
उदयपुर। प्रकृति रिसर्च इंस्टिट्यूट और इंस्टिट्यूट ऑफ टाउन प्लानर्स ऑफ इंडिया (आईटीपीआई), उदयपुर केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन आईटीपीआई उदयपुर के सेमिनार हॉल में संपन्न हुआ, जिसमें शहर के पर्यावरणविदों, योजनाकारों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
कार्यक्रम की शुरुआत आयोजक सतीश श्रीमाली के स्वागत वक्तव्य से हुई। उन्होंने कहा कि “उदयपुर को झीलों, झरनों, बाग-बगिचों और हरित आवरण के कारण ‘गार्डन झीलों का शहर’ कहा जाता है। इस प्राकृतिक धरोहर को बचाए रखने के लिए सतत विकास की योजना बनाकर उसका पालन करना अनिवार्य है।” उन्होंने सभी प्रतिभागियों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने की अपील की।
उत्तरी ध्रुव की चेतावनी और प्लास्टिक फ्री संकल्प
संगोष्ठी के संयोजक प्रो. पी.आर. व्यास ने अपने वक्तव्य में वैश्विक तापमान वृद्धि के गंभीर परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने बताया कि “पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर 2.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के कारण हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र तटीय महानगरों में मानव बस्तियों को खतरा उत्पन्न हो गया है।” उन्होंने “प्लास्टिक फ्री” अभियान को जन-आंदोलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया और एक प्रेरणादायक नारा प्रस्तुत किया:
“धरती माता करें पुकार, प्लास्टिक से जीवन बेकार। उपयोग करना अस्वीकार, पैदल चलना और साइकिलिंग स्वीकार।”
उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए जनभागीदारी को अहम बताया और दैनिक जीवन में व्यवहारिक बदलाव लाने की अपील की।

सोच बदलनी होगी : पूर्व वेदांता सीईओ अखिलेश जोशी
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व सीईओ, वेदांता जिंक लिमिटेड, श्री अखिलेश जोशी ने कहा, “पर्यावरण के प्रति हमारी सोच को बदलना होगा। जब तक हम व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर बदलाव नहीं लाएंगे, तब तक सतत विकास एक कल्पना मात्र रहेगा।” उन्होंने प्रो. पी.आर. व्यास के सतत प्रयासों की सराहना की और ‘प्रकृति रिसर्च सोसाइटी’ के कार्यों में सहयोग का आश्वासन दिया।
सतत नगरीय विकास और जल प्रबंधन पर विशेषज्ञों की राय
मुख्य अतिथि बी.एस. कानावत ने अपने उद्बोधन में नगरीय पर्यावरण में सतत विकास की अवधारणा को प्राथमिकता देने की बात कही। उन्होंने नगर नियोजन में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने को आवश्यक बताया।
मुख्य वक्ता डॉ. महेश शर्मा ने जल संरक्षण की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि “उदयपुर की बड़ी झील से जल आपूर्ति योजना को व्यवहार में लाकर शहर के पेयजल संकट को दूर किया जा सकता है।” उन्होंने झीलों के संरक्षण और उनके समुचित उपयोग पर बल दिया।
मोहम्मद यासीन पठान ने “प्लास्टिक फ्री अभियान” को तभी सफल बताया जब उसमें आम नागरिकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो। उन्होंने स्कूल, कॉलेज और सामाजिक संस्थाओं को इस मुहिम से जोड़ने की आवश्यकता बताई।
प्रो. विमल शर्मा ने माइक्रो लेवल प्लानिंग की वकालत की ताकि पर्यावरणीय योजनाएं ज़मीनी स्तर पर प्रभावी हो सकें। वहीं, प्रो. प्रदीप त्रिखा ने सामाजिक चेतना और जागरूकता को पर्यावरण संरक्षण का मूल मंत्र बताया। उन्होंने युवाओं को प्रकृति रिसर्च सोसाइटी से जुड़ने का आह्वान किया।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. वर्षा चपलोत ने सभी वक्ताओं, आयोजकों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि इस संगोष्ठी में प्रस्तुत विचारों और योजनाओं को कार्यरूप देना ही सही मायनों में पर्यावरण दिवस की सार्थकता होगी।
उदयपुर जैसे ऐतिहासिक और प्राकृतिक शहर में आयोजित यह संगोष्ठी एक प्रेरणादायक प्रयास रहा, जिसने न केवल पर्यावरणीय संकट की ओर ध्यान आकृष्ट किया, बल्कि स्थानीय समाधान और जनभागीदारी के महत्व को भी रेखांकित किया। संगोष्ठी से यह संदेश स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आया कि यदि हम सभी मिलकर सोच में परिवर्तन लाएं, प्लास्टिक के उपयोग को त्यागें और सतत विकास की नीतियों को अपनाएं, तो प्रकृति और भविष्य दोनों सुरक्षित रह सकते हैं।
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