उदयपुर। नगर निगम का दीपावली मेला 21 अक्टूबर से शुरू हो रहा है, लेकिन क्या इस चमचमाते आयोजन के बीच उन लोगों की कोई सुध ली गई, जो अस्पतालों में डेंगू और चिकनगुनिया के चलते तड़प रहे हैं? यह मेला बेशक लोगों के मनोरंजन के लिए हो, मगर सवाल यह है कि जब आधा शहर बीमारियों की चपेट में है, तब क्या ये मेला जरूरी था? क्या बेहतर नहीं होता कि निगम पहले शहरवासियों की सेहत का ख्याल रखता और फिर जश्न मनाने का सोचता?
शहर के अस्पताल मरीजों से हाउसफुल हैं। स्व. बख्तावरलाल शर्मा क्लीनिकों में लोगों की लंबी कतारें हैं, लेकिन निगम और उसकी टीम को इससे कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने तो अपना काम बस प्रेस कॉन्फ्रेंस करके मेले से होने वाली करोड़ों की कमाई गिनाने तक सीमित कर लिया है। अगर यही तन्मयता निगम ने डेंगू से निपटने में दिखाई होती, तो शायद आज अस्पतालों में बिस्तर खाली होते और हर घर में बुखार का शिकार कोई न होता।
अंधा-बहरा निगम और मौन महापौर :
नगर निगम का रवैया देखिए – स्मार्ट सिटी में कचरे के ढेर, सड़कों पर बहता और गड्ढों में भरे पानी में मच्छरों के पनपने की जगहें हर गली-नुक्कड़ पर हैं, लेकिन मेयर और डिप्टी मेयर को यह सब नहीं दिखता। क्या निगम सिर्फ अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर बैठा हुआ है, जहां उसे शहर में पसरी गंदगी, बीमार लोगों की चीखें सुनाई नहीं दे रही हैं? यह वही महापौर हैं, जिन्होंने कोरोना के समय निगम के दरवाजे तक बंद करवा दिए थे। आज फिर वही हालत है—निगम की जिम्मेदारियां किनारे रखी हैं, और दीपावली के मेले की धूम मची है।
शहर के पत्रकार यूट्यूबर्स और जागरूक नागरिक लगातार इन मुद्दों को उठाते रहे हैं। हर दिन सोशल मीडिया पर पोस्ट होती हैं, लेकिन क्या फर्क पड़ता है? इन चीखों पर कोई सुनवाई नहीं हो रही। नगर निगम का पूरा ध्यान बस इस बात पर है कि मेला सफल हो, उसमें कमाई हो, लेकिन डेंगू से मरते लोग कौन देखे?
वोट के भूखे नेता :
जनता को यह भी याद रखना चाहिए कि यही नेता, जो आज दीपावली मेले की चमक-धमक के पीछे छुपे हैं, कल फिर वोट मांगने आपके दरवाजे आएंगे। तब आपसे आपकी सेहत की चिंता जताएंगे, वादों की पोटली खोलकर बैठेंगे, लेकिन आज जब आपको उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है, तब ये लोग कहां हैं? मेले की तैयारी के पीछे भागते-भागते ये भूल चुके हैं कि शहर बीमार है।
सांस्कृतिक धूम और खोखली जिम्मेदारी :
दीपावली मेले में स्थानीय कलाकारों को मंच देना और सांस्कृतिक कार्यक्रम कराना बेशक सराहनीय है, लेकिन जब आधे से ज्यादा शहर बुखार में तप रहा हो, तब यह सब दिखावा ही लगता है। मेले से मिलने वाली करोड़ों की कमाई तो आप दिखा रहे हैं, लेकिन शहर की बदहाल सफाई व्यवस्था, मच्छरों के अड्डों पर कोई बात नहीं।
सवाल उठता है कि क्या ये मेला उन बीमार लोगों के लिए कुछ मायने रखता है, जो आज अस्पतालों में भर्ती हैं? क्या निगम ने कोई ऐसा कदम उठाया है जिससे इस बार के मेले में सब शामिल हो पाते? या फिर यह मेला भी सिर्फ उन्हीं के लिए है, जो सेहतमंद हैं और निगम की नाकामी से अछूते रह गए हैं?
यह समय है जब शहर की जनता को आंखें खोलकर देखना चाहिए और उन नेताओं से जवाब मांगना चाहिए, जिन्होंने अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रखा है।
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