उदयपुर। उदयपुर की फतहसागर झील, जहां दिन की चहल-पहल के बाद रात की ठंडी हवा बहती है, वही झील आज गवाह बनी एक अधूरे सपने के टूटने की।
कैलाश प्रजापत… महज 21 साल का एक युवा, जिसकी उम्र तो जीने के लिए बनी थी, लेकिन शायद जिंदगी के बोझ ने उसे तोड़ दिया। बीते कुछ दिनों से उसकी आँखों में अजीब-सी बेचैनी थी। चेहरे पर मुस्कान थी, मगर अंदर एक दर्द छिपा था, जिसे कोई समझ नहीं पाया।
रात के 9 बजे, जब घरवालों ने सोचा कि वो अभी अंदर ही होगा, तब वो बाहर निकल चुका था—अपनी स्कूटी पर, अकेले… बिना कुछ कहे, बिना कुछ बताए। शायद उसने खुद भी नहीं सोचा होगा कि ये उसकी जिंदगी की आखिरी रात होगी।
अगली सुबह, जब पुलिस की गश्त टीम ने उसकी स्कूटी झील किनारे लावारिस खड़ी देखी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। परिवार वाले उसे ढूंढते रहे, मगर वो अपनी तकलीफों से बहुत दूर जा चुका था… हमेशा के लिए।
सिविल डिफेंस की टीम ने झील से उसका निःशब्द शरीर निकाला। वो हाथ, जो कभी किताबों के पन्ने पलटा करते थे, आज ठंडे हो चुके थे। वो आंखें, जो कभी बड़े सपने देखा करती थीं, अब बंद हो चुकी थीं।
घर पर उसकी माँ अब भी इंतजार कर रही थी—कहीं से ये खबर झूठी निकल आए, कहीं से वो फिर से दरवाजे पर आ जाए। पर सच तो यही था… कैलाश अब लौटकर नहीं आने वाला था।
क्या किसी ने उसे रोकने की कोशिश की थी? क्या किसी ने उसके भीतर के दर्द को समझा था? काश, कोई उसकी उलझनों को सुन लेता… काश, कोई उसे बता पाता कि मुश्किलें आती हैं, मगर वो स्थायी नहीं होतीं।
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