
आप पढ़ रहे हैं हबीब की रिपोर्ट। आरएएस अफसर तरु सुराणा की डेंगू से दुखद मौत ने उदयपुर की प्राइवेट अस्पतालों में इलाज की अव्यवस्था को फिर से उजागर कर दिया है। पहले से ही इन अस्पतालों पर लोगों का भरोसा कम था, लेकिन अब यह घटना उस भरोसे की आखिरी कड़ी भी तोड़ गई है। तरु सुराणा, जिन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष जनसेवा में बिताए, आखिरकार इन प्राइवेट अस्पतालों की लापरवाही का शिकार बन गईं।
यह केवल तरु सुराणा की बात नहीं है। प्रदेश में डेंगू से अब तक 5 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें एक सरकारी डॉक्टर, एक नर्सिंग छात्रा, और एक बिजनेसमैन भी शामिल हैं। प्राइवेट अस्पतालों के अंदर का मंजर अब किसी व्यापारी मंडी से कम नहीं। जहाँ मरीजों की जान की कीमत सिर्फ पैसों में आंकी जाती है, और वो भी तब, जब मरीज आखिरी सांसें गिन रहा होता है।
तरु सुराणा को जब 6 सितंबर को बुखार आया, तब उनका परिवार उन्हें स्थानीय गीतांजलि हॉस्पिटल में ले गया, लेकिन पाँच दिन भर्ती रहने के बावजूद उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। यह कैसा अस्पताल है, जहाँ न तो इलाज मिलता है, न विश्वास। आखिरकार, परिवार को चेन्नई के डॉक्टरों की मदद लेनी पड़ी और उन्हें एयरलिफ्ट कर चेन्नई ले जाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
तरु के भाई शुभव के मुताबिक, “डेंगू में प्लेटलेट्स नहीं गिरी थीं, फिर भी दीदी की हालत लगातार बिगड़ती रही। चेन्नई के डॉक्टरों ने बताया कि यह एक रेयर केस था, लेकिन गीतांजलि हॉस्पिटल में ऐसा कोई निदान क्यों नहीं मिला?” यह सवाल न सिर्फ सुराणा परिवार का है, बल्कि उन हज़ारों परिवारों का है जो हर दिन इसी तरह प्राइवेट अस्पतालों की मुनाफाखोरी और अव्यवस्था का शिकार होते हैं।
प्राइवेट अस्पताल अब मदद की जगह मुनाफे की मंडी बन गए हैं, जहाँ मरीज़ नहीं, बल्कि पैसों की बोली लगाई जाती है। एक ओर जहाँ सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी के बावजूद बेहतर सेवाएं मिलती हैं, वहीं प्राइवेट अस्पतालों में केवल दिखावा और पैसे की लूट मची रहती है।
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