मुझे मिला महामहिम का यह पद विद्यापीठ की ही देन – डॉ. गुलाबचंद कटारिया
: कितने भी मतांतर क्यों न हो, जहां देश की बात हो वहां सबको एक होकर चलना होगा: डॉ. कटारिया
Editor’s comment : यह अच्छी बात है कि राजस्थान विद्यापीठ ने अपने ही शहर के नेता एवं असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया को डी लिट की उपाधि से नवाजा। इसके लिए कुलपति कर्नल प्रो. एसएस सारंगदेवोत बधाई के पात्र हैं। लेकिन किसी भी राजनीतिज्ञ को नवाजा जाना सवाल खड़े करता है। यूनिवर्सिटी का यह निर्णय अगर नि:स्वार्थ है तो यह एक अच्छी परंपरा होगी, लेकिन इसमें यदि कोई हिडेन एजेंडा हुआ तो यह निर्णय गलत साबित होगा। वैसे भी सियासत में सच सामने आ ही जाता है।
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उदयपुर। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय की ओर से शुक्रवार को स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल सभागार में आयोजित 18वें दीक्षांत समारोह में असम के राज्यपाल महामहिम गुलाबचंद कटारिया को डी.लिट् की मानद उपाधि से नवाजा गया गया। इसमें उन्हें प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिह्न प्रदान किया गया।
दीक्षान्त समारोह में शिक्षा, भूगोल, सोशल वर्क, कम्प्यूटर एंड आईटी के 12 शोधार्थियों को उनके शोध कार्य के लिए पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई। कटारिया जी के नाम के आगे आज से लगेगा डाक्टर।
कुलपति कर्नल प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने विद्यापीठ विवि की अब तक की प्रगति के विभिन्न सोपानों की चर्चा करते हुए कटारिया का स्वागत किया। विशिष्ट जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विवि के कुल प्रमुख बी. एल. गुर्जर थे। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय जानी ने की। इससे पूर्व ऋत्विका एवं अकादमिक परिषद के सदस्यों की ओर से दीक्षांत प्रोसेशन निकाला गया। इस अवसर पर एनसीसी के कैडेटस की ओर से महामहिम कटारिया को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।
अपने दीक्षांत उद्बोधन में राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया ने संस्थापक जन्नूभाई को वंदन करते हुए कहा कि मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हंू कि जिस संस्थान में मैं विद्यार्थी के रूप में आया और अध्यापन किया, आज वहां पर सम्मानित व दीक्षित हुआ हूं। कटारिया बोले कि डिग्रियां भविष्य के रास्ते खोलती हैं। छात्र को दीक्षांत समारोह के माध्यम से भविष्य का सुनागरिक बनाती हैं। शिक्षा के मंदिर को जितना मजबूत किया जाए, देश उतना ही मजबूत होगा।
हर व्यक्ति को समाज के साथ जुड़ना चाहिए व समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभाना चाहिए क्योंकि उसे समाज से ही शिक्षा की प्राप्ति हुई है। समाज के लोगों के जीवन को उच्च स्तर पर ले जाने का प्रयास करना चाहिए ताकि भारत का भविष्य उज्जवल हो सके। पहले अभावों वाली शिक्षा भी संस्कार दे जाती थी । मगर आज की शिक्षा में संस्कारों में कमी आई है।
कटारिया नेे कहा कि जब मैनेे विद्यापीठ के झाडोल विद्यालय में भूगोल अध्यापक के पद पर नोकरी करते हुए वहा मैंने संघ की शाखा खोली तब वैचारिक मतांतर की वजह से वहां की नौकरी ज्यादा दिन नहीं चल सकी। मगर उसके बाद भी इस संस्थान के प्रति, जन्नूभाई के प्रति मेरा अगाध स्नेह बना रहा। आज मैं महामहिम की कुर्सी पर पहुंचा हूं व जो भी सम्मान मिला है, वह विद्यापीठ की ही देन हैं। इसी ने मुझे मेरी विचारधारा के हिसाब से आगे बढ़ने को प्रेरित किया। मेरा मानना है कि मतांतर हो मगर जहां पर देश की बात हो वहां पर हमको एक होकर चलना ही पड़ेगा।
उन्होने कहाकि जन्नूभाई ने हम जैसे मेहनतकश हजारों बच्चों को सायंकालीन पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षा देकर बहुत उपकार किया। शिक्षा की अलख जमाने में उन्होंने पूरे समर्पित भाव से कार्य किया। जन्नूभाई देश के जाने-माने साहित्यकार थे। उनकी लेखनी पूरा देश सम्मान के साथ पढ़ता था। उस व्यक्ति ने लोगों के जीवन को प्रकाशित करने का आजादी से पहले 1935 जो प्रण लिया वह अद्भुत था। उदयपुर में जनपद में उस जमाने में निरंतर चॉक से खबरों को बोर्ड लिखा जाता था और उसे पढ़ने के लिए लोग उमड़ते थे। जब विद्यापीठ से शाम को न्यूज प्रसारित होती थी तो इतने लोग रोज उसे सुनने के लिए खड़े होते थे जितने लोग हमारी आम सभा में आते थे। कटारिया बोले, मेरे पिताजी भी रोज पैदल न्यूज सुनने जाते थे। इसी प्रकार एक चलती-फिरती पुस्तकालय में मोडीलालजी घर-घर पुस्तकें दे जाते व वापस ले जाते थे। लालटेन लेकर, बर्तन व पाटी ले जाकर जिसने शिक्षण का काम किया वो जन्नभाई थे। उनकी सोच इतनी महान थी कि उन्होंने हर अंधेरे कोने में दीपक जलाया। सौभाग्य से मुझे भी नौकरी करते हुए पढ़ने का मौका मिला व मैंने ज्योग्राफी में एमए किया। जब मैंने झाड़ोल में विद्यापीठ में पढ़ाने के लिए ज्वाइन किया तब मुझे कहा गया कि वहां कहां जा रहे हो। न सड़क है ना रास्ता। मगर तब भी मैंने कहा कि वहां पर भी इंसान ही रहते हैं। हमने लालटेन के सहारे पढ़ाया।
कटारिया ने भूरालालजी श्रीमाली को याद करते हुए कहा कि शिक्षा के प्रति ललक यह थी कि वे बारातियों से मनुहार करते थे कि हमारी संस्थाओं के लिए भी कुछ दे कर जाओ। घोड़े पर कंठी बांध कर सबसे फसलों के एक अंश इकट्ठा कर उन्होंने संस्थान को आगे बढ़ाया। यह दिव्य शक्ति ही है जो इस प्रकार के कठिन कामों को करती है।
कुलपति कर्नल प्रो. एस.एस सारंगदेवोता ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि 3 रूपए से शुरू हुई जन्नू भाई की संस्था अब 70 करोड़ का वटवृक्ष बन गई है। हमारे पास 200 पैंटेंट, 12 कॉपीराइट के साथ ही सभी प्रकार के पाठ्यक्रम हैं। खेलो इंडिया में राष्ट्रीय स्तर के खेलों का आयोजन भी किया है साथ ही स्वर्ण व रजत पदक प्राप्त किए हैं।
कुल प्रमुख बी.एल.गुर्जर ने कहा कि राज्यपाल कटारिया ने हमेशा आमजन की समस्याओं की पैरवी करते हुए उदयपुर शहर को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई है। वे विद्यापीठ में रात्रि पाठशाला में पढ़ने वाले कार्यकर्ता रहे। झाड़ोल में विद्यापीठ के विद्यालय में शिक्षा की अलख जगाई। आपकी कर्मठ कार्यशैली व जमीन से जुड़े हुए कार्यकर्ता की तरह की कार्यशैली ने हमें हमेशा प्रेरणा दी है।
कुलाधिपति प्रो़ बलवंतराय जानी ने कहा कि कटारिया को उपाधि देने से संस्था विभूषित हुई है। भिन्न मतों वाले होते हुए भी कटारिया जी ने हमेशा संस्थान का सम्मान किया। आज के समय में यह बहुत बड़ी बात है। राजस्थान में सहित्यिक वातावरण को तैयार करके अपना राजपद भी छोड़ दिया। उनके शिक्षा के क्षेत्र में प्रयासों से ही आज जितने भी वैज्ञानिक, उद्योगपति सहित राष्ट्रीय वैभव को बढ़ाने वाले व्यक्तित्व विद्यापीठ से जुड़ रहे हैं। एनबीडी, मारवाड़ी युनिवर्सिटी व वि़द्यापीठ के सहयोग से मार्बल स्लरी से टाइल्स बनाने का मैकेनिज्म तैयार कर लिया गया है व शीध्र ही इसका पेटेंट भी मिल जाएगा।
इस अवसर पर भाजपा जिला अध्यक्ष रविन्द्र श्रीमाली, देहात अध्यक्ष चंद्रगुप्तसिंह चौहान, अतुल चंडालिया, राव अजातशत्रु , दीपक शर्मा, जगदीश पालीवाल ,रजिस्ट्रार डॉ तरूण श्रीमाली , पीठ स्थविर डॉ. कौशल नागदा, डीन पीजी प्रो. जीएम मेहता, डॉ. युवराज सिंह राठौड़ , प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. गजेन्द्र माथुर , डॉ. शैलेन्द्र मेहता, डॉ. राजन सूद, डॉ. मन्जू मांडोत, डॉ. कला मुणेत , डॉ भवानीपाल सिंह सहित विद्यापीठ के डीन डायरेक्टर, विभागाध्यक्ष , विधार्थी एवं शहर के गणमान्यजन मौजूूद थे।
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