उदयपुर। वर्ष 2015 में जब उदयपुर के सेक्टर 14 में 144 फ्लैट्स का निर्माण हुआ और इनका नामकरण ‘गोवर्धन अपार्टमेंट’ किया गया, तो स्थानीय निवासियों को उम्मीद थी कि यह एक सुरक्षित, सुव्यवस्थित और आधुनिक आवासीय परियोजना साबित होगी। परंतु, यह उम्मीदें सिर्फ कागज़ों में सिमट कर रह गईं। आवंटन के बाद से ही इस परिसर के रखरखाव को लेकर हाउसिंग बोर्ड और नगर निगम के बीच लगातार टालमटोल और झूठे वादे किए जाते रहे। नतीजतन, 700 से अधिक निवासी आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
हाउसिंग बोर्ड और नगर निगम की धांधलीअ : किसकी जिम्मेदारी?
गोवर्धन अपार्टमेंट का रखरखाव किसी एजेंसी द्वारा नहीं किया जा रहा था। जब आवंटियों ने हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों से संपर्क किया, तो उन्हें भ्रमित करने की कला में माहिर इन अधिकारियों ने कहा कि रखरखाव नगर निगम को सौंप दिया गया है। हालाँकि, जब निवासी नगर निगम के पास पहुंचे, तो वहां उन्हें स्पष्ट रूप से बताया गया कि कोई हैंडओवर हुआ ही नहीं है, और इस प्रक्रिया के लिए एक बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ेगा।
ये दोनों सरकारी विभागों के बीच की जिम्मेदारियों को टालने की एक ऐसी घिनौनी रणनीति थी, जिसका खामियाजा सीधा-सीधा आम जनता भुगत रही है। सवाल ये उठता है कि आखिर यह पैसे का खेल कब तक चलेगा? और इसका हर्जाना कब तक निवासियों को भुगतना पड़ेगा?
जिला कलेक्टर की कार्रवाई : सिर्फ कागज़ी खेल?
निवासियों की तकलीफों का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता। त्रस्त होकर जब उन्होंने जिला कलेक्टर के समक्ष गुहार लगाई, तो एक नई सच्चाई सामने आई। कलेक्टर महोदय की पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि हाउसिंग बोर्ड ने पहले जो बताया था वह झूठ था। हकीकत यह है कि रखरखाव का काम आवंटियों की समिति को करना था, लेकिन बोर्ड ने उनसे इसके लिए कोई राशि नहीं ली थी।
कलेक्टर ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए हाउसिंग बोर्ड के आयुक्त को पत्र लिखकर स्पष्ट नीति बनाने का आग्रह किया, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
तथ्यात्मक हालत : एक टूटी-फूटी हकीकत
गोवर्धन अपार्टमेंट में आज जो हालात हैं, वे किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक हैं। फ्लैट्स की संख्या 144 और आबादी करीब 700 लोगों की है, लेकिन यहां की सड़के टूट चुकी हैं, रोड लाइट्स बंद हैं, और सफाई व्यवस्था का नामोनिशान नहीं है। यह सब तब हो रहा है जब संबंधित अधिकारियों को हर स्तर पर मामले की जानकारी है, फिर भी न तो हाउसिंग बोर्ड और न ही नगर निगम इस मुद्दे पर कोई जिम्मेदारी ले रहे हैं।
यह स्पष्ट है कि सरकारी तंत्र का यह रवैया केवल लापरवाही नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है जिसमें जनता को भ्रमित किया जा रहा है। यह घोर प्रशासनिक विफलता है, और ऐसे में जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
आगे की राह : क्या होगा समाधान?
आज, गोवर्धन अपार्टमेंट के निवासी हताश हो चुके हैं। वे सरकारी विभागों के चक्कर काटते-काटते थक चुके हैं। अब समय आ गया है कि प्रशासन इस लापरवाही की जिम्मेदारी ले और तुरंत प्रभाव से एक ठोस नीति बनाकर रखरखाव का काम शुरू करवाए। नहीं तो यह मामला जल्द ही एक बड़े जन आंदोलन का रूप ले सकता है।
आखिरकार, क्या हमारे देश में सरकारी अधिकारी जनता की सेवा करने के बजाय सिर्फ झूठे वादों और योजनाओं का भ्रम फैलाते रहेंगे?
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