उदयपुर में डेंगू की मार : कचरे पर एक पार्षद की बेबसी और सिस्टम की नाकामी का आईना

आप पढ़ रहे हैं हबीब की रिपोर्ट । उदयपुर शहर इस वक्त डेंगू की मार झेल रहा है, लेकिन हालात सुधारने के बजाय प्रशासन ने मानो आंखें मूंद ली हैं। अस्पताल मरीजों से खचाखच भरे पड़े हैं, लेकिन सफाई व्यवस्था पूरी तरह बिखरी हुई है, मानो किसी को जनता के जान-माल की परवाह ही नहीं। हाल ही में वार्ड 57 में कचरा स्टैंड की भयावह तस्वीरें सामने आईं, जिन्हें ‘उदयपुर खबर’ यूट्यूब चैनल ने उजागर किया। इन तस्वीरों ने नगर निगम और प्रशासन के कर्तव्यों की पोल खोलकर रख दी है। जहाँ-जहाँ ये कचरा स्टैंड खड़े हैं, वहाँ आसपास रहने वाले लोगों की ज़िंदगी किसी नरक से कम नहीं।

इलाके के लोग मच्छरों के झुंड, बदबू और बीमारी से बुरी तरह परेशान हैं। हर घर में बुखार के मरीज हैं, लेकिन प्रशासन को न इस दर्द का एहसास है और न ही सुधार की कोई ठोस योजना। इस बार मामला क्षेत्रीय पार्षद छोगालाल भोई तक पहुंचा, जो खुद शहर के प्रतिष्ठित पार्षद, व्यवसायी और पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। लेकिन इस बार, भोई की छवि से ज्यादा उनकी बेबसी सामने आई। बीजेपी का बोर्ड होने के बावजूद, खुद बीजेपी के पार्षद अपने ही वार्ड में बेबस नजर आए।

रातभर नींद नहीं आने पर छोगालाल भोई ने सुबह होते ही वार्ड का दौरा किया। खुद कैमरा लेकर हालात रिकॉर्ड किए, अधिकारियों और कर्मचारियों से गुहार लगाई, लेकिन परिणाम वही ‘शून्य’ रहा। हालात इतने बदतर हैं कि खुद वार्ड पार्षद को कचरा उठवाने के लिए हाथ-पैर मारने पड़े, पर सिस्टम के कर्मचारी नदारद रहे। यहाँ सवाल सिर्फ छोगालाल भोई की बेबसी का नहीं है, बल्कि इस सड़े-गले सिस्टम की है जो आम आदमी की जिंदगी की कीमत पर चल रहा है।

डेंगू और मलेरिया का प्रकोप जिस तरह फैल रहा है, उसे देखते हुए कम से कम प्रशासन के अधिकारी, नगर निगम कमिश्नर और सीएमएचओ जैसे अधिकारियों को मौके पर पहुंचकर स्थिति की गंभीरता को समझना चाहिए था। लेकिन इन ‘लोकसेवकों’ का कहीं अता-पता नहीं था। शायद शहर के आम लोगों की तकलीफों में उनके लिए कोई संवेदनशीलता नहीं बची है।

आखिरकार, पार्षद ने रात 11 बजे व्हाट्सएप पर जानकारी दी कि कचरा देर रात उठाया गया। लेकिन किस वजह से? दिन में बड़े वाहन नहीं जा सकते और रात में गरबा हो रहा था, इसलिए कचरा उठाने के लिए देर रात तक इंतजार करना पड़ा। क्या ये वही स्मार्ट सिटी है जिसकी गूंज हर तरफ सुनाई देती है? क्या स्मार्ट सिटी का मतलब कचरे से अटे पड़े इलाके, मच्छरों के दल और हर घर में डेंगू-मलेरिया से पीड़ित लोग हैं?

यह घटना सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक करारा तमाचा है उस व्यवस्था के मुंह पर, जिसने जनता के स्वास्थ्य, साफ-सफाई और सुरक्षा की जिम्मेदारी तो ले ली, लेकिन जवाबदेही की बुनियादी जिम्मेदारियों से किनारा कर लिया। अधिकारियों की गैर-जवाबदेही और निष्क्रियता ने यह साबित कर दिया कि सिस्टम के अंदर बैठे लोग खुद को सिर्फ ऊंचे पदों तक सीमित कर चुके हैं, और जनता की समस्याओं का समाधान उनके एजेंडे में कहीं नहीं है।

कचरा उठा तो लिया गया, लेकिन सवाल यह है कि ऐसे और कितनी बार प्रशासन इस तरह की लापरवाही से लोगों की जिंदगी को खतरे में डालेगा?

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