उदयपुर। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की असली पहचान तभी होती है जब सरकार की योजनाएँ कागजों और घोषणाओं से बाहर निकलकर आमजन के जीवन में सकारात्मक असर छोड़ें। राजस्थान में इस समय चल रहा सेवा पर्व पखवाड़ा इसी बदलाव की एक मिसाल बनकर उभरा है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आयोजित सेवा शिविर अब लोगों के लिए सिर्फ कागज भरने का स्थान नहीं, बल्कि राहत का केंद्र बन चुके हैं। इन शिविरों में एक ओर योजनाओं का प्रचार-प्रसार हो रहा है, तो दूसरी ओर तत्काल लाभ पहुंचाकर आमजन को भरोसा दिलाया जा रहा है कि सरकार वास्तव में उनकी साथी है।
वारणी शिविर की कहानी : पारस गुर्जर को मिला संबल
वारणी की पारस गुर्जर की कहानी इस अभियान की सच्ची झलक है। वह महीनों से पालनहार योजना से वंचित थीं। परिवार की जिम्मेदारियों और आर्थिक तंगी ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी थीं। लेकिन जैसे ही उन्होंने वारणी में आयोजित शिविर में अपनी समस्या रखी, तुरंत कार्रवाई हुई। बच्चे का नाम जन आधार में जोड़ा गया और आवेदन पूरा होते ही उन्हें योजना से जोड़ दिया गया।
उनकी आँखों की चमक सब कुछ बयां कर रही थी। वे कह रही थीं –
“आज लगा कि सरकार की योजना मेरे लिए भी बनी है। अब बच्चों की पढ़ाई और पालन-पोषण में थोड़ी राहत मिलेगी।”
आमोड का अनुभव : दिव्यांग लक्ष्मण लाल को मिला सहारा
आमोड गाँव में रहने वाले दिव्यांग लक्ष्मण लाल 2017 से पालनहार योजना से वंचित थे। पेंशन तो उन्हें मिलती थी, लेकिन जानकारी के अभाव में पालनहार योजना तक पहुँचना संभव नहीं हो पा रहा था।
शिविर में जब उन्होंने विकास अधिकारी प्रताप सिंह मीणा को अपनी व्यथा सुनाई, तो तत्काल कार्यवाही हुई। विभागीय अधिकारियों और ई-मित्र प्रतिनिधि ने दस्तावेज जांचे और आवेदन पूरा करवाया। कुछ ही देर में स्वीकृति आदेश उनके हाथ में था।
भावुक होकर उन्होंने कहा – “पांच-छह साल से जिस उम्मीद में था, वह आज पूरी हुई। यह सिर्फ कागज नहीं, मेरे बच्चों का भविष्य है।”
उदयपुर ग्रामीण की एक और झलक : विमला देवी की राहत
सेवा शिविरों की कहानियाँ सिर्फ वारणी और आमोड तक सीमित नहीं हैं। उदयपुर ग्रामीण क्षेत्र की विमला देवी विधवा हैं और तीन बच्चों की परवरिश कर रही हैं। वे कई महीनों से पेंशन के लिए प्रयासरत थीं। विभाग के चक्कर लगाना उनके लिए कठिन था।
गाँव में लगे शिविर में उन्होंने आवेदन किया। मौके पर दस्तावेज जांचे गए और उसी समय स्वीकृति प्रक्रिया शुरू हुई। अगले ही दिन उन्हें पेंशन की स्वीकृति मिल गई। विमला देवी ने कहा – “पहले सोचती थी कि पेंशन मिलना मुश्किल है, लेकिन आज लगा कि सरकार वास्तव में हमारी सुनती है।”
भटेवर के रतनलाल : पहचान पत्र से बढ़ा आत्मविश्वास
भटेवर क्षेत्र के रतनलाल दिव्यांग हैं। उन्हें अब तक यूडीआईडी कार्ड नहीं मिल पाया था। शिविर में पहुँचते ही अधिकारियों ने ऑनलाइन आवेदन कर दिया। रतनलाल ने कहा कि यह पहचान पत्र उनके लिए केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि कई योजनाओं का रास्ता है।
वे भावुक होकर बोले – “पहचान न होने से कई बार शर्मिंदगी झेलनी पड़ती थी। अब आत्मविश्वास है कि मैं भी योजनाओं का हकदार हूँ।”
आंकड़ों में सेवा पर्व पखवाड़ा का असर
योजनाओं का असर केवल व्यक्तिगत कहानियों तक सीमित नहीं है। आँकड़े बताते हैं कि यह अभियान व्यापक स्तर पर परिवर्तन ला रहा है।
पखवाड़े के दौरान अब तक हजारों आवेदन शिविरों में निपटाए जा चुके हैं।
पालनहार योजना के अंतर्गत बड़ी संख्या में बच्चों को जोड़ा गया है।
पेंशन से वंचित विधवाओं और वृद्धजनों को तत्काल स्वीकृति मिली है।
दिव्यांगजन के यूडीआईडी कार्ड और अन्य पहचान दस्तावेज शिविरों में ही बनाए जा रहे हैं।
विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में तत्काल लाभ पहुंचाने की प्रक्रिया पूरी की गई है।
हर शिविर में औसतन 200 से 300 लोग पहुँच रहे हैं और लगभग 70-80 प्रतिशत समस्याओं का समाधान मौके पर ही किया जा रहा है।
ग्रामीण अंचल में उत्सव का माहौल
इन शिविरों ने गाँवों में उत्सव जैसा माहौल बना दिया है। चौपाल पर बैठे बुजुर्ग, महिलाएँ और युवा अपनी समस्याएँ लेकर आते हैं और लौटते समय उन्हें हल पाकर संतोष महसूस करते हैं।
गाँव की महिलाएँ कह रही हैं कि अब उन्हें विभागों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। बुजुर्गों का कहना है कि सरकार उनके द्वार पर आई है। युवाओं का मानना है कि डिजिटल माध्यम से योजनाएँ और सरल हो रही हैं।
संवेदनशील प्रशासन की तस्वीर
इन शिविरों की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि अधिकारी स्वयं गाँवों और कस्बों में बैठकर लोगों की समस्याएँ सुन रहे हैं। यह प्रशासन को संवेदनशील और सुलभ बनाता है।
जहाँ पहले आवेदन और स्वीकृति में महीनों लग जाते थे, वहीं अब कुछ घंटों में समाधान मिल रहा है। यह बदलाव लोगों के मन में शासन के प्रति विश्वास को और मजबूत कर रहा है।
उम्मीद की नई किरण
सेवा पर्व पखवाड़ा ने यह साबित कर दिया है कि जब सरकार और प्रशासन मिलकर ईमानदारी से काम करें तो आमजन के जीवन में बदलाव लाना मुश्किल नहीं। पारस गुर्जर, लक्ष्मण लाल, विमला देवी और रतनलाल जैसे अनगिनत लोगों की कहानियाँ इस बदलाव की साक्षी हैं।
यह केवल योजनाओं का लाभ नहीं, बल्कि सरकार और जनता के बीच भरोसे का रिश्ता है। इन शिविरों ने ग्रामीण और शहरी जीवन में उम्मीद की नई किरण जगाई है। आने वाले दिनों में जब और लोग इनसे लाभान्वित होंगे, तब यह पखवाड़ा सिर्फ एक सरकारी आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का प्रतीक बन जाएगा।
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