उदयपुर के वरिष्ठ पत्रकार संजय गौतम की कलम से पढ़िए…एक विशेष घटना की रिपोर्ट

 

इशित भट्ट से अधिक उद्दंड हैं हम

मैं बात कर रहा हूँ सोनी टीवी के लोकप्रिय कार्यक्रम कौन बनेगा करोड़पति के हालिया एपिसोड की। इन दिनों बच्चों का स्पेशल सेशन चल रहा है। उसी के तहत एक 14 वर्षीय बालक — इशित भट्ट — हॉट सीट पर पहुँचा।

खेल शुरू होने से पहले ही उसने महानायक अमिताभ बच्चन से कहा, “नियम बताने में समय बर्बाद मत कीजिए, मुझे सब पता है।” इतना ही नहीं, उसने कुछ देर बाद थोड़ी अक्खड़ता से यह भी कहा — “सवाल तो पूछो।”

मित्रों, उस बालक की इस आत्ममुग्ध मुद्रा पर केबीसी के दर्शक कुछ क्षणों के लिए सन्न रह गए। इशित के माता-पिता के चेहरे पर भी असहजता साफ़ झलक रही थी।
खेल ज़्यादा आगे नहीं बढ़ पाया — अगला सवाल गलत निकला, और इशित बिना कोई इनाम जीते खेल से बाहर हो गया।

यहां तक तो बात केवल एक टीवी शो की लगती है, लेकिन असली कहानी तो इसके बाद शुरू हुई।

अगले ही दिन सोशल मीडिया पर उस 14 साल के बच्चे को “अभिमानी”, “उद्दंड”, “असंवेदनशील” जैसे शब्दों से नवाज़ा जाने लगा। लोगों ने उसे ‘विलेन’ बना दिया — सिर्फ इसलिए कि उसने अमिताभ बच्चन जैसे महानायक से थोड़ी बेबाकी दिखा दी थी।

मनोविज्ञान की दृष्टि से

सोचिए, वह बच्चा जो देश के सबसे प्रतिष्ठित क्विज़ शो तक अपनी मेहनत और बुद्धिमत्ता से पहुँचा, क्या वह अज्ञानी या मूर्ख हो सकता है? नहीं, वह आत्मविश्वासी था — लेकिन हमारा समाज अक्सर आत्मविश्वास और उद्दंडता के बीच का फर्क भूल जाता है।

एक मनोवैज्ञानिक मित्र ने सही कहा था — “यदि किसी बच्चे को बार-बार यह कहा जाए कि वह गलत है, वह असभ्य है, तो अंततः वही बच्चा खुद को वैसा ही समझने लगता है।”

यही बात इशित भट्ट पर लागू होती है। सोशल मीडिया की भीड़ ने जिस तरह उसे नीचा दिखाने की कोशिश की, वह किसी भी संवेदनशील बच्चे के आत्मबल को तोड़ सकती है। ऐसी मानसिक यातना किसी भी बालक को अवसाद, हीनभावना, यहां तक कि आत्मघाती सोच तक ले जा सकती है।

इतिहास में उपेक्षा के शिकार महानायक

उपेक्षा किसी एक इशित की कहानी नहीं है। महात्मा गांधी को भी अपने ही देश में तिरस्कार झेलना पड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी और जयप्रकाश नारायण जैसे नेता वर्षों तक गलत समझे गए। रविन्द्रनाथ टैगोर और दिलीप कुमार जैसे रचनाकारों ने भी आलोचनाओं के बीच ही अपनी पहचान बनाई। इन सबने यह सिखाया कि आलोचना व्यक्ति को तोड़ती नहीं, बल्कि गढ़ती है — बशर्ते समाज उसे अवसर दे।

हम किस दिशा में जा रहे हैं?

सोशल मीडिया ने हमें अभिव्यक्ति की ताक़त दी है, लेकिन विवेक छीन लिया है।
हम अब टिप्पणी करने से पहले नहीं सोचते कि सामने वाला 14 साल का बच्चा है या 40 साल का वयस्क। हमारे लाइक और कमेंट के हथियार, किसी के मनोबल को नष्ट कर सकते हैं।

किसी मासूम के आत्मविश्वास पर व्यंग्य करना या उसे “अहमकारी” कहना हमें छोटा बनाता है — उसे नहीं। दरअसल, इशित से अधिक उद्दंड हम खुद हैं, जो एक बच्चे की गलती को सुधारने की जगह उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित करने में आनंद ढूंढते हैं।

अंतिम निवेदन

मित्रों, मेरी सभी सोशल मीडिया प्रेमियों से प्रार्थना है — उस चौदह वर्षीय मासूम पर कमेंट की बारिश बंद कीजिए। वह अब भी एक बच्चा है, और बच्चों को गिरने नहीं, सँभलने का हक़ होना चाहिए। आपका समय, आपकी ऊर्जा और आपकी प्रतिभा कहीं बेहतर कामों में लग सकती है — किसी इशित भट्ट को ट्रोल करने में नहीं, बल्कि उसे यह सिखाने में कि आत्मविश्वास और विनम्रता एक साथ कैसे चल सकते हैं।

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