आप पढ़ रहे हैं हबीब की रिपोर्ट। उदयपुर के गोगुंदा क्षेत्र में एक पैंथर ने आदमखोर शेरों की इन भयानक कहानियों की याद दिला दी है। इस पैंथर ने अब तक 9 लोगों की जान ले ली है और पकड़ा नहीं गया है। गांववाले हर रात इस डर में जी रहे हैं कि अगला शिकार कौन बनेगा। गोगुंदा के जंगलों में फैलता यह आतंक लोगों को बाहर निकलने से रोक रहा है।
जैसे त्सावो के शेर या नजोम्बे के आदमखोरों ने लोगों के दिलों में स्थायी भय पैदा कर दिया था, वैसे ही गोगुंदा का यह पैंथर भी एक नई किंवदंती बन रहा है। इस पैंथर की कहानी न सिर्फ उदयपुर के गांववालों के लिए एक चेतावनी है, बल्कि यह उस संघर्ष की प्रतीक भी है जो जंगल और इंसान के बीच होता है।
प्राकृतिक संसाधनों की कमी, इंसानी बस्तियों का विस्तार, और जंगलों की कटाई – ये सभी कारण हैं जिनसे जंगली जानवर इंसानी इलाकों में घुसपैठ करने पर मजबूर हो जाते हैं। जब तक इस पैंथर को पकड़कर मार नहीं दिया जाता, गोगुंदा के लोग उस डर और आतंक के साये में जीते रहेंगे, जो एक समय त्सावो और नजोम्बे के लोगों ने भी झेला था
इतिहास में ऐसी कई घटनाएं दर्ज हैं जब शेर, खासकर अफ्रीका के कुछ इलाकों में, आदमखोर बन गए और सैकड़ों इंसानों की जान ली। आज, उदयपुर के गोगुंदा क्षेत्र में एक पैंथर का आतंक लोगों के दिलों में वही खौफ पैदा कर रहा है, जैसा एक समय में त्सावो और नजोम्बे के आदमखोर शेरों ने किया था।
त्सावो के आदमखोर शेर (1898)
1898 में, केन्या के त्सावो नदी के किनारे एक रेलवे निर्माण कार्य चल रहा था। यहां काम कर रहे भारतीय मजदूरों और ब्रिटिश इंजीनियरों की एक पूरी टीम के लिए दिन-रात का काम मुश्किल तो था ही, लेकिन उनके सबसे बड़े दुश्मन रेलवे निर्माण नहीं, बल्कि दो आदमखोर शेर थे। इन शेरों ने लगभग 140 मजदूरों को मौत के घाट उतार दिया।
त्सावो के ये नर शेर माने (शेरों की गर्दन पर लंबे बाल) के बिना थे, जो उन्हें और भी डरावना बना देता था। कहा जाता है कि इस इलाके में फैली प्लेग और मजदूरों के ठीक से दफन न होने की वजह से शेरों को इंसानों के खून का स्वाद लग गया। इन शेरों ने इंसानों को इतना आसान शिकार समझ लिया कि वे बिना किसी डर के रात में शिविरों में घुसकर मजदूरों को उठा ले जाते। इस खौफनाक दौर को खत्म करने के लिए ब्रिटिश मुख्य अभियंता कर्नल जॉन पैटरसन ने दोनों शेरों का शिकार किया।
हालांकि, इतिहासकारों और वैज्ञानिकों ने इन शेरों के आदमखोर बनने के पीछे कई कारण बताए हैं, जिनमें शिकार की कमी, भूख और बीमारियों का प्रकोप शामिल था। त्सावो के ये नरभक्षी शेर आज भी नैरोबी के संग्रहालय में रखे गए हैं, जहाँ वे आने वाले दर्शकों को उस खौफनाक समय की याद दिलाते हैं।
नजोम्बे के आदमखोर (1932-1947)
तंजानिया के दक्षिणी हिस्से में, 1932 से 1947 के बीच एक और भयावह घटना ने वहां के लोगों को दहला दिया। नजोम्बे इलाके में 15 शेरों का एक झुंड आदमखोर बन गया था। इस झुंड को इतिहास में “नजोम्बे के आदमखोर” के नाम से जाना जाता है। इन शेरों ने करीब 1,500 लोगों की जान ली थी।
इन शेरों के आदमखोर बनने की मुख्य वजह ब्रिटिश सरकार द्वारा रिंडरपेस्ट वायरस को नियंत्रित करने के लिए ज़ेब्रा, वाइल्डबीस्ट और अन्य शिकारियों का बड़े पैमाने पर सफाया करना था। इस वायरस के चलते शेरों के प्राकृतिक शिकार खत्म हो गए, और वे इंसानों की तरफ रुख करने लगे। ये शेर इतने चालाक थे कि दिन में शिकार करते और रात को गांवों में घूमते।
अंततः ब्रिटिश गेम वार्डन ने इस झुंड को मार गिराया, लेकिन तब तक इस इलाके के लोग शेरों के आतंक के कारण अपने गांवों को छोड़ने पर मजबूर हो चुके थे।
म्फुवे का शेर (1991)
1991 में जाम्बिया के म्फुवे इलाके में एक शेर ने अकेले ही गांववालों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। इस शेर ने 6 महीने में 6 लोगों की जान ले ली और इतने खतरनाक हो गया कि गांव के लोग उसे राक्षस के रूप में देखने लगे।
म्फुवे के इस शेर ने एक गांव की महिला को मारकर उसका सिर काट दिया और उसके कपड़े लेकर चला गया। उसकी आतंक की यह घटना तब खत्म हुई जब उसे एक प्रसिद्ध शिकारी ने मारा। म्फुवे का यह शेर आज भी शिकारी जगत की एक किंवदंती बना हुआ है।
ओसामा : तंजानिया का आदमखोर शेर (2002-2004)
तंजानिया के रुफिज़ी इलाके में 2002 से 2004 के बीच एक शेर, जिसे स्थानीय लोग “ओसामा” कहते थे, ने 50 से ज्यादा लोगों की जान ली। इस शेर की खासियत यह थी कि वह सिर्फ 3 साल का था और इतनी कम उम्र में उसने लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि उसकी माँ ने उसे इंसानों का शिकार करना सिखाया था।
यह शेर अंततः 2004 में मारा गया, लेकिन उसकी कहानी इस बात की मिसाल है कि कभी-कभी पर्यावरणीय और सामाजिक कारण किस तरह जानवरों को आदमखोर बना देते हैं।
और अब गोगुंदा का पैंथर (2024)
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