
उदयपुर की हवाओं में 1 सितम्बर की शाम कुछ और ही नूर बरसा रही थी। “शायराना उदयपुर” के साए तले, ऐश्वर्या कॉलेज के आंगन में इश्क़, मोहब्बत और अदब की ऐसी महफ़िल सजी, जहाँ हर लफ़्ज़, हर धुन, हर तरन्नुम ने दिलों को छू लिया।
पन्द्रह बरसों से अदब और सुरों की ख़िदमत में मशग़ूल शायराना उदयपुर ने इस बार अपने संभाग स्तरीय साहित्य-संगीत समारोह को प्रेम रस की थीम से महकाया। और वाक़ई, यह महफ़िल एक इश्क़िया दरगाह-सी लग रही थी — जहाँ जज़्बात झूम रहे थे, और श्रोता तालियों की गूँज में सराबोर थे।
आग़ाज़-ए-महफ़िल : सरस्वती वंदना से शुरू हुई ये महफ़िल, फिर आभा सिरसिकर की मिठास भरी आवाज़ ने महौल को रूहानी बना दिया।

डॉ. रीटा नागपाल ने प्राचीन प्राणाहुति ध्यान से सबको भीतर तक सुकून पहुँचा दिया।
इसके बाद तो जैसे इश्क़ की बरसात शुरू हो गई — कहीं फ़िल्मी नग़्मों की रिमझिम, कहीं लोकगीतों की ख़ुशबू, कहीं ग़ज़ल की रवानगी और कहीं नज़्मों की मिठास।
युवा कवियों ने बैंड की धुन पर इश्क़िया नग़्मे सुनाए तो महफ़िल झूम उठी।
मोहब्बत के जज़्बातों की परवाज़ : भीलवाड़ा, चित्तौड़, कोटा, राजसमंद, सलुम्बर और ख़ुद उदयपुर से आये फ़नकारों ने अपनी पेशकशों से रंग जमा दिया।
गायत्री सरगम ने जब गाया – “ये ज़मीं मिल गई, ये समा मिल गया… मुझे तुम क्या मिले, जहाँ मिल गया” – तो श्रोता बेख़ुद होकर वाह-वाह करने लगे।
दीपिका शर्मा ने दोहों और छंदों से सबको सोचने पर मजबूर कर दिया।
अर्चिता मुद्डा ने बेटी का प्यार कविता से दिलों को गीला कर दिया।

अपेक्षा व्यास की ग़ज़ल – “आँधियाँ तो आकर के चली जानी हैं, संघर्ष है ज़िंदगी, ज़िद में रवानी है” – पर सभागार तालियों से गूँज उठा।
ललिता शर्मा ने राजस्थानी चौपाइयों से मिट्टी की ख़ुशबू फैला दी।
तेज सिंह माली और डॉ. राही क़बीर ने जब अपने अल्फ़ाज़ बिखेरे, तो जैसे इश्क़ और अदब दोनों मिल गए हों।
कोटा से आये उत्पल, नरेश सिंह चौहान और हेमंत सूर्यवंशी की युगल प्रस्तुति ने इश्क़ की मिठास में सुरों की चाशनी घोल दी।
चित्तौड़गढ़ के गुलज़ार ने नज़्म पढ़ी तो दिल की धड़कनें ठहर गईं।
राजसमंद के महेंद्र कुमावत और डॉ. जगदीश ज़िंगर ने रोमांटिक गीतों से समा बाँध दिया।

थिरकती धड़कनों का जश्न : सलुम्बर से आये फ़नकारों ने तो महफ़िल में फिल्मी प्रेम नग़्मों पर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।
और जब अजनबी बैंड के विवेक, वान्या, दिव्यांशी और सरदार जयनित सिंह ने गिटार, ड्रम और कीबोर्ड पर दस गीतों की जुगलबंदी सुनाई, तो सभागार तालियों और क़दमों की थाप से गूंज उठा।
ग़ज़ल और नग़्मों का जादू : डीएसपी राजेंद्र जैन ने जब गाया – “होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो” – तो पूरा सभागार एक ग़ज़ल की महफ़िल में तब्दील हो गया।

उदयपुर और आस-पास के मशहूर शायरों, कवियों और कलाकारों ने अपनी पेशकशों से इस महफ़िल को और निखार दिया।
सम्मान और एहतिराम : कार्यक्रम के दरम्यान, अभिनव कल्चरल फेस्टिवल का ब्रोशर विमोचित हुआ।
सूक्ष्म शिल्पकार चंद्रप्रकाश चित्तोड़ा की किताब पर भी रोशनी डाली गई।
मनोज आँचलिया को गुमनाम शहीदों की तलाश पर किए काम के लिए शॉल और प्रशस्ति-पत्र देकर नवाज़ा गया।
अंत में, दस बेहतरीन प्रस्तुतियों को मोमेंटो, पगड़ी और शॉल से सम्मानित किया गया।
बाक़ी सभी प्रतिभागियों को शायराना उदयपुर की तरफ़ से पानी के परिंदे स्मृति-चिह्न के तौर पर भेंट किए गए।
जब परदे गिरे, तो हर श्रोता के दिल में एक ही जज़्बा था – “आज की ये शाम सिर्फ़ महफ़िल नहीं थी, ये तो मोहब्बत का दरिया था, जहाँ हर अल्फ़ाज़, हर धुन, हर ग़ज़ल ने दिलों को छू लिया।”
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