फोटो : कमल कुमावत
…सवाल – क्या यह कार्रवाई विधि सम्मत है?
उदयपुर। उदयपुर में स्कूली छात्र पर सहपाठी द्वारा ही चाकू से हमले की खबर देश दुनिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। घटना के बाद कुछ उपद्रवियों द्वारा शहर में तोड़फोड़ और आगजनी ने दहशत का माहौल पैदा कर दिया। पुलिस, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की कोशिशों के बाद शहर में शांति है। घटना के दूसरे दिन दो अहम मुद्दे सामने आए हैं। पहला पीड़ित बच्चे के स्वास्थ्य का और दूसरा आरोपी जिस मकान में किराए पर रहता था, उसको ध्वस्त करने का।
बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिए सभी दुआएं मांग रहे हैं, लेकिन वो मौत से जंग लड़ रहा है। डॉक्टरों की टीम उसे जिंदगी के लिए जंग जीताने में लगी है। आरएनटी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. विपीन माथुर लगातार बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर अपडेट दे रहे हैं। बच्चे की तबीयत स्थिर है और उसके रीकवर होने की पूरी संभावना जताई जा रही है। हालांकि कुछ लोगों ने अफवाहें भी फैलाई, लेकिन प्रशासन ने अफवाहों से सावधान रहने की बात कही है।
अब बात करते हैं-दीवान शाह कच्ची बस्ती की, जहां नाबालिग छात्र का परिवार किरए पर रहता था, उस मकान पर बुलडोजर चलाकर ध्वस्त कर दिया गया। कलेक्टर अरविंद पोसवाल ने अपने बयान में कहा कि सभी कार्रवाई विधि सम्मत की जा रही है। नगर निगम और वन विभाग ने मकान पर पहले नोटिस का चस्पा किया था। बिजली कनेक्शन काटा गया और मकान खाली करवाकर बुलडोज कर दिया गया। मकान मालिक की किसी ने नहीं सुनीं न ही बस्ती वालों की। उनका कहना है कि जिसने अपराध किया है, उसको कड़ी सजा दी जाए, दूसरे का मकान क्यों तोड़ा जा रहा है? लोग तो सवाल यह भी पूछ रहे हैं कि जिन लोगों ने वन विभाग और तालाब की जीमनें बेच दी और मकान बना लिए क्या उन पर भी इसी तरह कार्रवाई होगी।
भारी पुलिस लवाजमे के बीच कोई अधिकारियों से किसी ने यह सवाल नहीं पूछे ये तो मीडिया वालों के सामने कुछ लोग बोल गए। दरअसल यह कार्रवाई भाजपा शासित प्रदेशों में हो रही कार्रवाई से प्रेरित है और सरकार संदेश जीरो टोलरेंस का है कि कोई भी कानून हाथ में लेगा तो उससे सख्ती से निपटा जाएगा।
इस कार्रवाई के बाद शहर में आम नागरिक ही सवाल उठा रहे हैं। पहला कारण यह है कि वन विभाग की जमीन पर अवैध निर्माण मानकर यह कार्रवाई की गई है तो उस जगह पूरी बस्ती वन विभाग की जमीन पर है। सभी के मकानों को बुलडोज क्यों नहीं किया गया? उन वन अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई, जिन्होंने बस्ती को बसने दिया।
बहरहाल यक मसला कोर्ट में पहुंचा तो निगम और वन विभाग को इस कार्रवाई को विधि सम्मत साबित करना बहुत चुनौतीपूर्ण होगा।
ऐसे ही कुछ मामलों की हम यहां कुछ नजीरें पेश करते हैं। एक कच्ची बस्ती को हटाने के मामले में इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस खन्ना ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि सिर पर छत होना हर व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है, यहाँ सरकार की कमियां दिखाई दे रही है।
यही नहीं बुलडोजर चला न्याय देने के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक आरोपी के मकान पर बुलडोजर चलाने के मामले में हाईकोर्ट ने न सिर्फ नगर निगम पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगा था, बल्कि सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए थे। दिसंबर 2022 में उज्जैन के चिमनगंज थाने में एक आरोपी का दो मंजिला मकान बुलडोज कर दिया था। इसमें दायर याचिका में आरोपी की पत्नी ने कहा कि उनका पक्ष सुने बगैर मकान ध्वस्त कर दिया गया। जिस नाम से नोटिस चस्पा किया गया था वो उसका नहीं था और न ही अवैध था। इसके बाद आरोपी की ओर से 50 लाख मुआवजे का केस किया गया। याद रहे कि मुंबई में फिल्म अभिनेत्री और अब सांसद कंगना रनौत के मकान के एक हिस्से को बुलडोज किया गया था और मुंबई हाईकोर्ट ने इसी तरह का फैसला सुनाया था। बुलडोज कार्रवाई के खिलाफ अब भी कई मामले न्यायालयों में लंबित हैं।
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