उदयपुर। उदयपुर में बीजेपी व कांग्रेस के बीच मुकाबला बड़ा ही रोचक हो गया है। वैसे मेवाड़ में तकरीबन सभी सीटों पर प्रत्याशियों के बीच मुकाबला कड़ा है। लेकिन उदयपुर सीट पर शुरुआती लड़ाई बाहरी और शहरी को लेकर चली। टिकट वितरण से पहले कुछ छुट भैया नेताओं ने इसको उठाया, अब वो अपने बिलों में चले गए हैं।
बीजेपी ने लोकल ताराचंद जैन को प्रत्याशी बनाया तो बाहरी का मुद्दा तो खत्म हुआ, लेकिन फिर सनातनी और गैर सनातनी को लेकर बयान बाजी हुई। कांग्रेस प्रत्याशी ने सनातनी के मुद्दे पर बीजेपी को कई बार आड़े हाथों लिया। कांग्रेस के प्रत्याशी प्रो. गौरव वल्लभ ने खुद को स्थानीय साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसमें वे सफल भी हुए।
उदयपुर में अब पढ़े लिखे और कम पढ़े लिखे को लेकर चर्चा जारी है। युवा और अनुभव के बीच भी मुकाबला है।
वैसे इस सीट से पिछले 3 चुनावों में मतदान से पहले कई राजनीतिक पंडित गुलाबचंद कटारिया की हार तय मानते रहे, लेकिन रिजल्ट हमेशा कटारिया की अच्छी जीत का आता रहा। इस बार कटारिया मैदान के बाहर से ही दांव खेल रहे हैं।
बीजेपी के प्रत्याशी ताराचंद जैन को चुनाव लडने और लड़वाने का पुराना अनुभव है। इस बार बीजेपी का संगठन ज्यादा मजबूत है। शक्ति प्रमुख से लेकर पेज प्रमुख तक फील्ड में है। पहली बार बीजेपी ने अपने 6 बोर्डों के पार्षदों को एक्टिव किया है।
इस बार चुनाव में जो अलग दिख रहा है, उसमें कांग्रेस रणनीति के साथ चुनाव लड़ रही है जो इससे पहले कभी दिखाई नहीं दिया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी उत्साह देखने को मिल रहा है। बदलाव वाले वोटर्स भी इस बार प्रत्याशी को तोलते हुए दिखाई दे रहे हैं। सीएम की गारंटी भी जमीन पर दिखाई दे रही है।
लब्बो लुआब यह है कि चुनाव में सबसे बड़ा फैक्टर जैन बनाम ब्राह्मण भी हो गया है। वैसे इससे पहले ब्राह्मण कभी एक नहीं दिखाई दिए। बीजेपी अपनी सीट जीती हुई मान रही है, लेकिन ब्राह्मण एकता कायम रही तो बाजी कांग्रेस के पक्ष में जा सकती है। इसकी वजह यह है कि उदयपुर शहर विधानसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता भी प्रभावी हैं। इस सीट का नेचर बदलना है तो कांग्रेस और बीजेपी को चुनाव जीतने के बाद कुछ महत्वपूर्ण सियासी फैसले लेने होंगे जो शहर वो लोगों के हक में हो।
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