रघुनाथपुरा में पैंथर की दहशत और प्रशासन की निष्क्रियता : क्या किसी हादसे का इंतजार है?

उदयपुर। उदयपुर के रघुनाथपुरा क्षेत्र में पैंथर की लगातार बढ़ती गतिविधि अब केवल वन्यजीव प्रेमियों या रहवासियों की चिंता का विषय नहीं रह गई है, बल्कि यह प्रशासनिक उदासीनता का एक और उदाहरण बन चुका है। रघुनाथ हिल्स और महावीर हाईट्स कॉलोनी के लोग दहशत में हैं, लेकिन प्रशासन कानों में तेल डालकर बैठा हुआ है। कॉलोनी के लोगों ने यूडीए और नगर निगम के अधिकारियों को पत्र सौंपकर शिकायत की है।

प्रशासन कब जागेगा—पहला हमला होने के बाद?

समस्या को मीडिया में भी उजागर किया जा चुका है, लेकिन जिला प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। क्या अधिकारियों को किसी बड़ी घटना का इंतजार है? या फिर यह उनकी कार्यशैली का नया ट्रेंड बन चुका है कि जब तक कोई त्रासदी न हो, तब तक कोई हलचल नहीं होगी?

रहवासियों की माँग बहुत असामान्य नहीं है—वे पैंथर को मारने या भगाने की बजाय मूलभूत सुविधाओं की मांग कर रहे हैं—जैसे उचित लाइटिंग और जंगल में पानी की व्यवस्था ताकि पैंथर को कॉलोनी में न आना पड़े। लेकिन अफसोस, प्रशासन के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही।

समस्या की जड़: जंगलों का सिमटना या लापरवाही?

रघुनाथपुरा गाँव और आसपास का इलाका तेजी से विकसित हो रहा है, लेकिन इस शहरीकरण की कीमत जंगलों को चुकानी पड़ रही है। जंगल सिकुड़ रहे हैं, पानी के स्रोत सूख रहे हैं और वन्यजीवों को इंसानी बस्तियों की ओर रुख करना पड़ रहा है।

शिवरात्रि की रात 10:45 बजे भी पैंथर को पानी पीते देखा गया। कुछ दिन पहले एक दूध वितरक को भी यह अनुभव हुआ। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पैंथर दोषी है या हम इंसानों की अव्यवस्थित विकास नीति?

बुनियादी सुविधाओं का अभाव: क्या पैंथर से बड़ा खतरा प्रशासन ही है?
पैंथर तो प्रकृति का हिस्सा है, लेकिन अंधेरी सड़कें, गड्ढों से भरी गलियां और प्रशासन की निष्क्रियता—ये असली खतरे हैं।

समाधान क्या है? : वन विभाग को तुरंत जंगल में जल स्रोतों की व्यवस्था करनी चाहिए।
प्रशासन को कॉलोनी में स्ट्रीट लाइट्स और सड़क सुधार कार्य पर ध्यान देना होगा।
पैंथर को बेवजह खलनायक न बनाया जाए, बल्कि इसके अनुकूल समाधान निकाला जाए।

समस्या का समाधान सिर्फ बयानबाजी और ‘अधिकारियों के संज्ञान में मामला लाने’ से नहीं होगा। जब तक प्रशासनिक तंत्र अपनी सुस्ती नहीं तोड़ेगा, तब तक या तो लोग डर के साए में जीते रहेंगे या फिर कोई अप्रिय घटना घटेगी, और तब ‘अधिकारियों की नींद’ खुलेगी। पर क्या तब तक बहुत देर हो चुकी होगी?

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