Editor’ Comment : विधानसभा में जो मामले उठाए जाते हैं, उसमें आरोप साबित नहीं होते हैं। दरअसल गत दिनों जीबीएच मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई हुई थी, लेकिन कोर्ट ने उस कार्रवाई के तरीके को गलत करार दिया। इसी तरह सीकर में एक यूनिवर्सिटी का मुद्दा भी विधानसभा में खूब गूंजा था। इस मामले में दोषी ठहराए गए अफसरों व प्रोफेसरों को राज्यपाल और कोर्ट से बरी कर दिया गया। विधानसभा में उठाए गए मामलों का राजनीतिक रंग अक्सर सच्चाई को धुंधला कर देता है। उदयपुर भूखंड घोटाले में भी इसी तरह की चुनौती सामने है। देखना होगा कि न्यायपालिका और अन्य जांच एजेंसियां इस मामले में कितनी प्रभावी साबित होती हैं और दोषियों को सजा दिलाने में कितनी सफल होती हैं।
यहां से पढ़ें वो खबर जो विधानसभा में हुआ
उदयपुर। उदयपुर में भूखण्ड घोटाले का मामले मे नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने नगर विकास विभाग द्वारा 10 दिन में तत्कालीन आयुक्त के खिलाफ 10 दिन में आरोप पत्र तैयार कर कार्मिक विभाग को भेजने के निर्देश दिए है। साथ ही कार्मिक विभाग ने 15 दिन में इस आरोप पत्र का परीक्षण कर संबंधित अधिकारी को आरोप पत्र भेजकर स्पष्टी करण मांगेगा। इसके बाद कार्मिक विभाग कार्यवाही के लिए मुख्य सचिव को प्रस्ताव भेजने और मुख्य सचिव द्वारा मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाकर संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करवाने के निर्देश जारी किए हैं।
विधानसभा में उदयपुर विधायक ताराचंद जैन ने उदयपुर नगर विकास प्रन्यास से उदयपुर नगर निगम को हस्तांतरित की गई कॉलोनियों मेें 272 भूखण्डों के घोटाले का मुद्दा उठाया था। नगरीय विकास और स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने विधानसभा में घोषणा की है कि इस प्रकरण में तत्कालीन आयुक्त के खिलाफ नगरीय विकास विभाग 10 दिन में आरोप पत्र तैयार कर कार्मिक विभाग को भेजेंगे। साथ ही कार्मिक विभाग ने 15 दिन में इस आरोप पत्र का परीक्षण कर संबंधित अधिकारी को आरोप पत्र भेजकर स्पष्टी करण मांगेगा। इसके बाद कार्मिक विभाग कार्यवाही के लिए मुख्य सचिव को प्रस्ताव भेजने और मुख्य सचिव द्वारा मुख्यमंत्री को जानकारी देकर संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही करेंगे। साथ ही खर्रा ने एडीजी एसओजी के लिए कहा है कि वह 2024 में इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कर दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ चालान पेश करेंगे। इस मामले से जुड़े पूर्व पार्षद अजय पोरवाल ने विधायक ताराचंद जैन द्वारा इस मुद्दे को उठाने पर धन्यवाद देते हुए कहा कि एसओजी डिमांड करेगी तो वे चार दिवस में भूखंड और उनके मालिकों की सूची उपलब्ध करवा देंगे।
नगरीय विकास और स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने अपने जवाब में मामले को विस्तार से बताते हुए कहा-2004 से यूआईटी ने नगर निगम को 30 योजनाएं और 16 कच्ची बस्तियां हस्तान्तरित की है। योजनाओं में 6046 भूखण्ड और कच्ची बस्तियों 4363 पत्रावलियां दी है। योजनाओं में इसमें 2051 नामान्तरण और 9 पट्टे जारी किए है। बस्तियों में 7 नामान्तरण और 935 पट्टे जारी किए है। 34 भूखण्डों की नीलामी से 11 करोड़ रुपए की आय हुई है।
कुछ प्लॉट को यूआईटी ने आवंटन जारी किए थे पर आवंटी द्वारा राशी जमा नहीं करवाने से इनका आवंटन निरस्त हो गया। शिकायत पर नगर निगम उदयपुर के महापौर 28 दिसम्ब्र 2021 को जाच समिति का गठन किया गया। जिसमें तीन अधिकारी और तीन जनप्रतिनिधि शामिल हुए। जिसकी जांच रिपोर्ट में 316 पत्रवालियों का उल्लेख नहीं है और 40 संदिग्ध भूखण्ड बताएं है। जांच में एक सहायक प्रशासनिक अधिकारी और तीन वरिष्ठ सहायकों के दोषी पाए जाने पर उन्हें आरोप पत्र जारी किए हैं।
मंत्री खर्रा ने बताया कि इसके मामले में सूरजपोल और हिरणमगरी थाने में दर्ज है। बाद में यह जांच वर्ष 2021 को एसओजी जोधपुर को दी गई और वर्ष 2023 में उदयपुर एसओजी और वर्तमान में यह जांच अजमेर एसओजी के पास है और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एसओजी नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त और दोषी कार्मिकों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे। साथ ही संदिग्ध भूखण्डों को वापस लेने की कार्यवाही की जाएगी। नगरीय विकास और स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने बताया कि जब इस ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का जवाब लेकर अधिकारी आए तो पता चला कि इसमें गंभीर अनियमितताएं हुई है। वास्तविक दोषी के खिलाफ कार्यवाही ना कर छोटे कर्मचारियों के खिलाफ ही कार्यवाही की गई। मंत्री ने कहा कि यह करोड़ों का घोटाला है और जिन पत्रवालियों में पट्टे जारी किए वो सारे कूटरचित थे।
यूआईटी की पत्रावली में फर्जी रसीदे लगी थी। मंत्री खर्रा ने कहा कि भूखण्डो को पुनः प्राधिकरण के कब्जे में लेकर नीलामी करवाकर पता लगाएंगे कि आखिरकार कितने करोड का गबन हुआ है।
316 पत्रावलिया कहां है
विधानसभा में उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन ने मुद््दा उठाया कि यूआईटी ने नगर निगम को 12115 भूखण्डों की पत्रावलियां दी है, जिसमें 6046 पट्टे जारी किए और 5133 पत्रावलियां है। इन दोनों में संे 316 पत्रावलियां नहीं है। निगम ने 40 संदिग्ध भूखंड की जांच के यूआइटी को पत्र भेजने के लिए कहा था पर आज तक यूआईटी को एक भी पत्र नहीं दिया।
40 रुपए फीट में दे दी 12 हजार स्क्वायर फीट जमीन
विधानसभा में उदयपुर शहर विधायक तारांचद जैन ने कहा कि यह करोडों का गबन है। रेल्वे पटरी के पास में 12000 फीट का एक भूखण्ड 40 रूपए फीट मे दे दिया। जबकि वहां की डीएलसी रेट 1853 रूपए फीट है। तत्कालीन आयुक्त ने 1 लाख 36 हजार में यह भूखण्ड दे दिया। जहां से रेल्वे की डबल लाईन स्वीकृत हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने जिसे अतिक्रमी माना है। 12 साल से यूआईटी ने वाद दायर कर उसे अतिक्रमी साबित करवाया है। तत्कालीन आयुक्त हिम्मतसिंह बारहठ ने उसे मनमानी कर यह प्लॉट दे दिया। नगरीय विकास और स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इसकी भी जांच के निर्देश दिए है।
कटारिया ने भी उठाया था मुद्दा पर सरकार ने जवाब नहीं दिया
उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन ने विधानसभा में बताया कि तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने भी 15वीं विधानसभा के 7वें सत्र मंे यह मुद्दा उठाया था, पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जवाब आने के बाद भी सदन के पटल पर इसका जवाब नहीं दिया।
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