाल में कोविड-19 जैसी महामारियाँ झेली हैं।
अब इबोला वायरस एक संभावित खतरा बनकर उभर रहा है।
और हमें यह भी समझना होगा कि अब महामारी केवल प्राकृतिक नहीं — बायोवार या बायोटेरर का रूप भी ले सकती है।
🧬 स्वास्थ्य सेवाओं में प्रगति
(एंकर):
आपने अक्सर कहा है कि हमारी औसत आयु पहले के मुकाबले दोगुनी हो गई है। कैसे संभव हुआ यह परिवर्तन?
(प्रो. हीरा):
सौ साल पहले, जब स्वास्थ्य सेवाएं सीमित थीं, तब औसत आयु केवल 35 वर्ष थी।
आज बेहतर चिकित्सा, स्वच्छता और पोषण के कारण यह लगभग दुगुनी होकर 70 वर्ष के करीब पहुँच गई है।
लेकिन यह “लॉन्ग लाइफ” तभी सार्थक है जब “हेल्दी लाइफ” भी हो।
अब नई चुनौती है — गैर-संचारी बीमारियाँ (Non-Communicable Diseases)।
जैसे डायबिटीज़, हाइपरटेंशन, हृदय रोग, और कैंसर।
कोविड ने भी “ब्लड क्लॉटिंग (थक्का जमने)” की समस्या बढ़ा दी है, जिससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक के मामले अधिक हुए हैं।
☣️ भारत और टीबी की चुनौती
(एंकर):
भारत में टीबी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस पर आपकी राय?
(प्रो. हीरा):
भारत आज भी दुनिया में टीबी के सबसे ज़्यादा मरीजों वाला देश है।
इसका जीवाणु जब कोई मरीज खांसता है तो 40 फीट तक फैल सकता है, और हवा के साथ 80 फीट तक जा सकता है।
इसलिए भीड़भाड़ और बंद स्थानों में संक्रमण का खतरा बहुत बढ़ जाता है।
हमें टीबी के इलाज के साथ-साथ इसके प्रति सामाजिक जागरूकता पर भी काम करना होगा।
🤖 आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वास्थ्य क्षेत्र
(एंकर):
आजकल हर जगह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की चर्चा है। क्या यह स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बदलाव ला सकती है?
(प्रो. हीरा):
बिलकुल — AI एक सहयोगी साधन (Assistive Tool) है।
यह डेटा विश्लेषण, रोग निदान और उपचार की गति बढ़ा सकती है।
लेकिन ध्यान रहे, AI मानवीय संवेदनाओं की जगह नहीं ले सकती।
डॉक्टर का “स्पर्श”, “संवेदना” और “विश्वास” आज भी किसी दवा से ज़्यादा असर करता है।
🧘♀️ वेलनेस सेंटर और भारत की पहल
(एंकर):
भारत सरकार के वेलनेस सेंटर कार्यक्रम की आप कैसे व्याख्या करते हैं?
(प्रो. हीरा):
यह बहुत सकारात्मक कदम है।
G20 के तहत भारत ने 2 लाख वेलनेस सेंटर खोलने का लक्ष्य रखा था, जिनमें से 80% से अधिक पहले ही शुरू हो चुके हैं।
इन केंद्रों का उद्देश्य केवल दवा देना नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, जीवनशैली सुधार और सामुदायिक जागरूकता को बढ़ावा देना है।
समापन
(एंकर):
बहुत प्रेरणादायक चर्चा रही।
आपने जिस तरह पुरुषों के मेनोपॉज से लेकर वैश्विक महामारियों तक के मुद्दों को जोड़ा, वह दर्शाता है कि स्वास्थ्य एक संपूर्ण दृष्टिकोण (Holistic Approach) है — शरीर, मन और समाज — तीनों का संतुलन।
हमारे साथ इस परिचर्चा में जुड़े रहे अकादमिक कॉर्डिनेटर चंद्रेश अरोड़ा और विभागाध्यक्ष प्रकाश, जिन्होंने आयोजन में सहयोग दिया।
धन्यवाद, प्रो. हीरा — आपके अनुभव और विचार हम सबके लिए अमूल्य हैं।
और धन्यवाद उदयपुर — जहाँ से स्वास्थ्य और संवेदना की यह नई पहल शुरू हुई है।
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