उदयपुर। कई सालों बाद यह पहला मौका है जब बारिश के तुरंत बाद शहर में गड्ढे गायब हैं। सड़कों पर पेच वर्क हो चुका है, लोग खुद इस बात को महसूस कर रहे हैं। एलिवेटेड रोड और गोवर्धन विलास रोड पर चल रहे फ्लाईओवर का काम भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। हालांकि, पिछले तीन-चार महीने लोगों के लिए काफी मुश्किलों से भरे रहे, लेकिन अब वही लोग राहत की सांस ले रहे हैं। यही वजह है कि उदयपुर से लेकर जयपुर तक एक ही सवाल उठ रहा है—“उदयपुर के कलेक्टर और निगम के कमिश्नर आखिर कौन हैं भाई? इनकी तारीफ तो करनी पड़ेगी जी।”
कुछ इश्यू है जो परेशानी की वजह भी है और चर्चा की भी। इसमें सबसे बड़ा शक्तिनगर बोटल नेक, जहां भराव तक समय पर नहीं उठाया गया है। स्मार्ट सिटी में वायरलैस का काम भी कई गलियों व चौराहों पर लंबित है। दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा ट्रैफिक का है। दिवाली के बाद यह समस्या और बढ़ने वाली है क्योंके ट्यूरिस्ट सीजन की वजह से स्थानीय लोगों व पर्यटकों को परेशानी उठानी पड़ती है। इसके लिए अभी से काम करने की जरूरत है।
बहरहाल कलेक्टर नमित मेहता और कमिश्नर अभिषेक खन्ना। और हां, विधायक ताराचंद जैन की भूमिका भी इस तस्वीर को बेहतर बनाने में कम नहीं रही है।
दरअसल, बरसों से बारिश का मतलब होता था सड़कें धंसना, गड्ढों में पानी भरना, ट्रैफिक का रुकना और नागरिकों की शिकायतें। पर इस बार मौसम ने जब दस्तक दी, तो प्रशासन पहले से तैयार खड़ा था। नतीजा यह कि बारिश के बाद शहर की सड़कों पर पानी भले जमा हुआ, पर गड्ढे नहीं बने। कहीं नालों की सफाई पहले से हो चुकी थी, तो कहीं खराब सड़कें बारिश शुरू होने से पहले ही दुरुस्त कर दी गईं।
लोगों का कहना है कि उन्होंने ऐसा समन्वय, ऐसी त्वरित कार्रवाई पहले कभी नहीं देखी। चाहे नगर निगम की टीम हो या जिला प्रशासन—दोनों ने मिलकर यह दिखा दिया कि अगर चाह लिया जाए तो कोई भी शहर बदल सकता है।
गोवर्धन विलास से लेकर देहली गेट तक और फतेहसागर से लेकर सुखाड़िया सर्कल तक, हर दिशा में एक नई चमक दिखाई दे रही है। बारिश थमते ही सड़कों पर मशीनें उतर आईं, और कुछ ही दिनों में शहर फिर से अपनी रौनक में लौट आया।
एलिवेटेड रोड का काम भी अब तेजी पकड़ चुका है। जो काम कभी महीनों तक खिंचते रहते थे, वे अब समय से पहले पूरे हो रहे हैं। फ्लाईओवर निर्माण की गति देखकर लोग कहते हैं—“लगता है अब उदयपुर में फाइलें नहीं, काम चलता है।”
इस बदलाव के पीछे सबसे अहम भूमिका निभाई है जिला कलेक्टर नमित मेहता और नगर निगम कमिश्नर अभिषेक खन्ना की। दोनों अधिकारियों ने मिलकर जिस तरह प्रशासनिक तालमेल बनाया है, वह मिसाल बन गया है। न कोई दिखावा, न बयानबाज़ी—बस काम।
कलेक्टर मेहता ने हर विभाग को स्पष्ट निर्देश दिए कि शहर के मुख्य मार्गों पर कोई भी समस्या हो, तो तुरंत एक्शन हो। वहीं, कमिश्नर खन्ना ने निगम टीम को ऐसी ऊर्जा दी कि बारिश के दौरान भी काम रुका नहीं।
नतीजा सामने है—उदयपुर की सड़कों पर इस बार न कीचड़ है, न धंसान, न गड्ढों की भरमार। आम आदमी को पहली बार लगा कि प्रशासन उसकी परेशानी समझ रहा है।
शहर की सफाई व्यवस्था भी पहले से बेहतर दिख रही है, लेकिन इसमें रात्रि में सफाई की योजना पर अमल करना जरूरी है।
इस पूरी प्रक्रिया में विधायक ताराचंद जैन का भी अहम योगदान रहा। उन्होंने क्षेत्रीय जरूरतों को लेकर लगातार फीडबैक दिया, और बजट तथा योजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया। यही कारण है कि काम सिर्फ प्रस्तावों में नहीं रहा, बल्कि धरातल पर उतरा।
उदयपुर के लोगों का कहना है कि यह बदलाव सिर्फ विकास का नहीं, सोच का भी है। अब लोग यह महसूस करने लगे हैं कि प्रशासन अगर चाहे तो जीवन कितना आसान हो सकता है। सड़कों पर जब धूल नहीं उड़ती, जब बारिश के बाद भी ट्रैफिक सुचारू रहता है, जब शहर के बीचोंबीच कोई जलभराव नहीं होता—तो यह कोई छोटी बात नहीं है।
आज पूरे राजस्थान में उदयपुर की चर्चा हो रही है। लोग कह रहे हैं—“देखो, झीलों का शहर अब प्रशासनिक अनुशासन का भी उदाहरण बन गया है।”
पहले जहां शिकायतों की गूंज थी, वहीं अब तारीफ के स्वर हैं। हर चौराहे, हर चाय की दुकान पर लोग एक ही बात कह रहे हैं—“इस बार सच में काम हुआ है।”
यह बदलाव अचानक नहीं आया। पिछले कुछ महीनों से प्रशासन ने एक-एक समस्या पर ध्यान दिया। ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करने से लेकर रोड रिपेयर तक, सब कुछ व्यवस्थित योजना के तहत हुआ। और यही वजह है कि इस बार बारिश ने शहर को तो भिगोया, लेकिन उसकी साख को नहीं।
लोग महसूस कर रहे हैं कि जब नेतृत्व ईमानदार और सक्रिय हो, तो न कोई बहाना चलता है, न कोई फाइल अटकती है।
और शायद इसी वजह से आज हर तरफ एक ही बात कही जा रही है—
“भई, ये उदयपुर के कलेक्टर और निगम के कमिश्नर कौन हैं…? तारीफ तो करनी पड़ेगी जी।”
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