राजस्थान की राजनीति : ब्लैकमेलर्स पर सबक और कांग्रेस की रणनीतिक परीक्षा

फोटो : कमल कुमावत : सलूंबर में बीजेपी की विजयी प्रत्याशी शांता मीणा। खबर के अंत में देखिए उदयपुर में बीजेपी की जीत पर जश्न की तस्वीरें।

राजस्थान की राजनीति इस बार कई दिलचस्प मोड़ों से गुजरी, जहां कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का साहसिक फैसला लिया। गठबंधन न करने का यह कदम राजनीतिक रूप से सही दिशा में उठाया गया, लेकिन टिकट वितरण में हुई चूकें पार्टी की संभावनाओं पर भारी पड़ीं। छोटे दलों द्वारा कांग्रेस को दबाने की रणनीति इस बार उन्हीं पर उलटी पड़ी, और इसका सबसे बड़ा सबक राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के नेता हनुमान बेनीवाल को मिला।

ब्लैकमेल की राजनीति का अंत?

छोटे दलों द्वारा कांग्रेस पर दबाव बनाकर अपनी ताकत बढ़ाने का खेल लंबे समय से जारी था। लेकिन कांग्रेस ने इस बार अपनी स्वायत्तता बनाए रखकर यह स्पष्ट संकेत दिया कि वह ब्लैकमेल की राजनीति से ऊपर उठना चाहती है। हालांकि, सीटों का नुकसान उठाने के बावजूद कांग्रेस के लिए यह निर्णय दूरगामी फायदे का आधार बन सकता है।

ओवर कॉन्फिडेंस पर लगाम

इन चुनावों ने कांग्रेस और अन्य दलों के उन उम्मीदवारों को उनकी हकीकत दिखा दी जो ओवर कॉन्फिडेंस थे। सलूंबर इसका प्रमुख उदाहरण रहा, जहां कांग्रेस की हार के बावजूद बाप भी निर्णायक जीत हासिल नहीं कर पाई। यह इस बात का सबूत है कि बीजेपी का किला भेदने के लिए छोटे दलों की रणनीतियां नाकाफी साबित हो रही हैं।

मेवाड़ में कांग्रेस की चुनौतियां

कांग्रेस को मेवाड़ में अपनी कमजोर जमीन को दोबारा मजबूत करने की जरूरत है। सलूंबर और आस-पास की सीटों पर पार्टी के प्रदर्शन ने यह स्पष्ट कर दिया कि संगठनात्मक ढांचे में सुधार की दरकार है। मेवाड़ में कांग्रेस की उपस्थिति कमजोर होने का सीधा फायदा बीजेपी को मिल रहा है।

बाप और कांग्रेस : अलगाव का परिणाम

भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) ने अपनी चौरासी सीट भले बचा ली हो, लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने के चलते यह पार्टी बीजेपी को अप्रत्यक्ष रूप से मजबूत कर रही है। आने वाले चुनावों में, अगर यही स्थिति बनी रहती है, तो यह तय है कि बाप का खेल कांग्रेस को और नुकसान पहुंचाएगा।

राजनीतिक सबक और भविष्य की दिशा

कुल मिलाकर, कांग्रेस के लिए यह चुनाव एक सबक साबित हुआ है। टिकट वितरण में पारदर्शिता और संगठनात्मक सुधार के बिना पार्टी मेवाड़ जैसे क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर पाएगी। गठबंधन न करने का साहसिक निर्णय पार्टी के आत्मविश्वास को दर्शाता है, लेकिन इसका लाभ तभी मिलेगा जब वह जमीनी स्तर पर सुधार करेगी।

राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस को अपनी खोई हुई ताकत वापस पाने के लिए न केवल गठबंधन की राजनीति से बाहर रहना होगा, बल्कि अपने आंतरिक ढांचे को भी मजबूत करना होगा। मेवाड़ का रिवाइवल इसमें पहला कदम साबित हो सकता है।

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