महफ़िल-ए-सुख़न : शायराना शाम की रौशनियां

उदयपुर।

शब के दामन में सितारों की बारात सजी थी,
साज़-ओ-आवाज़ के नग़में थे और ग़ज़लों की रौशनी थी।
KTS मिनी ऑडिटोरियम में शायराना परिवार की जानिब से एक दिलकश महफ़िल सजी,
जहाँ फ़नकारों ने अपने हुस्न-ए-फ़न से रात को रंगीन कर दिया।

महेंद्र चौधरी की निगरानी में महफ़िल का आग़ाज़ नूतन वेदी की सरस्वती वंदना से हुआ।
फिर क्या था! शेर-ओ-शायरी, ग़ज़लें, लोकगीत, दोहे और छंदों का सिलसिला
शाम से शब के साए तक जारी रहा।

साहित्यकार श्याम मठपाल ने ग़ज़लों का रंग बिखेरा,
तो निषित चपलोत, प्रकाश भंडारी और भरत मीना ने अपने लफ़्ज़ों से समां बांध दिया।
शाहिद शेख़ की अमीर ख़ुसरो की मुक़रियाँ सुनकर महफ़िल सरशार हो गई,
जबकि मंज़ूर हुसैन, हेमंत सूर्यवंशी, गगन संध्याढ्य, सीपी गंधर्व और कमल जुनेजा के नग़मों ने महफ़िल को चार चाँद लगा दिए।

मनोज गीतांकर ने जब शायराना परिवार के डेढ़ दशक के सफ़र को बयान किया,
तो लफ़्ज़ों की ये रवानी महज़ एक तहरीर नहीं,
बल्कि एक तजरिबा, एक एहसास, एक हकीकत बन गई।

शहर के मशहूर आयुर्वेदाचार्य श्रीराम शर्मा ने
बांसुरी के सुरों से दिलों को छू लिया,
तो महिपाल सिंह, हेमंत सूर्यवंशी और अन्य मेहमानों ने
अपने कलाम से महफ़िल में रूहानी समां बांध दिया।

अरुण चौबीसा ने हाड़ा रानी की शुजाअत पर असरदार कविता पेश की,
भारत मीणा ने माँ, पिता और गुरु की अजमत को बयान किया,
मनीष शर्मा ने छंदों की महक बिखेरी।

निरोज जोशी, अजीत सिंह खीची, नारायण सालवी और कशिश भरी ग़ज़लों ने
हर दिल में मोहब्बत और एहसासात की लौ जला दी।
गुलज़ार और ओमान की सूफ़ियाना शायरी ने महफ़िल को वज्दानी बना दिया।

कमल जुनेजा, प्रकाश भंडारी, विहान पठान और रक्षित परमार की कविताओं ने
साहित्य के समाज पर असर को बयां किया,
तो दीपिका माही ने शृंगार रस की वर्चुअल झलक से रंग भर दिए।

शहर के शिक्षाविद डॉ. प्रदीप कुमावत ने
अपनी हस्तलिखित नज़्म के जरिए ऑनलाइन इस ख़ूबसूरत महफ़िल को रौशन किया।

इस यादगार शाम की नज़्मों और नग़मों को
मनोज आँचलिया और सीमा वेद ने अपने ख़ूबसूरत अंदाज़ से सँवारा।
और यूँ ही, ये रात शेर-ओ-सुख़न की रौशनी में डूबती चली गई,
जहाँ हर लफ़्ज़ एक सितारा था, और हर सुर एक जादू।

About Author

Leave a Reply