
चंडीगढ़। अक्टूबर की ठंडी सुबह थी। चंडीगढ़ के सेक्टर-21 की एक शांत सी गली में कुछ लोग बड़ी सतर्कता से अपनी गाड़ियों में बैठे थे। बाहर से सब कुछ सामान्य लग रहा था — जैसे किसी ऑफिस में रोज़ का काम चल रहा हो। लेकिन इन गाड़ियों में बैठे लोग किसी आम दिन के इंतज़ार में नहीं थे। वे इंतज़ार कर रहे थे उस एक क्षण का, जब रिश्वत का सौदा तय होगा और जाल अपने आप कस जाएगा।
सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन, यानी CBI, ने पंजाब पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ महीनों से मिली शिकायतों की जांच की थी। शिकायतकर्ता का आरोप था कि रोपड़ रेंज में तैनात 2009 बैच के एक आईपीएस अधिकारी ने उससे ₹18 लाख की रिश्वत मांगी है। कहा गया था कि अगर वह रकम दे दे, तो उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को “सेटल” कर दिया जाएगा और उसके बिजनेस को लेकर आगे कोई दबाव या पुलिसिया कार्रवाई नहीं होगी।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उस अधिकारी ने सिर्फ एक बार की रकम नहीं, बल्कि हर महीने “नियमित भुगतान” की मांग भी रखी थी — एक तरह का सुरक्षा टैक्स, जो कानून के नाम पर गैर-कानूनी था।
CBI ने शिकायत की सच्चाई जांचने के लिए एक ट्रैप बिछाने का फैसला किया। ऑपरेशन के दिन सब कुछ योजनाबद्ध था। शिकायतकर्ता के हाथ में कैमरा लगा था, और टीम की नज़रें हर कदम पर थीं। चंडीगढ़ के सेक्टर-21 में जैसे ही बिचौलिया सामने आया और शिकायतकर्ता से 8 लाख रुपये लिए, टीम ने फौरन कार्रवाई की। कुछ ही पलों में सड़क पर सायरन गूंजा, और वही बिचौलिया CBI के हाथों में था — रंगे हाथों पकड़ा गया।
लेकिन CBI की कहानी सिर्फ एक गिरफ्तारी पर नहीं रुकती। उसी वक्त एजेंसी ने आरोपी डीआईजी को “कंट्रोल्ड कॉल” करवाया। लाइन के दूसरी तरफ से उसने भुगतान की बात स्वीकारी और अपने दफ्तर बुलाने को कहा। बस, इतना ही काफी था। कुछ ही देर बाद, जब वह ऑफिस में बैठा अपने रोज़ के काम में व्यस्त दिखने की कोशिश कर रहा था, दरवाज़ा खुला और CBI के अफसर अंदर दाखिल हुए। अधिकारी को वहीं पर हिरासत में ले लिया गया।
गिरफ्तारी के बाद CBI की टीमें पंजाब और चंडीगढ़ में कई जगहों पर छापेमारी के लिए निकल पड़ीं। जो कुछ सामने आया, उसने हर किसी को हैरान कर दिया। कमरे के कोनों में ठुंसे बैगों से नकदी के बंडल निकले — लगभग पांच करोड़ रुपये, और गिनती तब भी पूरी नहीं हुई थी। अलमारियों से सोने-हीरे के गहने निकले जिनका वज़न करीब डेढ़ किलो था। दस्तावेज़ों के ढेर में पंजाब भर की प्रॉपर्टियों के कागज़ मिले।
इतना ही नहीं, गेराज में खड़ी दो लग्ज़री गाड़ियों की चाबियाँ मिलीं — एक मर्सिडीज़ और एक ऑडी। टेबल पर 22 महंगी घड़ियाँ सजी थीं, जैसे किसी शोकेस की झलक। लॉकर की चाबियाँ, 40 लीटर विदेशी शराब की बोतलें और हथियारों का एक छोटा-सा जखीरा — डबल बैरल गन, पिस्टल, रिवॉल्वर, एयरगन और गोलियाँ।
CBI के अफसरों ने बताया कि बिचौलिए के पास से भी ₹21 लाख नकद बरामद हुए। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया और अगली सुबह, यानी 17 अक्टूबर को अदालत में पेश करने की तैयारी शुरू हो गई।
अब मामला सिर्फ एक रिश्वत का नहीं रहा था। सवाल यह था कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के पास इतनी बड़ी मात्रा में नकदी और लग्ज़री सामान कैसे आया? CBI ने जांच तेज़ कर दी, और हर बरामद चीज़ का हिसाब-किताब निकाला जाने लगा।
रात भर चली कार्रवाई के बाद, जब CBI की टीमें थकी सी इमारतों से लौट रही थीं, तब भी फाइलें खुली थीं, बयान लिए जा रहे थे और सबूत जोड़े जा रहे थे। एजेंसी का कहना था कि यह सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि “भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त संदेश” है — कि चाहे कोई कितना भी बड़ा अधिकारी क्यों न हो, कानून की पकड़ से बच नहीं सकता।
सुबह की रोशनी में चंडीगढ़ के वही सेक्टर-21 की सड़क अब सामान्य दिख रही थी। लोग अपने काम पर जा रहे थे, ट्रैफिक बहाल था। मगर कुछ दरवाज़ों के पीछे एक ऐसी कहानी लिखी जा चुकी थी, जो यह बताने के लिए काफी थी कि रिश्वत का जाल कितना गहरा है — और कैसे कभी-कभी, कानून खुद के भीतर ही अपना दोषी ढूंढ़ लेता है।
About Author
You may also like
-
राजस्थान में पहली बार? या सिर्फ़ एक नया प्रचार स्टंट : गीतांजली मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ने रोबोटिक नी रिप्लेसमेंट का ढोल पीटना शुरू किया
-
Father dies shortly after accepting plea deal in death of 2-year-old left in hot car
-
Sip, sparkle, and celebrate with Starbucks Holiday merchandise!
-
बिहार विधानसभा चुनाव : पहले चरण की वोटिंग पर संकट, सियासत और सामाजिक प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण
-
बावर्ची रेस्टोरेंट : उदयपुर में स्वाद, सुकून और मुस्कान का अनोखा संगम