आखिरी सुबह
सुबह के सन्नाटे को चीरती ठंडी हवा शिलॉन्ग की पहाड़ियों से होकर नीचे उतर रही थी। समय था – सुबह 5 बजकर 30 मिनट। होटल के लॉबी में सिर्फ दो लोग थे – रिसेप्शनिस्ट और वो औरत, जिसने दो दिन पहले चेक-इन किया था। उसके लंबे बाल, साफ रंग और ठंड में कांपते हाथों में मोबाइल की स्क्रीन की चमक थी।
वो बार-बार स्क्रीन पर देख रही थी… शायद कोई आने वाला था।
नाम था उसका सोनम।
पर जिस तरह वो हर दो मिनट में गेट की तरफ देख रही थी और फिर अनजान-सी भाषा में कुछ टाइप कर रही थी, उससे रिसेप्शनिस्ट को हल्की बेचैनी हो रही थी। होटल लॉगबुक के मुताबिक, सोनम के साथ जो पुरुष आया था – राजा रघुवंशी, वो कमरे से बाहर नहीं निकला था।
किसी को क्या पता था कि राजा उस वक्त दुनिया में था ही नहीं…
9 घंटे पहले…
राजा और सोनम की हनीमून ट्रिप जैसे किसी इंस्टाग्राम फीड की झूठी मुस्कान थी। मेघालय की खूबसूरत घाटियों के बीच दोनों पहुंचे थे, लेकिन सोशल मीडिया पर एक भी तस्वीर पोस्ट नहीं हुई थी।
क्यूँ?
क्योंकि ये ट्रिप हनीमून कम, एक आखिरी सफर ज़्यादा थी।
23 मई की दोपहर 1:43 पर सोनम ने अपनी सास उमा से बात की थी। बोली थी—”राजा आगे निकल गया है, मैं पीछे छूट गई हूं।”
पर झूठों का भी वक़्त आता है।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट कहती है कि राजा की हत्या उसी कॉल के लगभग आधे घंटे बाद कर दी गई थी।
एक लोकल गाइड—अल्बर्ट पैड—ने देखा था कि राजा तीन अजनबी लड़कों के साथ ट्रैकिंग पर था, और सोनम उनसे पीछे-पीछे आ रही थी। वो दृश्य अजीब था—एक हनीमून कपल… लेकिन उनमें दूरी थी, और अजनबी लड़के साथ चल रहे थे।
ऑपरेशन हनीमून
जब दो जून को राजा की लाश खाई में मिली, मेघालय पुलिस को समझ आ गया—ये कोई आम हादसा नहीं है।
राज्य के गृह मंत्री प्रेस्टोन टेनसांग ने तुरंत SIT बना दी। और इस केस को दिया गया नाम—ऑपरेशन हनीमून।
पुलिस ने पांच टीमें बनाई, और केस की तह तक जाने की कसम खा ली।
टीम 1: हत्या की घड़ी
राजा की मौत की टाइमिंग, सोनम की कॉल और सीसीटीवी फुटेज – सबको मिलाकर एक समयरेखा बनाई गई।
सोनम ने सास को कहा था, “उपवास है, मैं कुछ नहीं खा रही”।
पर होम-स्टे के स्टाफ ने देखा था—उसने भरपेट खाना खाया था।
झूठ की जड़ें गहरी थीं।
टीम 2: कैमरे की आंख
एक होटल का फुटेज – सोनम बाहर आती है, मोबाइल से कोई मेसेज भेजती है, फिर अंदर जाती है, राजा को साथ लाती है, और फिर बाहर आकर स्कूटी स्टार्ट करते हैं।
पर फिर… वो मोबाइल फिर निकलता है।
हर हरकत किसी प्लान का हिस्सा लगती थी।
टीम 3: फोन की चुप्पी
राजा और सोनम के कॉल डिटेल्स में एक नाम बार-बार आता है—राज कुशवाह।
सोनम उससे बात करती थी… राजा को इसका पता था या नहीं, ये अब रहस्य था।
पर पुलिस जानती थी—23 मई के बाद सोनम का मोबाइल बंद हुआ और कुशवाह का चालू रहा।
कनेक्शन अब मेघालय से इंदौर तक फैल चुका था।
एक खामोश लाश, एक गायब औरत, और तीन साए
अल्बर्ट पैड की बात ने केस को नया मोड़ दिया।
उसने पहचाना—तीन लड़कों में से एक को वो पहले देख चुका था।
22 मई की शाम को…
नोंग्रियात गाँव के पास…
जहां सोनम और राजा ने स्कूटी किराए पर ली थी।
उन तीनों लड़कों की हरकतें भी रिकॉर्ड हुई थीं, पर कोई नाम नहीं, कोई चेहरा नहीं—सिर्फ लाल टी-शर्ट और टेढ़ी निगाहें।
सात जन्मों का साथ… या मौत का पैग़ाम?
23 मई, दोपहर 2 बजे।
राजा के इंस्टाग्राम पर आखिरी पोस्ट—”सात जन्मों का साथ…”
पर पुलिस जानती थी—इस पोस्ट के पीछे की कहानी बहुत काली थी।
जब सोशल मीडिया टीम ने राजा और सोनम के अकाउंट्स खंगाले, तो एक भी साथ की तस्वीर नहीं मिली।
क्यूँ?
क्योंकि ये साथ दिखावे का था…
या फिर मौत से पहले का एक आखिरी धोखा।
अब आगे क्या?
राजा की लाश मिल चुकी थी।
पर सोनम?
वो तो अब भी लापता थी।
या शायद छिपी हुई थी… उन्हीं लड़कों के बीच, जिन्हें वो लगातार मैसेज भेजती रही थी।
होटल लॉबी में बैठी सोनम ने जब आखिरी बार रिसेप्शनिस्ट से पूछा—
“आपको कुछ डिलीवरी वाला दिखा क्या?”
शायद वो डिलीवरी नहीं थी…
शायद वो डेथ डीलिवरी थी।
“इंदौर के राज कुशवाह की डायरी”
इंदौर के छावनी इलाके में एक छोटा-सा कमरा, जिसमें एक टेबल पर पड़ी थी एक पुरानी, काली डायरी।
कमरे में पुलिस की एक टीम थी—मेघालय से आई एक विशेष यूनिट, जिसने राज कुशवाह के फ्लैट पर दबिश दी थी।
राज कुशवाह—25 साल का, इंजीनियरिंग ड्रॉपआउट, और अब एक ट्रैवल व्लॉगर के रूप में इंस्टाग्राम स्टार बनने की कोशिश कर रहा था। पर उसकी असली दुनिया सोशल मीडिया की दुनिया से बहुत अलग थी।
डायरी के पन्ने धड़कनों की तरह पलटे जा रहे थे।
“15 अप्रैल – सोनम फिर मिली थी। वही मुस्कान… लेकिन आज उसकी आंखों में डर था। उसने कहा—‘राजा को खत्म करना होगा, नहीं तो वो हमें खत्म कर देगा।’ मैंने कहा—पागल मत बनो। लेकिन फिर उसने मुझे वो ब्लू फोल्डर दिखाया…”
SIT के अधिकारी डायरी की हर लाइन को पढ़ते वक्त सोनम की मंशा को टटोल रहे थे।
क्या सोनम सच में खतरे में थी?
या वह सिर्फ राज को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रही थी?
राज की कॉल डिटेल्स बताती थीं कि 22 मई की रात को उसने मेघालय के एक नंबर पर 6 बार कॉल किया था।
फिर 23 मई को—सन्नाटा।
उसके बाद उसका फोन इंदौर के एक पुराने इलाके में एक्टिव हुआ, और फिर एक अजीब लोकेशन – नेपानगर।
वहां क्यों गया था?
कौन था जिसने उसे वहां बुलाया?
और फिर, उसी दिन… सोनम का मोबाइल भी बंद हो गया।
“खाई के नीचे का सच”
मेघालय की वो खाई, जहां राजा की लाश मिली थी, इतनी गहरी और भयावह थी कि पुलिस को 7 घंटे लगे वहां तक पहुंचने में।
खाई की चट्टानों पर खून के सूखे धब्बे थे, और एक जगह झाड़ियों में कुछ और भी मिला—मोबाइल का टूटा हुआ हिस्सा, और एक महिलाओं का पर्स।
पर्स के अंदर एक गोंद से चिपकी तस्वीर थी—राजा, सोनम और एक छोटा बच्चा।
कौन था वह बच्चा?
राजा और सोनम की तो कोई संतान नहीं थी…
जब फॉरेंसिक टीम ने मोबाइल की SIM स्लॉट से डाटा निकालने की कोशिश की, तो एक व्हाट्सएप बैकअप फाइल मिली—Encrypted।
पर एक मैसेज फाइल अनलॉक हो गई:
“काम हो गया है। लड़की साथ में है। आगे का क्या करना है?”
इस एक लाइन ने सारी थ्योरी को उलट दिया।
सोनम गायब नहीं थी… वो किसी के साथ गई थी।
मगर किसके साथ?
राज कुशवाह?
या उन तीन अजनबी ट्रैवलर्स के साथ, जिनका चेहरा अल्बर्ट ने देखा था?
और सवाल ये भी था—क्या राजा को मारने का प्लान वहीं बना था, उस खाई के किनारे?
या फिर लाश को सिर्फ वहां डंप किया गया?
“गाइड अल्बर्ट की गवाही”
मावलखियात गाँव के एक बेंत की झोंपड़ी में बैठा था अल्बर्ट पैड—45 साल का गाइड, जिसने अपने जीवन में हज़ारों ट्रैकर्स को जंगली रास्तों से घुमाया था।
पर 23 मई का दिन वो कभी नहीं भूल सकता था।
“सुबह 10 बजे होंगे। चार लोग नीचे से ऊपर चढ़ रहे थे—एक औरत, एक आदमी और तीन नौजवान लड़के। तीनों में एक खास बात थी… उनमें से एक बार-बार आसपास देख रहा था, जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो। औरत पीछे थी। मैं उस वक्त कुछ नहीं समझा। पर अब जब पुलिस ने तस्वीरें दिखाईं… मैं पहचान गया।”
अल्बर्ट की पहचान से पुलिस को पहली बड़ी सफलता मिली।
उसने जिस लड़के की तरफ इशारा किया, वह नैनीताल का रहने वाला निकला—रवींद्र भाटिया—जो पहले से ही नकली ट्रैवल व्लॉग्स और टूरिस्ट ठगी के मामले में पुलिस की नज़रों में था।
और सोनम?
उसे अल्बर्ट ने पूरी तरह शांत, बल्कि बर्फ जैसी ठंडी निगाहों वाली औरत बताया था।
“राजा बार-बार पीछे मुड़कर उसे देखता था… पर वो बस धीरे-धीरे चलती आ रही थी… जैसे कोई शिकार एक निशान तक पहुंचने दे रहा हो।”
अध्याय 5: “सोनम की गिरफ्तारी… या नई साज़िश?”
11 जून की रात, दिल्ली के IGI एयरपोर्ट पर एक अलर्ट जारी हुआ।
एक महिला—जिसका चेहरा सोनम से मेल खा रहा था—बैंकॉक की फ्लाइट में चेक-इन करने जा रही थी।
इमिग्रेशन टीम ने उसे रोका, और जैसे ही उसका फिंगरप्रिंट स्कैन हुआ—सिस्टम चीखा।
“MATCH FOUND – MEGHALAYA MISSING WOMAN CASE: SONAM”
वो शांत थी। एक मुस्कान के साथ बोली—
“मैं तो अपने पति के साथ हनीमून पर गई थी… अब पति नहीं रहा, तो क्या मैं जिंदगी नहीं जी सकती?”
पुलिस stunned थी।
पर असली चौंकाने वाला खुलासा तब हुआ, जब पूछताछ में सोनम ने जो कहा—उसने पूरी थ्योरी को हिला दिया।
“राजा की मौत एक हादसा थी… मैंने किसी को नहीं बुलाया। वो लड़के… वो मुझे भी मारने वाले थे।”
“मैं भागी, छिपी… किसी से मदद नहीं मांगी। क्योंकि मुझे यकीन नहीं था कि मैं बच पाऊंगी।”
अब CBI और SIT दोनों आमने-सामने थे।
क्या सोनम मासूम थी?
या अब भी साज़िश की मुख्य सूत्रधार?
CBI की रिपोर्ट कहती है—उसके मोबाइल से मैसेज भेजे गए थे, हत्या से पहले और बाद में।
पर सोनम कहती है—“मोबाइल तो चोरी हो गया था… और मेरी लोकेशन कोई भी ट्रैक कर सकता है।”
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