उदयपुर। फतहसागर झील, जो अब तक प्रेम और सुकून की मिसाल मानी जाती थी, आज एक दर्दनाक हकीकत की गवाह बन गई। एक झील… दो कहानियाँ… और अनगिनत सवाल, जिनका जवाब शायद किसी के पास नहीं।
सट्टे की लत, 15 लाख की उधारी और एक हारा हुआ जीवन
जालोर के सायला गांव का रहने वाला दिनेश पुरोहित कभी सपनों का पीछा करता था, लेकिन सट्टे की लत ने उसे अंधकार में धकेल दिया। मुंबई में नौकरी करते-करते कब वह जुए के दलदल में फंस गया, उसे खुद भी अहसास नहीं हुआ। 15 लाख की उधारी ने उसे भीतर तक तोड़ दिया था। बुकी उसके पीछे थे, पैसा मांग रहे थे, लेकिन वह कहाँ से देता? शायद हर फोन कॉल, हर संदेश, उसे मौत की ओर धकेल रहा था।
मंगलवार शाम, उदयपुर की खूबसूरत झील में उसकी बेचैनी ने छलांग लगा दी। उसने मौत को गले लगा लिया। 36 घंटे बाद एसडीआरएफ की टीम ने कड़ी मशक्कत के बाद उसका शव झील से ढूंढ निकाला।
झील की गहराइयों में मिला एक और दर्द
जो टीम दिनेश की तलाश में उतरी थी, उसे वह नहीं मिला, लेकिन फतहसागर की लहरों ने किसी और की सिसकी सुन ली। एक अजनबी युवती का शव झील के ठंडे पानी में था। न नाम, न कोई पहचान। बस एक स्वेटर में लिपटी एक अधूरी कहानी, जिसके पन्ने कोई खोलने को तैयार नहीं।
कौन थी वो? किसके लिए आई थी? क्या उसकी भी कोई ऐसी ही मजबूरी थी? क्या उसने खुद ही जीवन की डोर छोड़ दी या कोई और था, जिसने उसे इस अंधेरे में धकेल दिया?
बिखरे रिश्ते, अनकहे सवाल
दिनेश का मोबाइल नाव में पड़ा मिला। आखिरी कॉल, आखिरी मैसेज… शायद उसने किसी को कुछ बताने की कोशिश की होगी। लेकिन उस समय कोई उसे रोकने के लिए नहीं था। उधर, युवती का सफेद पड़ा हुआ हाथ जैसे कोई इशारा कर रहा था—कोई उसे पहचान ले, कोई उसके दर्द को सुने।
पुलिस अपने स्तर पर जांच कर रही है, लेकिन फतहसागर की लहरें आज भी वही सवाल दोहरा रही हैं—क्या जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि दर्द का कोई और रास्ता नहीं बचता?
कौन जाने, इस झील में और कितनी कहानियाँ दबी होंगी… कितने चेहरे इंतज़ार कर रहे होंगे कि कोई उन्हें पहचान ले।
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