ऑपरेशन जागृति चरण-4 : मासूम मुस्कानों की सुरक्षा का संकल्प

उदयपुर। उदयपुर की हवाओं में आज एक अनोखी पुकार गूंज रही थी — “बचपन को सुरक्षित रखें, सम्मान को बनाये रखें।” यह पुकार सिर्फ शब्द नहीं थी, बल्कि उन मासूम निगाहों की आवाज थी जो हमारे भरोसे जीती हैं। राजस्थान पुलिस के ‘ऑपरेशन जागृति चरण-4’ के अंतर्गत आज उदयपुर रेंज में हुई गतिविधियों ने समाज को यह याद दिलाया कि बच्चों की सुरक्षा केवल कानून का विषय नहीं, बल्कि मानवता का धर्म है।

पुलिस लाइन सभागार में आयोजित रेंज स्तरीय कार्यशाला में जब उदयपुर के कॉमर्शियल कोर्ट के न्यायाधीश महेन्द्र कुमार दवे ने कहा — “बालकों को यौन अपराध से सुरक्षित रखना और उनके सम्मान व स्वाभिमान को बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है,” — तो सभागार में एक सन्नाटा छा गया। यह सन्नाटा संवेदनशीलता का था, जो हर पुलिस अधिकारी के भीतर गूंज उठा।

न्यायाधीश दवे ने बाल संरक्षण कानूनों — POCSO अधिनियम, 2012 और किशोर न्याय अधिनियम, 2015 — की बारीकियों को केवल कानूनी भाषा में नहीं, बल्कि संवेदनशीलता की दृष्टि से समझाया। उन्होंने कहा कि किसी भी मामले में बाल कल्याण पुलिस अधिकारी का व्यवहार ही उस बच्चे के मन में ‘न्याय’ की पहली छवि बनाता है।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव एवं एडीजे कुलदीप शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि बाल अपराध से जुड़ी कार्रवाई केवल कानूनी दायित्व नहीं, बल्कि नैतिक कर्तव्य है। उन्होंने पुलिस अधिकारियों से आग्रह किया कि हर केस को “कानूनी फाइल” नहीं, बल्कि “एक घायल बचपन की कहानी” मानकर देखें।

उन्होंने बताया कि पुलिस, बाल कल्याण समिति (CWC) और जेजे बोर्ड (JJ Board) के बीच तालमेल जितना सशक्त होगा, उतनी ही प्रभावी सुरक्षा बच्चों को मिलेगी।

महिला अपराध एवं अनुसंधान प्रकोष्ठ के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक हितेश मेहता ने अधिकारियों से कहा कि बच्चों को अपराध से बचाना केवल कानून नहीं, बल्कि एक “सामुदायिक दायित्व” है। उन्होंने जोर देकर कहा — “हम जब एक बच्चे को सुरक्षित करते हैं, तब हम एक पूरे समाज का भविष्य बचाते हैं।”

चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा जिलों से आए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने अपने अनुभव साझा किए। किसी ने कहा — “कभी-कभी एक पीड़ित बच्चे की आंखों में लौटती मुस्कान ही हमारी सबसे बड़ी सफलता होती है।”

यूनिसेफ की बाल संरक्षण सलाहकार सिंधु बिनुजीत ने कार्यशाला के उद्देश्यों को बताते हुए कहा कि “ऑपरेशन जागृति” केवल एक अभियान नहीं, बल्कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए चल रही जन-जागरण की लहर है।

बाल संरक्षण की गूंज – सड़कों पर उतरी जागरूकता रैली

उसी दिन, उदयपुर की गलियों में एक अलग ही दृश्य था। रंग-बिरंगे बैनर, बच्चों के अधिकारों के नारे, और पुलिसकर्मियों के चेहरों पर जिम्मेदारी का भाव। जिला कलक्टर कार्यालय से निकलकर सूरजपोल, देहलीगेट, हाथीपोल, चेतक सर्कल, फतहसागर होते हुए जब यह रैली वापस लौटी, तो शहर ने एक मजबूत संदेश सुना — “हर बच्चा सुरक्षित है, तो ही समाज सुरक्षित है।”

रैली को हरी झंडी दिखाने वाले एएसपी गोपाल स्वरूप मेवाड़ा, एएसपी हितेश मेहता और यूनिसेफ सलाहकार सिंधु बिनुजीत ने कहा कि यह केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक आंदोलन है — जो हर नागरिक को यह याद दिलाने आया है कि बच्चों की रक्षा घर से लेकर सड़क तक हर जगह की जानी चाहिए।

पुलिस विभाग के अधिकारी — डीवाईएसपी अशोक आंजना, सीआई मदन गहलोत, लेडी पेट्रोलिंग टीम, कालिका टीम, सिग्मा यूनिट और यातायात पुलिस ने भी भाग लेकर यह साबित किया कि राजस्थान पुलिस केवल अपराध रोकने वाली संस्था नहीं, बल्कि समाज की सुरक्षा का प्रहरी है।

इस पूरे सप्ताह “ऑपरेशन जागृति” की गतिविधियाँ केवल प्रशिक्षण या रैली तक सीमित नहीं रहीं। यह एक संवेदनशील सामाजिक संवाद बन गईं — पुलिस, न्यायपालिका, यूनिसेफ और आम नागरिकों के बीच एक ऐसा संवाद, जिसने यह प्रतिज्ञा दोहराई कि —

“जब तक हर बच्चा सुरक्षित नहीं, तब तक जागृति का यह सफर जारी रहेगा।”

उदयपुर रेंज के पुलिस अधिकारियों ने न केवल कानून की धाराएँ समझीं, बल्कि उन मासूम आत्माओं की आवाज सुनी, जिनकी सुरक्षा में उनका हर निर्णय मायने रखता है।

इस अभियान ने एक बार फिर याद दिलाया —बचपन की रक्षा केवल सरकार का कार्य नहीं, बल्कि समाज की आत्मा की पुकार है।

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