राजस्थान मांगे एक ही जान तुम केवल कर दो मतदान – शर्मा
फोटो : कमल कुमावत
उदयपुर। नगर निगम उदयपुर द्वारा आयोजित दीपावली मेला 2023 में बुधवार का दिन कवियों के काव्य पाठ के नाम रहा। नगर निगम प्रांगण में खचाखच भरे दर्शकों के बीच देश के प्रमुख कवियों ने काव्य पाठ से समा बांधा। दीपावली मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतिम दिन मशहूर कवियों की कविताओं ने उपस्थित दर्शकों को ढलती शाम से देर रात तक बांधे रखा।
नगर निगम मेला संयोजक ने बताया कि मेले में कवि सम्मेलन का शुभारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन कर किया गया।
कवि सम्मेलन कार्यक्रम की शुरुवात सबसे पहले कानपुर कि गीत गजल कवयित्री शबीना अदीब ने सरस्वती वंदना कर की। उसके बाद अपनी डाली से बिछड़े अलग हो गए, पेड़ के सारे पत्ते अलग हो गए, ईश्वर भी वही है खुदा भी वही, जाने क्यों उसके बंदे अलग हो गए कविता सुनाकर शबीना ने उपस्थित श्रोताओं के मन में प्रेम, समर्पण का निर्माण कर दिया। शबीना ने अपने काव्य गान की हर पंक्ति पर खूब तालियां बंटोरी।
शबीना के बाद राजस्थान की धरती जयपुर के वीर रस कवि अशोक चारण ने महकी महकी रातों और बाहों के घेरों को भूला, सरहद के फेरों के आगे सातों फेरों को भूला, भागीरथ बन मैं खुद लाया मेरे मन की गंगे को, उसकी आँखें मुझको तकती मेरी तकें तिरंगे को कविता गाकर पूरे पंडाल में जोश भर दिया। श्रोताओं के हुजूम ने भारत माता की जय के गगनभेदी नारे भी लगाए। काव्य रात्रि में फिर एक से बाद कवियों ने श्रोताओं की धड़कने बढ़ा दी।
फिर काव्य मंच को हाड़ोती बारां के हास्य और वीर रस को एक साथ बहाने वाले देवेंद्र वैष्णव ने सम्भाला। वैष्णव ने सत्य की परख जिसको भी हुई, अश्वथमा हथोहथ तो युधिस्ठिर ही बोलेगा,
चार बाप वाले के तो बस में नहीं है बात, भारत मां की जय एक बाप का ही बोलेगा, कविता ने पूरे पंडाल का माहौल बदल कर देश प्रेम का जोश भर दिया। इसके बाद कविता हास्य टीवी पे चल रहा था आधे कपड़ो में गाना बेटे ने कहा दुसरा चैनल तो लगाना, बाप बोला राजू तू सोजा बेटे ये गरीब लड़की है, तो बेटा बोला ज्यादा गरीब आए पापा मुझको भी जगाना, ने भी खूब तालियां बंटोरी। वैष्णव ने हास्य कविता का पाठ कर श्रोताओं को हंसने को मजबूर कर दिया। उसके बाद फरीदाबाद के हास्य कवि सरदार मंजीत सिंह ने सुन्दर छवि को देख दिल कवि का धड़का है, मेसेज हुए हसीन तो जज़्बात भड़का है, चैटिंग करी महीने तीन, फिर पता लगा , करीना न थी वो कमीना एक लड़का है और शराब बुरी चीज़ है आओ इसे खतम करें एक बोतल तुम करो एक बोतल हम करें। कविता से उपस्थित श्रोताओं को खूब गुदगुदाया।
फालना की श्रृंगार रस की कवयित्री डॉ कविता किरण जगमग-जगमग जुगनू दमकें, पग-पग किरण ऊजाली के।। संकल्पों के नभ पर बिखरें, रंग सुबह की लाली के।। मुस्कानों की सजे अल्पना, सुख की बन्दनवारें हों। हर घर, हर दर, हर देहरी पर, दीप जलें खुशहाली के से श्रोताओं को बैचेन कर दिया। उसके बाद मंच पर उदयपुर के कवि कैलाश पुनीत ने लहर और पहर, गलत और सही हदों ने भी हद पार कर दी कविता सुनाकर ने लोगो को कर्म क्षेत्र मार्ग पर सोचने को मजबूर कर दिया। मंच से धार के हास्य व्यंग्य कवि जानी बैरागी ने भी अपनी कविता से खूब हंसाया। हास्य कवि ने दुनिया में हमारा दबदब शुरू हो गया है क्यों की देश विश्व गुरु हो गया है पर खूब तालियां बटोरी।
कविता पाठ में झीलों की नगरी उदयपुर के प्रसिद्ध कवि राव अजात शत्रु ने मतदान के महत्व को समझाते हुए जैसे मानव के शरीर में प्राण जरूरी है, अधरों पर मोहक सी ये मुस्कान जरूरी है, वैसे ही मतदाता का मतदान जरूरी है। पर उपस्थित श्रोताओं के मन में मतदान के प्रति रुझान बढ़ा दिया। कवि ने मेवाड की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि झीलों की नगरी के आगे स्वर्ग मिले ठुकराता हूं, इस मिट्टी में जन्म लिया है गीत यहां के गाता हूं, गोरा बादल राजस्थान, शेरों का दल राजस्थान, गौरव थाती राजस्थान चौड़ी छाती राजस्थान कविता का पाठ कर अपनी मातृ भूमि के प्रति प्रेम को जागृत कर दिया।
कवि सम्मेलन के अंत में पद्म श्री से सम्मानित हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने अपनी कविताओं से सभी दर्शकों को लोटपोट कर दिया। हंसी ठीठोली के बीच सुरेन्द्र शर्मा ने हास्य कविताओं की फुलझड़ी लगा दी। श्रोता हर पंक्ति पर हसने को मजबूर हो गए। सुरेन्द्र शर्मा ने मंच से मतदान की बात करते हुए कविता के माध्यम से समझाया कि राजस्थान मांगे एक ही जान तुम केवल कर दो मतदान। इस पर पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो गया।
कवि सम्मेलन के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम का समापन
नगर निगम मेला प्रभारी ने बताया कि बुधवार रात्रि कवि सम्मेलन के साथ ही मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम का समापन हो गया। मेला अनवरत 16 नवंबर तक जारी रहेगा जिसमें दुकाने, झूले यथावत संचालित रहेंगे। बुधवार को कार्यक्रम शुरू होने के पूर्व ही शहरवासी मेला प्रांगण में पहुंच चुके थे जो देर रात तक चले कवि सम्मेलन के अंत तक डटे रहे।
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